Edited By Mahima,Updated: 05 Nov, 2024 03:14 PM
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को मान्यता तो दी, लेकिन मदरसों को उच्च शिक्षा डिग्रियां देने का अधिकार छीन लिया। अब मदरसे केवल बारहवीं तक की शिक्षा दे सकेंगे, और **फाजिल** और **कामिल** जैसी डिग्रियां अवैध करार दी गईं, क्योंकि...
नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 5 नवंबर, 2024 को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को मान्यता तो दे दी, लेकिन साथ ही कुछ अहम बदलाव भी किए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अब मदरसे बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए डिग्री नहीं दे सकेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि मदरसे अब छात्र-छात्राओं को अंडरग्रेजुएशन (UG) और पोस्टग्रेजुएशन (PG) की डिग्री नहीं प्रदान कर सकते। खासकर, फाजिल और कामिल नाम की जो डिग्री दी जाती थी, वह अब मान्य नहीं होगी क्योंकि यह यूजीसी (University Grants Commission) के नियमों के खिलाफ है।
मदरसा शिक्षा अधिनियम की वैधता
सुप्रीम कोर्ट की बेंच में मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला शामिल थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उत्तर प्रदेश का मदरसा शिक्षा अधिनियम राज्य विधानसभा की विधायी क्षमता के अंतर्गत आता है, यानी इसे राज्य सरकार द्वारा बनाया जा सकता है। हालांकि, मदरसा बोर्ड द्वारा दी जाने वाली फाजिल और कामिल डिग्री, जो उच्च शिक्षा की डिग्रियां हैं, असंवैधानिक करार दी गईं हैं क्योंकि यह यूजीसी एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं।
मदरसों में पढ़ाई की नई दिशा
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर सीधे तौर पर उन मदरसों पर पड़ेगा, जो छात्रों को बारहवीं तक की शिक्षा तो देते रहे हैं, लेकिन अंडर ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्रियां भी प्रदान करते थे। इसके अलावा, मदरसा बोर्ड मुंशी-मौलवी (10वीं) और आलिम (12वीं) जैसी परीक्षा भी आयोजित करता था। इसके साथ ही, कारी (डिप्लोमा) की भी पढ़ाई करवाई जाती थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, इन डिग्रियों को सरकारी और निजी सेक्टर में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
राज्य सरकार का रुख
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने मदरसा बोर्ड द्वारा दी जाने वाली फाजिल और कामिल डिग्रियों पर सवाल उठाए। राज्य सरकार ने कहा कि इन डिग्रियों के आधार पर बच्चों को सरकारी नौकरियों में शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि यह डिग्रियां न तो किसी विश्वविद्यालय की डिग्री के समान हैं, न ही यह बोर्ड की ओर से पढ़ाए गए पाठ्यक्रमों के समकक्ष हैं। राज्य सरकार का तर्क था कि ऐसे छात्रों को केवल उन्हीं नौकरियों के लिए योग्य माना जा सकता है, जिनमें हाई स्कूल या इंटरमीडिएट की योग्यता मांगी जाती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
यह मामला पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी पहुंचा था, जहां कोर्ट ने 22 मार्च 2024 को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को असंवैधानिक करार दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट से धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत भी प्रभावित होता है। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य शिक्षा व्यवस्था में शामिल करे। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकार के पास किसी विशेष धर्म के लिए बोर्ड बनाने का अधिकार नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अंजुमन कादरी नामक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, और आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को कुछ शर्तों के साथ मान्यता दी है।
मदरसा बोर्ड के भविष्य पर असर
अब मदरसा बोर्ड के लिए यह चुनौती होगी कि वह अपनी शिक्षा प्रणाली को इस नए आदेश के तहत कैसे ढाले। जबकि मदरसे पहले बच्चों को आलिम, मुंशी-मौलवी और कारी जैसे डिप्लोमा और डिग्रियां प्रदान करते थे, अब उन्हें केवल बारहवीं तक की शिक्षा** देने की अनुमति होगी। यह बदलाव मदरसों के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इससे उनकी शिक्षा प्रणाली में भारी बदलाव आ सकता है। इसके अलावा, छात्रों को उच्च शिक्षा की डिग्रियां न मिलने से, उनका करियर और नौकरी की संभावना भी प्रभावित हो सकती है।
भविष्य में क्या बदलाव हो सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय समाज में मदरसों की भूमिका को लेकर नए सवाल खड़े करता है। इस फैसले के बाद, मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा अब मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली के तहत नहीं आएगी, और इसकी मान्यता भी सीमित हो जाएगी। हालांकि, सरकार और मदरसा बोर्ड अब इस फैसले को लागू करने के लिए क्या कदम उठाएंगे, यह देखना अहम होगा। इसके अलावा, शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए मदरसा बोर्ड को अपने पाठ्यक्रम को बदलने और उसे अधिक समकालीन बनाने की आवश्यकता होगी, ताकि छात्रों को आधिकारिक डिग्रियां प्राप्त हो सकें और वे बेहतर नौकरियों के लिए पात्र बन सकें। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है, लेकिन यह मदरसों में पढ़ाई कर रहे बच्चों के लिए बड़ी चुनौती भी पेश करता है। हालांकि, इस फैसले से मदरसों की शक्ति और भूमिका में कुछ हद तक कमी आई है, फिर भी यह उम्मीद की जाती है कि आने वाले समय में सरकार और मदरसा बोर्ड इसे नए तरीके से अनुकूलित करेंगे।