Edited By Mahima,Updated: 20 Dec, 2024 09:55 AM
सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ते के मामले में महत्वपूर्ण आदेश दिया, जिसमें कहा गया कि महिलाएं अपने पति से गुजारा भत्ता मांगते समय उनके मौजूदा जीवन स्तर के आधार पर उम्मीद नहीं कर सकतीं। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता का उद्देश्य महिलाओं के...
नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण मामले में गुजारा भत्ते की मांग को लेकर अहम निर्देश दिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिला अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता मांगते समय उसके मौजूदा जीवन स्तर के हिसाब से उम्मीद नहीं कर सकती, क्योंकि गुजारा भत्ता का उद्देश्य किसी को दंडित करना नहीं, बल्कि महिलाओं के कल्याण को सुनिश्चित करना है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया में पत्नी को पति से "वसूली" करने का अधिकार नहीं है।
गुजारा भत्ते के कानून का उद्देश्य
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस पंकज मिथल शामिल थे, ने कहा कि गुजारा भत्ता महिलाओं के कल्याण के लिए निर्धारित किया गया है, न कि एक औजार के रूप में इसे किसी के खिलाफ दंडित करने या वसूली करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बेंच ने इस मामले में कहा कि महिला द्वारा गुजारा भत्ता की मांग करते समय यह ध्यान में रखना जरूरी है कि वह किसी एकतरफा संपत्ति के आधार पर अत्यधिक राशि की मांग न करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह प्रक्रिया परिवारों के बीच के विवादों को सुलझाने के लिए है, न कि किसी को आर्थिक रूप से संकट में डालने के लिए। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि कुछ महिलाएं गुजारा भत्ते के लिए दायर किए गए आवेदन में अपने पति की संपत्ति, स्थिति और आय के आधार पर अत्यधिक मांग करती हैं, जो कि सही नहीं है। इस तरह के दावों को इस कारण खारिज कर दिया जाता है क्योंकि इनका उद्देश्य सिर्फ वित्तीय लाभ प्राप्त करना नहीं, बल्कि कानूनी अधिकारों का सही तरीके से इस्तेमाल करना है।
पत्नी के जीवन स्तर से संबंधित गुजारा भत्ते का निर्धारण
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता की राशि का निर्धारण कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें महिला की आर्थिक स्थिति, विवाह की अवधि, दोनों पक्षों की आय, और पति-पत्नी के बीच के संबंधों की प्रकृति शामिल है। इसके अलावा, अदालत ने सवाल उठाया कि क्या महिला तब भी गुजारा भत्ता के लिए अपनी मांगें बढ़ाती, यदि किसी कारणवश पति के पास कोई संपत्ति या धन नहीं बचता। इसका मतलब यह है कि कोई भी गुजारा भत्ता का निर्धारण केवल पति की संपत्ति के आधार पर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य न तो किसी को दंडित करना है, न ही कोई दूसरे पक्ष से अतिरिक्त पैसे वसूलने का मकसद रखना है।
पति से गुजारा भत्ता की मांग
यह मामला एक ऐसे जोड़े से संबंधित था, जिनका तलाक प्रक्रिया में था और इस दौरान महिला ने अपने पति से गुजारा भत्ता की मांग की थी। महिला का आरोप था कि उसके पति की संपत्ति में अत्यधिक वृद्धि हुई है और वह अब अपनी पत्नी को उचित गुजारा भत्ता देने के योग्य हैं। महिला ने दलील दी कि उसका पति एक बहुत बड़ी संपत्ति का मालिक है, जिसमें अमेरिका और भारत दोनों देशों में कई बिजनेस और संपत्तियां शामिल हैं। उसने यह भी कहा कि उसके पति ने अपनी पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया था, जब उन्होंने उससे अलग होने का फैसला लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे पर यह टिप्पणी की कि कई मामलों में पत्नी और उसके परिवार न्यायालय का उपयोग सिर्फ संपत्ति और भरण-पोषण की राशि को बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि जब एक पत्नी अपने पति से संपत्ति के बराबर गुजारा भत्ता की मांग करती है, तो यह अधिकतर आर्थिक दबाव डालने का एक तरीका बन जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह अपनी पत्नी को 12 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता एक महीने के भीतर दे। यह राशि पत्नी के सभी दावों के लिए एकमुश्त समाधान के रूप में दी जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस राशि में शामिल होने वाली राशि को एक स्थायी भरण-पोषण राशि के रूप में पत्नी को दी जाएगी, जिससे वह अपनी जीवनशैली को बनाए रख सके। इससे पहले, पति ने 8 करोड़ रुपये के गुजारा भत्ते की राशि पर सहमति जताई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस राशि को बढ़ाकर 12 करोड़ रुपये करने का आदेश दिया। साथ ही, कोर्ट ने पुणे फैमिली कोर्ट के आदेश को स्वीकार किया, जिसमें कहा गया था कि पत्नी को 10 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। इस राशि में 2 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान करने का आदेश दिया गया, ताकि पत्नी को एक अतिरिक्त फ्लैट खरीदने के लिए पर्याप्त धन मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट की रुख
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि महिला द्वारा दायर किए गए आपराधिक आरोपों को रद्द किया जाए। महिला ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ क्रूरता, मानसिक प्रताड़ना और अन्य गंभीर अपराधों का आरोप लगाया था। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि ये आरोप वास्तविकता से बहुत दूर थे और अधिकतर मामलों में ऐसे आरोपों का इस्तेमाल केवल आर्थिक दबाव बनाने और संपत्ति हासिल करने के लिए किया जाता है। कोर्ट ने इस प्रकार के आरोपों का विरोध किया और आदेश दिया कि इन आपराधिक मामलों को खारिज किया जाए।
कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग की चिंता
कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई कि कुछ महिलाएं गुजारा भत्ते और आपराधिक आरोपों का इस्तेमाल केवल अपने पति से संपत्ति और अधिक भरण-पोषण की राशि वसूलने के लिए करती हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस कभी-कभी इन आरोपों को लेकर जल्दबाजी करती है और मामले में दोषी नहीं पाए गए लोगों को गिरफ्तार कर लेती है। इस पर अदालत ने यह कहा कि कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल महिला के सुरक्षा और कल्याण के लिए किया जाना चाहिए, न कि इसे दबाव बनाने या वसूली के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।