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जब दादा गिन रहे थे अंतिम सांसें, तब शमशेर जर्मनी में रच रहा था इतिहास, अटारी के हॉकी प्लेयर की कहानी

Edited By Parminder Kaur,Updated: 28 Jul, 2024 03:22 PM

shamsher singh gave a great performance in the germany olympics

पाकिस्तान से सटा हुआ भारत का आखिरी गांव अटारी ने हमेशा वीरता की मिसाल पेश की है। यहां एक समय जंग में दुश्मनों को मात देने वाले सेनापति पैदा होते थे और आज भी यहां खेल जगत के नायकों का जन्म हो रहा है। इनमें से एक नाम हॉकी खिलाड़ी शमशेर सिंह का है। जब...

नेशनल डेस्क. पाकिस्तान से सटा हुआ भारत का आखिरी गांव अटारी ने हमेशा वीरता की मिसाल पेश की है। यहां एक समय जंग में दुश्मनों को मात देने वाले सेनापति पैदा होते थे और आज भी यहां खेल जगत के नायकों का जन्म हो रहा है। इनमें से एक नाम हॉकी खिलाड़ी शमशेर सिंह का है।

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जब शमशेर सिंह देश के लिए जर्मनी में खेल रहे थे तो उनके दादा अपनी सांसे गिन रहे थे।  शमशेर के दादा जोगिंदर सिंह थे, उन्होंने फाइनल मैच के एक दिन पहले दुनिया को अलविदा कह दिया था। इस दुखद स्थिति में भी शमशेर ने अपने खेल को नहीं छोड़ा और देश के लिए अपना योगदान दिया।


अटारी के शमशेर सिंह को आगामी पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए फिर से चुना गया है। भारतीय हॉकी टीम में शमशेर समेत 5 खिलाड़ी गुरु नगरी अमृतसर से हैं। शमशेर सिंह इस बार भी पूरे उत्साह और जोश के साथ मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं।

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साल 2021 के टोकियो ओलंपिक में शमशेर ने एक गोल दागकर टीम को कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, इस दौरान उनके दादा का निधन हो गया था। परिवार ने शमशेर को इस कठिन समय में मनोबल बनाए रखने के लिए दादा के निधन की खबर से बचाए रखा। इस कारण शमशेर अपने दादा को आखिरी बार नहीं देख सके और उनका अंतिम संस्कार भी परिवार के सदस्यों ने अकेले ही किया।

जीविका का आधार खेतीबाड़ी

शमशेर सिंह के पिता हरदेव सिंह और मां हरप्रीत कौर ने बताया कि बेटे ने महज 10 साल की उम्र में हॉकी खेलने शुरू कर दिया था। परिवार की जीविका का आधार खेतीबाड़ी की 5 एकड़ जमीन है। बेटा स्कूल रोजाना पैदल ही जाता था। फिर उसे हॉकी का शौक पड़ा और फिर उसने मुड़कर नहीं देखा। 13 साल तक होते-होते उसने बेहतर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। जालंधर में हुए टूनमिंट के बाद शमशेर को सुरजीत हॉकी एकेडमी ने सिलेक्ट किया, वहां 7 साल पढ़ाई करने के साथ-साथ प्रैक्टिस की। जालंधर से 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद ग्रेजुएशन की। बाद में सीनियर टीम में सिलेक्शन के बाद उसे जर्मनी के टोकियो में आयोजित ओलिंपिक में खेलने का मौका मिला। उन्हें पूरा यकीन है कि उनका बेटा गोल्ड मेडल लेकर घर लौटेगा। यही नहीं भरोसा है कि वह इस बार भी इतिहास रचेगा।
 

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