Edited By Mahima,Updated: 29 Oct, 2024 02:26 PM
राजस्थान बोर्ड की 10वीं कक्षा के विज्ञान परीक्षा में छात्रों को कम अंक मिलने की चौंकाने वाली गड़बड़ी सामने आई है। जांच में पता चला कि कई कॉपियों का मूल्यांकन ही नहीं किया गया था। विशेष रूप से, मयंक नागर जैसे मेधावी छात्रों को उनके सही उत्तरों पर...
नेशनल डेस्क: राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10वीं कक्षा के विज्ञान विषय के परिणामों में आई चौंकाने वाली गड़बड़ी ने पूरे शिक्षा जगत को हिला कर रख दिया है। जब एक छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी करता है, तो उसके मन में अपने भविष्य के प्रति कई सपने और उम्मीदें होती हैं। वह अपनी मेहनत और लगन से परीक्षा में अच्छे अंक लाने की कोशिश करता है। लेकिन अगर उसे बिना किसी कारण के गलत अंक मिलें, तो उसका भविष्य अंधकार में चला जाता है।
छात्रों की कठिनाइयाँ
इस वर्ष के परिणामों में जब कुछ मेधावी छात्रों को अचानक से बेहद कम अंक मिले, तो उन्होंने अपनी मेहनत पर संदेह जताते हुए पुनर्गणना के लिए आवेदन किया। छात्रों का कहना था कि उन्होंने परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने की पूरी कोशिश की थी, फिर भी उन्हें अपेक्षाकृत कम अंक मिले। इनमें से एक प्रमुख नाम था मयंक नागर, जो एक प्रतिभाशाली छात्र हैं। मयंक की मेहनत पर पानी फिर गया, जब उन्हें सिर्फ 58 अंक मिले, जबकि उन्हें विश्वास था कि उनके उत्तर सही हैं।
जांच की प्रक्रिया
जब छात्रों ने अपनी उत्तर पुस्तिकाओं की जांच के लिए आवेदन दिया, तो बोर्ड ने उनकी कॉपियों को डाउनलोड करके देखना शुरू किया। यह जानकर सभी दंग रह गए कि उनकी कॉपियां ठीक से जांची ही नहीं गई थीं। पुनर्गणना के बाद जो तथ्य सामने आए, वे बेहद चौंकाने वाले थे। पता चला कि तीनों छात्रों की एक भी उत्तर पुस्तिका में किसी भी प्रश्न का मूल्यांकन नहीं किया गया था।
परीक्षक की लापरवाही
इस गड़बड़ी के पीछे का मुख्य कारण परीक्षक निमिषा की लापरवाही थी। उन्होंने बोर्ड को लिखित रूप में सूचित किया था कि उन्होंने बिना जांचे ही उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन पूरा कर लिया था। इससे भी चौंकाने वाली बात यह थी कि उन्हें विज्ञान के दो बंडल्स, अर्थात् 840 कॉपियों की जांच का काम सौंपा गया था। अब यह सवाल उठता है कि क्या अन्य छात्रों की कॉपियों की भी सही तरीके से जांच की गई है? क्या उनकी मेहनत को भी इस तरह से नजरअंदाज किया गया है?
शिक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल
इस घटना ने एक बार फिर से हमारी शिक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। क्या ऐसे में छात्रों की मेहनत और भविष्य का कोई मूल्य रह जाता है? शिक्षा प्रणाली की इस लापरवाही ने केवल छात्रों को ही नहीं, बल्कि शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों को भी शर्मसार किया है।
छात्रों की भविष्य की राह
इस मामले के बाद, छात्रों ने बोर्ड से न्याय की मांग की है। वे पुनर्गणना की प्रक्रिया का इंतजार कर रहे हैं, ताकि उन्हें अपने सही अंकों का मूल्यांकन मिल सके। यह मामला केवल एक गड़बड़ी नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की विफलता का प्रतीक बन गया है। छात्रों की मेहनत, समय और ऊर्जा का इस तरह से अनादर किया जाना न केवल गलत है, बल्कि इसके परिणाम भी गंभीर हो सकते हैं।
समाज की भूमिका
इस घटना ने यह भी स्पष्ट किया है कि समाज को शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए एकजुट होना पड़ेगा। क्या हम ऐसे मुद्दों पर चुप रह सकते हैं? क्या हमें अपने बच्चों के भविष्य के लिए आवाज उठाने की आवश्यकता नहीं है? यह समय है कि हम मिलकर एक बेहतर शिक्षा व्यवस्था की दिशा में कदम बढ़ाएं, ताकि भविष्य में किसी भी छात्र की मेहनत पर इस तरह का पानी न फिर सके। इस मामले ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमें अपने छात्रों को एक बेहतर और न्यायपूर्ण शिक्षा प्रणाली देने के लिए और अधिक प्रयास नहीं करने चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि छात्रों को उनके हक और उनके मेहनत का मूल्यांकन भी करना है। क्या हम ऐसा कर पा रहे हैं? यह सोचने का समय है।