30 साल बाद होली पर दुर्लभ शूल योग, जानिए क्या है इसका महत्व?

Edited By Harman Kaur,Updated: 01 Mar, 2025 01:20 PM

rare shool yoga on holi after 30 years know what is its significance

होलिका दहन इस बार 13 मार्च को प्रदोष काल में किया जाएगा। पंचांग के अनुसार, यह पर्व फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी के बाद पूर्णिमा तिथि पर आएगा। इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, धृति योग, शूल योग और वणिज करण के बाद बव करण में सिंह राशि के चंद्रमा की उपस्थिति...

नेशनल डेस्क: होलिका दहन इस बार 13 मार्च को प्रदोष काल में किया जाएगा। पंचांग के अनुसार, यह पर्व फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी के बाद पूर्णिमा तिथि पर आएगा। इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, धृति योग, शूल योग और वणिज करण के बाद बव करण में सिंह राशि के चंद्रमा की उपस्थिति में होलिका दहन होगा।

आखिरी बार 1995 में हुआ था ऐसा संयोग
सबसे खास बात यह है कि 30 साल बाद इस बार होलिका दहन के दिन सूर्य, बुध और शनि की युति कुंभ राशि में बन रही है। साथ ही शूल योग और गुरुवार का दिन इसे और भी विशेष बना रहे हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला के अनुसार, आखिरी बार ऐसा संयोग 1995 में हुआ था।

होलिका दहन का शुभ समय
धर्म शास्त्रों के अनुसार, होलिका दहन भद्रा समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिए, इसलिए 13 मार्च की रात 11:30 बजे के बाद ही दहन शुभ रहेगा।

भद्रा का प्रभाव और प्रदोष काल की महिमा
13 मार्च को होली के दिन सुबह 10:23 बजे से रात 11:30 बजे तक भद्रा का प्रभाव रहेगा। हालांकि, प्रदोष काल में पूजन को बहुत फलदायी माना जाता है। पंचांग के अनुसार, इस बार सिंह राशि के चंद्रमा के साथ भद्रा का प्रभाव रहेगा, लेकिन बड़े पर्वों के दौरान भद्रा की पूंछ का विचार किया जाता है। मान्यता के अनुसार, भद्रा के अंतिम भाग में पूजन से यश और विजय प्राप्त होती है। इस बार के संयोग को लेकर ज्योतिषियों का मानना है कि यह समय विशेष रूप से शुभ रहेगा और इस दिन किए गए धार्मिक कार्यों का फल अधिक मिलेगा।

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