Supreme Court : चुनाव से पहले फ्री वाली स्कीमों पर SC सख्त, केंद्र और EC को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

Edited By Utsav Singh,Updated: 15 Oct, 2024 03:04 PM

sc strict on free schemes before elections issued notice

चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त वादों को रिश्वत घोषित करने की मांग वाली याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को इस संबंध में नोटिस जारी किया है। याचिका में अनुरोध किया गया है कि चुनाव आयोग को ऐसे...

नई दिल्ली: चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त वादों को रिश्वत घोषित करने की मांग वाली याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को इस संबंध में नोटिस जारी किया है। याचिका में अनुरोध किया गया है कि चुनाव आयोग को ऐसे मुफ्त वादों पर रोक लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए जाएं। याचिका में कहा गया है कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दल अक्सर मुफ्त सुविधाएं देने का वादा करते हैं, जो भविष्य में वित्तीय बोझ का कारण बनते हैं।

चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया। इसके साथ ही, इस याचिका को लंबित मामलों के साथ भी टैग किया गया, जिससे इसकी गंभीरता को समझा जा सके। इस कदम से यह संकेत मिलता है कि अदालत इस मामले को गंभीरता से ले रही है और चुनावों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाने की आवश्यकता को महसूस कर रही है।

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वित्तीय बोझ का मामला
कर्नाटक के निवासी शशांक जे श्रीधर द्वारा दायर जनहित याचिका में यह कहा गया है कि मुफ्त के अनियमित वादे सरकारी खजाने पर अत्यधिक वित्तीय बोझ डालते हैं। याचिका में चुनाव आयोग से यह अनुरोध किया गया है कि वह चुनाव पूर्व अवधि के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले मुफ्त वादों को रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाए। याचिकाकर्ता का तर्क है कि इन वादों के कारण न केवल सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ता है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को भी कमजोर करता है।

सरकारी खजाने से वित्तपोषण का मुद्दा
याचिका में यह भी मांग की गई है कि विधानसभा या आम चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए गए मुफ्त उपहारों का वादा, यदि उनकी पार्टी चुनाव के बाद सरकार बनाती है, तो उसे सरकारी खजाने से वित्त पोषित किया जाएगा।

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रिश्वत के प्रस्ताव का मुद्दा
याचिका में यह भी कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत मुफ्त उपहारों का वादा दरअसल रिश्वत की पेशकश के माध्यम से वोट देने के लिए प्रेरित करने का एक भ्रष्ट आचरण है। राजनीतिक दल अक्सर चुनावी प्रचार के दौरान ऐसे वादे करते हैं, लेकिन वे यह स्पष्ट नहीं करते कि इन उपहारों का वित्त पोषण कैसे किया जाएगा। यह स्थिति न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करती है, बल्कि मतदाताओं के साथ भी धोखा करती है।

मतदाता और पारदर्शिता की कमी
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि पारदर्शिता की कमी के कारण सरकारें अक्सर इन मुफ्त वादों को पूरा करने में विफल रहती हैं, जिससे मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी होती है। याचिकाकर्ता ने यह चिंता भी व्यक्त की है कि मुफ्त का यह चलन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत को कमजोर कर रहा है। अब मतदाता नीतियों या शासन के रिकॉर्ड के बजाय तत्काल व्यक्तिगत लाभ के आकर्षण से प्रभावित हो रहे हैं, जो लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है।

 

 

 

 

 

 

 

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