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ऐतिहासिक महाशिवरात्रि: पहली बार, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर ने 1000 वर्षों बाद प्रकट किए मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के अवशेष

Edited By Parveen Kumar,Updated: 26 Feb, 2025 09:35 PM

remains of original somnath jyotirlinga revealed after 1000 years

विशालाक्षी मंटप की भव्य पृष्ठभूमि में, आर्ट ऑफ लिविंग इंटरनेशनल सेंटर में महाशिवरात्रि का उत्सव एक दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ संपन्न हुआ, जहां भारत के गौरवशाली इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंश—जो समय की धारा में विलुप्त माना जा रहा था—प्रकट हुआ।

26 फरवरी 2025, बेंगलुरु: विशालाक्षी मंटप की भव्य पृष्ठभूमि में, आर्ट ऑफ लिविंग इंटरनेशनल सेंटर में महाशिवरात्रि का उत्सव एक दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ संपन्न हुआ, जहां भारत के गौरवशाली इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंश—जो समय की धारा में विलुप्त माना जा रहा था—प्रकट हुआ। इस ऐतिहासिक क्षण ने 180 देशों के लाखों साधकों को गहरी श्रद्धा में डुबो दिया। इस पावन अवसर पर केंद्रीय विधि एवं न्याय तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्री माननीय अर्जुन राम मेघवाल भी उपस्थित रहे।

इस अवसर पर गुरुदेव ने कहा, "शिव वही हैं जो हैं, जो थे, और जो होंगे। इस शिवरात्रि पर समर्पित होकर सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ एक हो जाएं। आप जैसे हैं, भगवान शिव आपको वैसे ही अपनाते हैं। स्वयं को ऐसे अनुभव करें जैसे आप स्वयं शिव के भीतर स्थित हैं।"

उन्होंने शिव के पांच गुणों—सृजन, पालन, रूपांतरण, आशीर्वाद और लय—का उल्लेख करते हुए कहा, "शिवरात्रि वह समय है जब हम इन आशीर्वादों को अनुभव करते हैं और दिव्य ऊर्जा में सराबोर हो जाते हैं। हमें बस इन स्पंदनों में डूब जाना है और भीतर गहराई से उतरना है।"

शिवरात्रि की प्रमुख झलक: मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के अवशेषों का दुर्लभ दर्शन 

बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम, सोमनाथ ने सदैव श्रद्धा और भक्ति का संचार किया है, जिसकी कथा दिव्य रहस्यों में समाई हुई है। प्राचीन शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है कि यह ज्योतिर्लिंग गुरुत्वाकर्षण को चुनौती देते हुए भूमि से दो फीट ऊपर स्थित रहता था!

जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर और उसमें स्थित ज्योतिर्लिंग को नष्ट कर दिया, तब कुछ ब्राह्मण इसके खंडित अवशेषों को तमिलनाडु ले गए और उन्हें छोटे शिवलिंगों के रूप में स्थापित किया। ये पवित्र अवशेष पूरे एक सहस्राब्दी तक पीढ़ी दर पीढ़ी गुप्त रूप से पूजे जाते रहे।  लगभग सौ वर्ष पूर्व, संत प्रणवेन्द्र सरस्वती इन्हें कांची शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती के पास ले गए। शंकराचार्य ने निर्देश दिया कि इन्हें अगले सौ वर्षों तक और गुप्त रखा जाए।

वह पावन क्षण इस वर्ष आया, जब वर्तमान संरक्षक, पंडित सीताराम शास्त्री ने वर्तमान कांची शंकराचार्य से दिव्य मार्गदर्शन प्राप्त किया, जहां शंकराचार्य जी ने कहा, "बेंगलुरु में एक संत हैं—गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर। इन्हें उनके पास ले जाइए।"

इस प्रकार, जनवरी 2025 में, ये पवित्र अवशेष गुरुदेव के करकमलों में पहुंचे। उनकी दिव्य महत्ता को पहचानते हुए, गुरुदेव ने इन्हें जनमानस को दर्शन के लिए उपलब्ध कराया  जिससे लाखों साधकों को सनातन धर्म की इस कालातीत विरासत से पुनः जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ।

" इन पवित्र अवशेषों की पुनर्खोज केवल इतिहास को पुनः प्राप्त करने के विषय में नहीं है; यह हमारी सभ्यता की आत्मा को पुनर्जीवित करने का क्षण है। यह सिद्ध करता है कि सनातन धर्म केवल अतीत की विरासत नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है जो काल के साथ विकसित होती रही है और सतत् फलती-फूलती है।" – गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर 

जैसे ही अर्धरात्रि निकट आई, बेंगलुरु आश्रम दिव्य ऊर्जा का केंद्र बन गया। "ॐ नमः शिवाय" के गूंजते मंत्रों से संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो उठा, जब गुरुदेव ने साधकों को गहन ध्यान में ले गए। रुद्रपाठ, प्राचीन वैदिक अनुष्ठान, और आत्मा को छू लेने वाले भजन एक दिव्य लय में समाहित हो गए, जिससे विश्वभर से आए श्रद्धालु भक्ति और आनंद में एक हो गए।

संगीत ने भी इस अद्भुत शिवरात्रि को विशेष स्वरूप प्रदान किया। ग्रैमी-नामांकित कलाकार राजा कुमारी ने अपनी भक्ति रचनाओं से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। साधो – द बैंड, अभंग रेपोस्ट, और निर्वाण स्टेशन जैसे इंडी बैंड्स ने भी प्रस्तुति दी, जो भारतीय भक्ति संगीत की कालजयी विरासत को नए युग के अनुरूप पुनः परिभाषित कर रहे हैं।

इस शुभ दिन का प्रारंभ लाखों श्रद्धालुओं द्वारा आश्रम के पावन शिव मंदिर में जलाभिषेक से हुआ। पूरे उत्सव के दौरान, आर्ट ऑफ लिविंग के  स्वयंसेवकों ने सभी भक्तों को महाप्रसाद वितरित किया। रात्रि जब परम निस्तब्धता में विलीन हुई, तब साधक शिव तत्त्व की अनुकंपा में डूबे और  भक्ति और कृतज्ञता से परिपूर्ण हो गए।

यह महाशिवरात्रि केवल एक उत्सव नहीं था—यह एक ऐतिहासिक क्षण था। पवित्र ज्योतिर्लिंग अवशेषों के भव्य पुनर्प्रतिष्ठापन से पहले उनके प्रथम दर्शन के साथ, यह रात्रि श्रद्धा, भक्ति और सनातन धर्म की अनंत शक्ति का दिव्य प्रमाण बन गई।

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