Edited By Anil dev,Updated: 23 Jul, 2019 06:43 PM
सबसे कम उम्र में साहित्य अकादमी अवॉर्ड पाने वाले शायर शिवकुमार बटालवी आज ही के दिन 1936 में सियालकोट, पंजाब में जन्मे थे। बेहद कम उम्र में ही उनके अंदर के शायर ने अपनी काबिलियत से लोगों को वाकिफ कराना शुरू कर दिया था। शिव कुमार का कला के तरफ रूझान...
सबसे कम उम्र में साहित्य अकादमी अवॉर्ड पाने वाले शायर शिवकुमार बटालवी आज ही के दिन 1936 में सियालकोट, पंजाब में जन्मे थे। बेहद कम उम्र में ही उनके अंदर के शायर ने अपनी काबिलियत से लोगों को वाकिफ कराना शुरू कर दिया था। शिव कुमार का कला के तरफ रूझान कुछ ऐसा था कि दो-दो बार उन्होने अपनी कालेज की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। हालांकि इस दौरान उनको एक मशहूर पंजाबी लेखक की बेटी से प्यार हो गया। लेकिन ये प्यार जातिभेद की सूली चढ़ गया। जिसके बाद बटालवी का कविताओं और शाय़री में इसका दर्द साफ-साफ झलकने लगा।
एक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत,
गुम है, गुम है, गुम है...
साद मुरादी सोहणी फब्बत,
गुम है, गुम है, गुम है...
ये कविता उन्होने अपनी प्रेमिका के लिए तब लिखी जब वो उनसे दूर जा चुकी थी। लेकिन उसे ढूंढने की उनकी ये तलाश ने लोगों को इस कदर दीवाना कि लगा जैसे हर कोई उसे कुड़ी को ढूंढ रहा है।
मैंनू विदा करो
असां ते जोबन रूत्ते मरना,
मर जाणां असां बरे भराए,
हिजर तेरे दी कर परकरमा...
शिव कुमार की कविताओं में बिराह का पीड़ा कुछ इस कदर थी कि उनकी शायरी को पढ़ने के बाद मशहूर पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम ने उन्हे बिरहा के सुल्तान का नाम से नवाजा दिया।बेहद छोटी सी जिंदगी में बटालवी ने पंजाबी कविता और शायरी का मुकाम इस कदर उंचा कर दिया कि भाषा के पार हर कोई उनकी शायरी से खुद को जुड़ा महसूस कर सकता था। 1965 में उन्होने लूणा नाम का महाकव्य नाटिका की रचना की, जिसके लिए उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। ये अवॉर्ड पाने वाले वो अबतक के सबसे कम उम्र के साहित्यकार थे।
शिव कुमार अपनी शायरी गुरमुखी लिपि में लिखा करते थे। जबकि पाकिस्तान में पंजाबी लिखने के लिए शाहमुखी लिपि का इस्तेमाल होता है.। बावजूद इसके उन्हे ना केवल हिंदुस्तान बल्कि पाकिस्तान में भी बेहद शौक और दिलचस्पी के साथ पढ़ा जाता है। अमृता प्रीतम के बाद वो इकलौते शायर है जिसका पूरा कलाम पाकिस्तान में छप चुका है