बड़ा झटका: School Fees में 50-80 फीसदी तक का इजाफा, अभिभावकों की जेब पर पड़ा असर

Edited By Rohini Oberoi,Updated: 07 Apr, 2025 12:14 PM

school fees increased by 50 80

एक सर्वे में यह सामने आया है कि देशभर के प्राइवेट स्कूलों में फीस में भारी बढ़ोतरी हो रही है जिससे मध्यमवर्गीय परिवारों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में प्राइवेट स्कूलों ने फीस में 50 से 80 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है।...

नेशनल डेस्क। एक सर्वे में यह सामने आया है कि देशभर के प्राइवेट स्कूलों में फीस में भारी बढ़ोतरी हो रही है जिससे मध्यमवर्गीय परिवारों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में प्राइवेट स्कूलों ने फीस में 50 से 80 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है। इस वृद्धि ने अभिभावकों को आर्थिक संकट में डाल दिया है खासकर उन परिवारों को जिनकी आय सीमित है।

यह सर्वे दिल्ली स्थित LocalCircles नामक संस्था द्वारा किया गया है जिसमें देशभर के 300 से ज्यादा जिलों से 85,000 से अधिक अभिभावकों की राय ली गई। सर्वे में खुलासा हुआ है कि अधिकांश प्राइवेट स्कूल हर साल 10-15% तक फीस बढ़ा रहे हैं जबकि कई स्कूलों ने न केवल फीस बढ़ाई है बल्कि नए खर्चों जैसे बिल्डिंग फीस, टेक्नोलॉजी चार्ज और मेंटेनेंस फीस भी जोड़ दिए हैं जो पहले कभी नहीं लिए जाते थे।

अभिभावकों का आरोप है कि स्कूलों की सुविधाओं में कोई खास सुधार नहीं हुआ है और न ही पढ़ाई की गुणवत्ता में कोई बदलाव आया है फिर भी फीस लगातार बढ़ रही है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 42% अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों के स्कूलों में फीस में 50% से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है जबकि 26% अभिभावकों ने कहा कि फीस 80% तक बढ़ी है।

इस सर्वे में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है। बहुत से स्कूलों ने प्राइवेट ट्रांसपोर्ट, डिजिटल लर्निंग और अन्य अतिरिक्त सेवाओं के नाम पर भी अलग से शुल्क लेना शुरू कर दिया है। कोरोना के बाद जहां ऑनलाइन शिक्षा एक मजबूरी बन गई थी वहीं कई स्कूलों ने इसे अपने मुनाफे का जरिया बना लिया है।

अब यह सवाल उठता है कि क्या शिक्षा का क्षेत्र सिर्फ एक मुनाफे का धंधा बनता जा रहा है? सरकार ने कुछ नियामक नियम बनाए हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि इन नियमों का सही तरीके से पालन नहीं हो पा रहा है। कई राज्यों में फीस नियंत्रण समितियां बनी हैं लेकिन उनकी भूमिका केवल कागजों तक सीमित रहती है जो ज्यादातर मामलों में प्रभावी नहीं हो पातीं।

फिलहाल अभिभावक अब सरकार से एक राष्ट्रीय नीति बनाने की मांग कर रहे हैं ताकि स्कूलों की फीस पर नियंत्रण लगाया जा सके और हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ हो सके।

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