Edited By Mahima,Updated: 19 Feb, 2025 09:44 AM
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महाकुंभ 2025 में गंगा और यमुना के जल की गुणवत्ता को लेकर गंभीर चिंताएं सामने आई हैं। CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, 73 जगहों से लिए गए जल के नमूने नहाने योग्य नहीं पाए गए। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सरकार और प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि...
नेशनल डेस्क: प्रयागराज महाकुंभ 2025 में गंगा और यमुना के जल की गुणवत्ता को लेकर एक गंभीर रिपोर्ट सामने आई है, जिसने प्रशासन और सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को सौंपी गई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 9 से 21 जनवरी तक महाकुंभ में 73 विभिन्न स्थानों से लिए गए जल के नमूने नहाने योग्य नहीं पाए गए। इस रिपोर्ट ने न केवल विपक्षी दलों को बल्कि हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक नेताओं को भी सरकार और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाने के लिए मजबूर किया है।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने उठाए सवाल
महाकुंभ में गंगा और यमुना के जल में प्रदूषण की समस्या को लेकर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सख्त प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे को पहले भी उठाते रहे हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। शंकराचार्य ने बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने महाकुंभ शुरू होने से पहले ही गंगा और यमुना के जल में प्रदूषण को लेकर चेतावनी दी थी। NGT ने आदेश दिए थे कि इन नदियों के जल को नहाने योग्य बनाने के लिए विशेष कदम उठाए जाएं, विशेष रूप से शहरों से निकलने वाले मल-जल को नदियों में गिरने से रोका जाए, ताकि लोगों को शुद्ध जल मिल सके। लेकिन शंकराचार्य के अनुसार, इन आदेशों की अवहेलना की गई और प्रशासन ने इसे नजरअंदाज किया।
पानी की गुणवत्ता पर न उठाए गए कदम
अविमुक्तेश्वरानंद ने यह भी आरोप लगाया कि महाकुंभ में पानी की गुणवत्ता की जांच के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। उन्होंने कहा, “जब NGT ने पहले ही आदेश दिया था, तब हमने अधिकारियों से कहा था कि वे नियमित रूप से तटों से पानी के नमूने लेकर उनकी गुणवत्ता की रिपोर्ट सार्वजनिक करें। लेकिन प्रशासन ने इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की। इसके परिणामस्वरूप मेला खत्म होने तक जल की गुणवत्ता की जांच नहीं की गई।”
वीडियो में दिखे लोग गंगा के प्रदूषित जल में मल दिखा रहे
शंकराचार्य ने यह भी आरोप लगाया कि कई वीडियो वायरल हुए हैं जिनमें लोग गंगा और यमुना के पानी में प्रदूषण दिखाते हुए मल (excreta) दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा, “गंगा मैया की पवित्रता में कोई बाधा नहीं हो सकती, लेकिन उनके भौतिक स्वरूप में अगर प्रदूषण है तो यह सीधे तौर पर सरकार की लापरवाही को दर्शाता है।” उन्होंने यह भी कहा कि पिछली बार अर्धकुंभ में सरकार ने यह वादा किया था कि महाकुंभ के दौरान गंगा में नालों को नहीं गिरने दिया जाएगा, लेकिन इस बार भी सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया और गंगा-यमुना का जल प्रदूषित ही रहा।
VIP को भी प्रदूषित जल में स्नान कराया गया
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सरकार की आलोचना करते हुए यह भी कहा कि VIP कल्चर के तहत अधिकारियों और वीआईपी व्यक्तियों को भी उसी प्रदूषित जल में स्नान कराया गया। उन्होंने कहा, “यह करोड़ों लोगों की आस्था और उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। जब सरकार इस विषय पर गंभीर नहीं है, तो इसका परिणाम यह हुआ कि सभी VIP व्यक्तियों को भी उसी प्रदूषित जल में स्नान करवा दिया गया।” शंकराचार्य ने यह सवाल उठाया कि जब सरकार वीआईपी के लिए विशेष इंतजाम करती है, तो उन्हें भी प्रदूषित जल में स्नान करने के लिए क्यों मजबूर किया गया।
सरकार की लापरवाही का खामियाजा
शंकराचार्य ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह न केवल महाकुंभ के आयोजकों की लापरवाही है, बल्कि यह करोड़ों भक्तों के स्वास्थ्य और उनके धार्मिक अधिकारों के साथ भी खिलवाड़ है। उन्होंने कहा, “यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस तरह की धार्मिक और धार्मिक आयोजन में लोगों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखे। लेकिन दुर्भाग्यवश, इस बार महाकुंभ में इस गंभीर मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।” महाकुंभ के दौरान गंगा और यमुना के जल में प्रदूषण को लेकर सामने आई रिपोर्ट और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की आलोचना ने इस मुद्दे को एक नई दिशा दी है। अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में जल की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए सरकार और प्रशासन पर्याप्त कदम उठा रहे हैं या नहीं।