Edited By Rahul Rana,Updated: 08 Dec, 2024 12:43 PM
गुजरात के पोरबंदर की एक अदालत ने 1997 के हिरासत में यातना मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को 'उचित संदेह से परे' साबित नहीं कर सका। पोरबंदर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश...
नेशनल डेस्क। गुजरात के पोरबंदर की एक अदालत ने 1997 के हिरासत में यातना मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को 'उचित संदेह से परे' साबित नहीं कर सका। पोरबंदर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने शनिवार को इस मामले में भट्ट को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि साक्ष्य के अभाव में भट्ट को संदेह का लाभ दिया गया। यह मामला आईपीसी की धारा 330 (कबूलनामा प्राप्त करने के लिए चोट पहुंचाना) और 324 (खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना) से संबंधित था।
राजकोट सेंट्रल जेल में बंद हैं संजीव भट्ट
संजीव भट्ट को पहले जामनगर के 1990 के हिरासत में मौत के मामले में आजीवन कारावास और 1996 में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स रखने के मामले में 20 साल की सजा मिली थी। वे फिलहाल राजकोट सेंट्रल जेल में बंद हैं।
अदालत ने अभियोजन पक्ष की दलीलें खारिज कीं
अदालत ने यह भी माना कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि नारन जादव को अपराध कबूल करने के लिए शारीरिक यातना दी गई थी। इसके अलावा अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी पर मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक मंजूरी प्राप्त नहीं की गई थी क्योंकि संजीव भट्ट उस समय एक लोक सेवक थे।
नारन जादव पर यातना देने का आरोप
यह मामला 1997 में हुआ था जब नारन जादव को पोरबंदर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। नारन जादव पर आरोप था कि वह 1994 के हथियार बरामदगी मामले में शामिल था। पुलिस ने उसे शारीरिक और मानसिक यातना दी जिसमें उसे उसके गुप्तांगों समेत शरीर के अन्य हिस्सों पर बिजली के झटके दिए गए थे। नारन जादव ने बाद में इस यातना के बारे में अदालत को बताया और जांच शुरू कराई गई।
अधिकारियों ने की एफआईआर दर्ज
15 अप्रैल, 2013 को अदालत ने इस मामले में संजीव भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई चौ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। भट्ट के खिलाफ पहले भी कई अन्य मामले दर्ज हैं जिनमें वह जामनगर हिरासत मामले और 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामलों में आरोपित हैं।
संजीव भट्ट का विवादों से गहरा नाता
बता दें कि संजीव भट्ट हमेशा विवादों में रहे हैं। उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर आरोप लगाए थे। इसके बाद से वे सुर्खियों में आए थे। उन्हें 2011 में निलंबित किया गया और 2015 में गृह मंत्रालय ने उन्हें 'अनधिकृत अनुपस्थिति' के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया था।