Edited By Mahima,Updated: 12 Nov, 2024 04:30 PM
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल (2025) में भारतीय रुपया 8-10% तक कमजोर हो सकता है, जो डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर तक पहुँच सकता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बाइडेन के कार्यकाल में रुपया पहले ही 14.5% कमजोर हो चुका...
नेशनल डेस्क: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी का रास्ता साफ हो गया है, और वह 2025 के जनवरी में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने जा रहे हैं। यह खबर भारत के लिए मिश्रित प्रतिक्रिया लेकर आई है। जहां कुछ लोग इसे भारत के लिए शुभ मान रहे हैं, वहीं एक नई रिपोर्ट ने यह आशंका जताई है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारतीय रुपया और कमजोर हो सकता है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से भारतीय रुपये की स्थिति बिगड़ सकती है और यह 8 से 10 प्रतिशत तक गिर सकता है।
रुपये की गिरावट का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, क्योंकि एक मजबूत डॉलर भारतीय आयात और विदेशी निवेश पर असर डालता है। ऐसे में इस रिपोर्ट ने रुपये के भविष्य के बारे में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला है। इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि रुपये की कमजोरी के पीछे क्या कारण हैं, और ट्रंप के कार्यकाल में इसकी स्थिति कैसे प्रभावित हो सकती है।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी गिरावट आई थी
SBI की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप के पहले कार्यकाल (2017-2021) के दौरान भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 11 प्रतिशत तक कमजोर हुआ था। इसके बाद बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद भी रुपया कमजोर होता चला गया और अब तक यह 14.5 प्रतिशत तक गिर चुका है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में यह गिरावट और बढ़ सकती है, और रुपया 8 से 10 प्रतिशत और टूट सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 87 से 92 रुपये के बीच जा सकती है, जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि बाइडेन के कार्यकाल के दौरान एक डॉलर की औसत कीमत 79.3 रुपये रही थी, जबकि अब एक डॉलर की कीमत 84 रुपये से ज्यादा हो चुकी है।
ट्रंप 2.0 के कारण रुपये की स्थिति क्यों हो सकती है कमजोर?
रुपये के कमजोर होने के कई कारण हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय व्यापार और मुद्रा बाजार की स्थितियां। रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले इसलिए गिरती है, क्योंकि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा ज्यादा है और भारतीय मुद्रा का मुकाबला विदेशी मुद्रा से होता है। भारत में अधिकांश व्यापार डॉलर में होता है, यानी विदेशों से आयातित वस्तुएं डॉलर में ही खरीदी जाती हैं, और भारतीय उत्पादों का निर्यात भी डॉलर में होता है। डॉलर की तुलना में रुपये की स्थिति उस वक्त कमजोर होती है जब भारत ज्यादा आयात करता है और निर्यात कम करता है। भारत का व्यापार घाटा (trade deficit) हमेशा अधिक रहता है, यानी भारत अधिक चीजें विदेशों से खरीदता है लेकिन कम चीजें बेचता है। यही कारण है कि रुपये की स्थिति हमेशा कमजोर रहती है। 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा लगभग 20 लाख करोड़ रुपये के आसपास था, जो यह दर्शाता है कि भारत की स्थिति अभी भी कमजोर है।
विदेशी मुद्रा भंडार और रुपये की कमजोरी
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की महत्वपूर्ण भूमिका है। RBI (Reserve Bank of India) के अनुसार, 1 नवंबर 2024 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 589.84 अरब डॉलर था। यह भंडार रुपये को स्थिर बनाए रखने में मदद करता है। लेकिन अगर भारत के पास डॉलर का भंडार कम होता है, तो रुपया कमजोर हो सकता है। जब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है, तो इसका असर रुपये पर सकारात्मक होता है, और जब यह घटता है, तो रुपये की कीमत गिरने लगती है। इसके बावजूद, भारत का व्यापार घाटा अधिक होने की वजह से रुपया कमजोर ही रहता है। भारत अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लगातार डॉलर खरीदता है, और यही कारण है कि रुपये की कमजोरी लगातार बनी रहती है।
क्या कभी मजबूत हुआ है रुपया?
अगर हम भारत के इतिहास पर नजर डालें तो यह देखा जा सकता है कि एक समय था जब रुपये की स्थिति मजबूत थी। 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के समय एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये थी। फिर 1965 तक यह मूल्य स्थिर रहा, लेकिन 1966 के बाद रुपये में गिरावट शुरू हो गई थी। 1975 आते-आते डॉलर का मूल्य 8 रुपये हुआ और 1985 तक यह 12 रुपये तक पहुंच गया था। 1991 में जब नरसिम्हा राव सरकार ने उदारीकरण की नीति अपनाई, तो रुपये में तेज गिरावट देखी गई। 2000 के आसपास रुपये की कीमत 45 रुपये प्रति डॉलर के आसपास पहुंच गई थी। हालांकि, कुछ सालों में रुपये ने सुधार भी देखा। 1977 से 1980 तक रुपया लगातार मजबूत हुआ, और 2003, 2004, 2005, 2007, 2010 और 2017 में भी रुपया कुछ समय के लिए डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ था। लेकिन यह सुधार लंबे समय तक नहीं टिक सका।
रुपये की गिरावट का असर और ट्रंप 2.0
यदि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में रुपये की कीमत और गिरती है, तो इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। आयात महंगे हो जाएंगे, और विदेशी निवेशकों के लिए भारत में निवेश करना महंगा हो सकता है। तेल जैसे आयातित सामान की कीमतों में बढ़ोतरी होगी, जिससे भारत की ऊर्जा लागत भी बढ़ सकती है। इसके अलावा, रुपये के कमजोर होने से भारतीय उत्पादों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकती हैं, जिससे भारत के निर्यातकों को फायदा हो सकता है। लेकिन यह फायदा लंबे समय तक नहीं रह सकता है, क्योंकि कमजोर रुपये का असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा। SBI की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारतीय रुपया 8 से 10 प्रतिशत तक कमजोर हो सकता है। इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, खासकर व्यापार घाटे और आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के रूप में। हालांकि, यह भी सच है कि रुपये की कीमतें हमेशा एक जैसे नहीं रहतीं और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर इसमें बदलाव आता रहता है।