Edited By Radhika,Updated: 11 Mar, 2025 04:22 PM

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर के अधिकारियों की कड़ी आलोचना की और इसे "हठधर्मिता" का उदाहरण बताया, जब उन्होंने दिहाड़ी मजदूरों को नियमित करने के मामले में 2007 के हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया।
नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर के अधिकारियों की कड़ी आलोचना की और इसे "हठधर्मिता" का उदाहरण बताया, जब उन्होंने दिहाड़ी मजदूरों को नियमित करने के मामले में 2007 के हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारियों की निष्क्रियता चौंकाने वाली और अवमाननापूर्ण थी।
अधिकारियों का अनसुना आदेश
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि ग्रामीण विकास विभाग में काम कर रहे 14 से 19 साल तक के दिहाड़ी मजदूरों को नियमित करने के लिए 2007 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया था। राज्य अधिकारी ने उस आदेश को नज़रअंदाज करते हुए उन्हें परेशान करने वाले आदेश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि यह तानाशाही का स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें अधिकारियों ने कानून की अवहेलना की।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने 7 मार्च को दिए गए आदेश में कहा कि राज्य अधिकारियों का यह रवैया चौंकाने वाला था, क्योंकि 16 साल से अधिक समय बीत चुका था, लेकिन उन्होंने हाईकोर्ट के सरल आदेश का पालन नहीं किया। कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों पर 25,000 रुपये के जुर्माने को उचित ठहराया और कहा कि इस पर हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है।
अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही, यह भी कहा कि एकल न्यायाधीश ने सही कदम उठाते हुए दोषी अधिकारियों की गिरफ्तारी का आदेश दिया। हालांकि, कोर्ट ने वर्तमान में किसी प्रकार की अनुशासनात्मक कार्रवाई से खुद को रोका, क्योंकि अवमानना की सुनवाई एकल न्यायाधीश के पास अभी भी चल रही है।
मामला दायर करने का इतिहास
यह मामला 2006 में दायर किया गया था, जब ग्रामीण विकास विभाग में काम कर रहे दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों ने अपनी नौकरियों को नियमित करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, क्योंकि उन्होंने 14 से 19 वर्षों तक काम किया था।