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रतन टाटा के दोस्त शांतनु को याद आया बचपन, बोले- बिना फोन के बड़ा होना एक सौभाग्य की बात

Edited By Parminder Kaur,Updated: 06 Mar, 2025 03:44 PM

ratan tata s friend shantanu remembers his childhood

भारत के दिवंगत उद्योगपति रतन टाटा के करीबी सहयोगी शांतनु नायडू एक बार फिर चर्चा का विषय बने हुए हैं, जिसकी वजह उनकी लिंक्डइन पर की गई एक पोस्ट है, जिसमें उन्होंने अपनी जनरेशन के बच्चों की सबसे बेहतरीन बातों को शेयर किया है। उन्होंने अपनी पोस्ट में...

नेशनल डेस्क. भारत के दिवंगत उद्योगपति रतन टाटा के करीबी सहयोगी शांतनु नायडू एक बार फिर चर्चा का विषय बने हुए हैं, जिसकी वजह उनकी लिंक्डइन पर की गई एक पोस्ट है, जिसमें उन्होंने अपनी जनरेशन के बच्चों की सबसे बेहतरीन बातों को शेयर किया है। उन्होंने अपनी पोस्ट में बताया कि उनकी जनरेशन के बच्चों के पास उस वक्त फोन नहीं होते थे और वे गर्मी की छुट्टियों में चोर-पुलिस और लुका-छिपी जैसे खेल खेलते थे, जो एक जीवंत अनुभव था।

बचपन की यादें और गर्मी की छुट्टियां

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शांतनु नायडू ने अपनी लिंक्डइन पोस्ट में अपने बचपन की यादें ताजा कीं। उन्होंने बताया कि उस समय टेक्नोलॉजी का ज्यादा प्रभाव नहीं था। हम अपने पूरे दिन को हंसी-मजाक, आउटडोर गेम्स और मासूम शरारतों के साथ बिताते थे। सबसे अच्छी बात यह थी कि उस वक्त किसी के पास फोन नहीं था और हमारी गर्मी की छुट्टियां चोर-पुलिस और लुका-छिपी जैसे खेलों में बितती थीं।

बचपन की शरारतें

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शांतनु ने हंसते हुए बताया कि बचपन में अक्सर एक बच्चा ऐसा होता था, जो अपनी मां से दूसरे बच्चों की शिकायत करता था और वे खुद वही बच्चा थे। उन्होंने याद किया कि शाम 7 बजे के बाद उनका खेलने का समय खत्म हो जाता था, लेकिन उनके दोस्त उन्हें इतनी अच्छी तरह छिपा देते थे कि उनकी मां उन्हें ढूंढ नहीं पाती थीं। हालांकि, इसके बाद उन्हें घर पर काफी डांट भी पड़ती थी।

बचपन का सौभाग्य

शांतनु नायडू ने आगे कहा कि बचपन में वे आम और जामुन चुराने, तितलियों का पीछा करने और साइकिल रेसिंग जैसे खेल खेलते थे। उनकी पीढ़ी का सबसे बड़ा सौभाग्य यह था कि उनके पास फोन नहीं था और इसके बावजूद उन दिनों की सभी यादें उनकी आंखों के सामने साफ हैं। फोन की वजह से बचपन खत्म हो जाता था और अब जब वे बड़े हो गए हैं, तो उनकी जवानी भी फोन के कारण प्रभावित हो रही है।

फोन के बिना बड़ा होना सौभाग्य की बात

शांतनु ने अपनी पोस्ट में यह भी कहा कि बिना फोन के बड़ा होना एक सौभाग्य की बात थी। उन्होंने यह महसूस किया कि उस समय, बिना किसी डिजिटल हस्तक्षेप के वे पूरी तरह से अपने बचपन के अनुभवों में खोए रहते थे। वो दिन सचमुच अच्छे थे और आजकल के बच्चों के पास फोन के कारण वह अनुभव संभव नहीं हो पाता।

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