Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 14 Apr, 2025 03:18 PM
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में 14 अप्रैल 2008 की रात एक दिल दहला देने वाली वारदात सामने आई, जिसने पूरे राज्य को झकझोर दिया था। बावनखेड़ी गांव में एक ही परिवार के सात लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
नेशलन डेस्क: उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में 14 अप्रैल 2008 की रात एक दिल दहला देने वाली वारदात सामने आई, जिसने पूरे राज्य को झकझोर दिया था। बावनखेड़ी गांव में एक ही परिवार के सात लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। शुरुआत में इसे डकैती माना गया, लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो सब हैरान रह गए। क्योंकि इस नरसंहार के पीछे कोई बाहरी नहीं बल्कि घर की ही बेटी शबनम और उसका प्रेमी सलीम था। शौकत अली का परिवार एक शिक्षित और सुसंस्कृत परिवार माना जाता था। खुद शौकत एक कॉलेज में लेक्चरर थे और उनकी बेटी शबनम गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षामित्र के तौर पर काम करती थी। परिवार में शौकत, उनकी पत्नी, दो बेटे, एक बहू, एक भतीजी और 11 महीने का एक पोता था। 14/15 अप्रैल 2008 की रात यह पूरा परिवार सदा के लिए खामोश हो गया।
अकेली बची बेटी, बनी शक की वजह
इस खूनी वारदात में सिर्फ एक ही सदस्य जिंदा बचा—शबनम। शुरुआत में वह खुद को मासूम और बेगुनाह बताती रही। उसने दावा किया कि वह छत पर सो रही थी और चोरों ने घर में घुसकर सबको मार डाला। मुख्यमंत्री मायावती तक उससे मिलने पहुंचीं। मीडिया से लेकर आमजन तक उसे दुखी बेटी मान रहे थे। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और जांच ने सबकुछ पलट दिया।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुला राज
पोस्टमार्टम में साफ हुआ कि सभी को पहले दूध में नशे की दवा दी गई थी, फिर कुल्हाड़ी से गला काटकर मारा गया। लेकिन सवाल यह था कि अगर सबको नशा दिया गया था तो शबनम कैसे बच गई? पुलिस ने इसी बिंदु को पकड़कर जांच आगे बढ़ाई और तब सामने आया एक चौंकाने वाला सच—इस नरसंहार की मास्टरमाइंड खुद शबनम थी।
जब प्यार बना पाप
शबनम और सलीम एक-दूसरे से प्रेम करते थे। लेकिन शबनम का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था। कारण था सलीम का मजदूर वर्ग से होना। एक शिक्षित और सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित परिवार को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। इसी विरोध को हटाने के लिए शबनम और सलीम ने मिलकर पूरे परिवार को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया।
14 अप्रैल की रात शबनम ने परिवार के सभी सदस्यों को दूध में नींद की दवा देकर सुला दिया। फिर सलीम को बुलाया और एक-एक करके सबकी गर्दन काटी गई। शबनम खुद अपने परिवार के बाल पकड़ती, और सलीम कुल्हाड़ी चलाता। जब सलीम 11 महीने के बच्चे तक पहुंचा तो वह पीछे हट गया। तब शबनम ने खुद उस मासूम की गला दबाकर हत्या की।
सच्चाई के बाद कानून का शिकंजा
पुलिस की जांच में दोनों ने अपराध कबूल कर लिया। कोर्ट ने 2010 में दोनों को मौत की सजा सुनाई। सजा सुनते ही एक नया मोड़ आया—शबनम प्रेग्नेंट थी। जेल में ही उसने सलीम के बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम ताज मोहम्मद रखा गया। पांच साल की उम्र में उस बच्चे को एक सामाजिक कार्यकर्ता ने गोद ले लिया।
अभी भी जेल में है शबनम
आज 17 साल बाद भी शबनम बरेली की जेल में बंद है। सलीम भी जेल में है। इनकी फांसी अब तक टली हुई है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट से लेकर राष्ट्रपति तक सजा की पुष्टि हो चुकी है। अगर फांसी दी जाती है, तो शबनम भारत की आज़ाद भारत में पहली महिला होगी जिसे फांसी की सजा दी जाएगी।
अमरोहा के लोगों की यादों में आज भी वह घटना जिंदा है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि उस दिन स्कूल बंद कर दिए गए थे, लोग घरों में सहमे हुए थे और जब पता चला कि बेटी ने ही इतना खौफनाक काम किया है तो विश्वास करना मुश्किल हो गया था।