Edited By Rahul Rana,Updated: 17 Apr, 2025 12:13 PM
बिजनौर जिले से एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहाँ एक 11 वर्षीय बच्चे ने स्कूल न जाने पर पिता की डांट से आहत होकर आत्महत्या कर ली। यह घटना समाज और परिवारिक व्यवस्था के उस पक्ष को उजागर करती है, जहाँ बच्चों की मानसिक स्थिति और भावनात्मक आवश्यकताओं...
नेशनल डेस्क: बिजनौर जिले से एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहाँ एक 11 वर्षीय बच्चे ने स्कूल न जाने पर पिता की डांट से आहत होकर आत्महत्या कर ली। यह घटना समाज और परिवारिक व्यवस्था के उस पक्ष को उजागर करती है, जहाँ बच्चों की मानसिक स्थिति और भावनात्मक आवश्यकताओं को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
घटना का स्थान और समय
यह दुखद घटना बिजनौर जिले के किरतपुर थाना क्षेत्र के मिल्कियां मोहल्ले में बुधवार को घटी। किरतपुर थाना प्रभारी (एसएचओ) वीरेंद्र कुमार ने बताया कि मृतक बच्चे का नाम शादान था, जो अपने पिता निसार के साथ रहता था।
बार-बार स्कूल न जाने पर डांट
पुलिस के अनुसार, शादान बीते कुछ समय से स्कूल नहीं जा रहा था। जब उसके पिता निसार को इस बारे में जानकारी मिली, तो उन्होंने बेटे को डांटा। पिता की डांट का बच्चे पर इतना गहरा असर पड़ा कि वह मानसिक रूप से टूट गया।
घर से निकलने के बाद हुआ हादसा
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि डांट खाने के बाद शादान गुस्से और दुख में घर से बाहर चला गया। जब वह काफी समय तक घर नहीं लौटा, तो परिवार वालों को चिंता हुई और उन्होंने उसकी तलाश शुरू की।
शव पास के खाली प्लॉट में मिला
काफी खोजबीन के बाद शादान का शव पास ही के एक खाली प्लॉट में मिला। वह एक दीवार पर लगे हुक से लटका हुआ था, जिससे साफ था कि उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह दृश्य देखकर परिवार वालों का रो-रोकर बुरा हाल हो गया।
पुलिस ने शव को भेजा पोस्टमार्टम के लिए
किरतपुर थाना पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और आगे की जांच जारी है। पुलिस का कहना है कि सभी पहलुओं की गंभीरता से जांच की जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि घटना में कोई और कारण या व्यक्ति तो जिम्मेदार नहीं है।
मनोवैज्ञानिक पहलू और सामाजिक चेतावनी
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हम अपने बच्चों की भावनात्मक ज़रूरतों को समझ पा रहे हैं? बच्चों पर पढ़ाई और स्कूल को लेकर दबाव बनाना, उन्हें डांटना या सज़ा देना कभी-कभी ऐसे भयावह परिणाम ला सकता है। यह समय है कि माता-पिता और अभिभावक बच्चों की भावनाओं को गंभीरता से लें और संवाद को प्राथमिकता दें।