RSS और BJP का एक दूसरे के बिना नहीं गुजारा, फिर भी अनसुलझे रह गए संघ की वार्षिक बैठक में कई मुद्दे

Edited By Mahima,Updated: 11 Sep, 2024 09:44 AM

rss and bjp cannot live without each other

हाल ही में केरल के पलक्कड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की वार्षिक बैठक में मोहन भागवत द्वारा दिया गया बयान सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। भागवत ने कहा कि “हमें खुद को भगवान नहीं मानना चाहिए, लोगों को तय करने दें कि आप में...

नेशनल डेस्क: हाल ही में केरल के पलक्कड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की वार्षिक बैठक में मोहन भागवत द्वारा दिया गया बयान सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। भागवत ने कहा कि “हमें खुद को भगवान नहीं मानना चाहिए, लोगों को तय करने दें कि आप में भगवान है या नहीं।” यह बयान तीसरी बार देखा जा रहा है कि इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना के तौर पर देखा जा रहा है।

आर.एस.एस. और भाजपा के बीच तनाव
जानकारों का कहना है कि भागवत का यह बयान संकेत देता है कि आर.एस.एस. और भाजपा के बीच अभी भी कुछ राजनीतिक मुद्दे अनसुलझे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे भगवान के काम करवाने का साधन हैं। इस बैठक में भाजपा के वरिष्ठ नेता जैसे जे.पी. नड्डा और बी.एल. संतोष भी शामिल थे। हालांकि, जानकारों का कहना है कि न तो भाजपा संघ के बिना चल सकती है और न ही संघ भाजपा के बिना।

चुनावों में संघ की भूमिका
संसदीय चुनावों के दौरान संघ की सक्रियता कम रही, जबकि मोदी ने आर.एस.एस. के प्रमुख एजेंडों जैसे राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 को हटाना, ट्रिपल तलाक और समान नागरिक संहिता को लागू किया। रिपोर्टों के अनुसार, भाजपा की 400 पार नारे से पैदा हुई आत्मसंतुष्टि के कारण संघ ने चुनाव प्रचार में उतनी सक्रियता नहीं दिखाई। इसके अलावा, नड्डा की टिप्पणी कि पार्टी को अब संघ के सहारे की जरूरत नहीं है, संघ को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई थी।

भविष्य के पार्टी अध्यक्ष पर दबाव
रिपोर्ट्स के अनुसार, वार्षिक बैठक के बाद संघ ने अपने मतभेदों को स्वीकार किया है और इन्हें परिवार के भीतर ही सुलझाने की बात की है। भाजपा और संघ नेतृत्व के सामने तत्काल मुद्दा यह है कि नड्डा के बाद पार्टी अध्यक्ष कौन बनेगा। कई नाम चर्चा में हैं, जिनमें सुनील बंसल, विनोद तावड़े, देवेंद्र फडणवीस, भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान शामिल हैं। अगर भाजपा चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती, तो पार्टी को अपने वरिष्ठ नेताओं जैसे राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी या शिवराज सिंह चौहान में से किसी को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपनी पड़ सकती है।

जाति जनगणना पर संघ का रुख
आर.एस.एस. ने अपनी वार्षिक बैठक में जाति जनगणना के पक्ष में बयान दिया है, जो कई लोगों को आश्चर्यचकित करने वाला था। संघ का मानना है कि जाति के आंकड़ों का उपयोग केवल सामाजिक कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि चुनावी राजनीति के लिए। इसके अनुसार, जाति जनगणना का उपयोग समाज के कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण के लिए किया जाना चाहिए, ताकि वे सत्ता संरचना में अधिक हिस्सेदारी की मांग कर सकें।

भाजपा की राह पर असर
जाति जनगणना को मंजूरी देने से भाजपा को विपक्ष के जाति जनगणना की मांग के तनाव से राहत मिल सकती है। भाजपा अभी तक जाति जनगणना पर निर्णय लेने में असमंजस में है, और आर.एस.एस. की जाति जनगणना को मंजूरी विपक्ष के अभियान की धार को कम कर सकती है और आगामी राज्य चुनावों में इस मुद्दे को कमजोर कर सकती है। यह स्थिति भाजपा और संघ के रिश्तों और भारतीय राजनीति में जाति जनगणना की भूमिका को लेकर महत्वपूर्ण संकेत देती है।

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