Edited By Rahul Rana,Updated: 15 Dec, 2024 12:35 PM
इंसान अगर ठान ले तो कोई भी मुश्किल उसे अपनी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। यह कहानी है एक ऐसे युवा की जो गरीबी से लड़ते हुए भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बन गए हैं। उनका नाम है 23 वर्षीय कबीलन वी जो तमिलनाडु के एक छोटे से गांव मेलुर के रहने वाले...
नेशनल डेस्क। इंसान अगर ठान ले तो कोई भी मुश्किल उसे अपनी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। यह कहानी है एक ऐसे युवा की जो गरीबी से लड़ते हुए भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बन गए हैं। उनका नाम है 23 वर्षीय कबीलन वी जो तमिलनाडु के एक छोटे से गांव मेलुर के रहने वाले हैं। बीते शनिवार को भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड में कबीलन ने भारतीय सेना में शामिल होने की शपथ ली और यह उनके परिवार के लिए एक गर्व का पल बन गया।
कबीलन का संघर्ष और सफलता
कबीलन के पिता वेट्रिसेल्वम पी जो एक दिहाड़ी मजदूर थे और महज 100 रुपये प्रतिदिन कमाते थे अब लकवाग्रस्त हो गए हैं और व्हीलचेयर पर रहते हैं। हालांकि उनके पिता अब स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं वे अपने बेटे की सफलता से बहुत खुश हैं। कबीलन की मां की मृत्यु तीन साल पहले कैंसर और कोविड-19 से हुई थी। इसके बावजूद कबीलन ने हार नहीं मानी और लगातार प्रयास करते हुए भारतीय सेना में सफलता प्राप्त की।
कबीलन कहते हैं, "यह सिर्फ मेरी व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों की सफलता है जो भारतीय सेना में शामिल होने का सपना देखते हैं। अगर एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा जो प्रतिदिन 100 रुपये कमाता है वह ऐसा कर सकता है तो कोई भी इसे हासिल कर सकता है।"
शुरुआत सरकारी स्कूल से
कबीलन की शुरुआती पढ़ाई मेलुर गांव के सरकारी स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने अन्ना विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की। सेना में जाने के लिए उन्होंने कई बार आवेदन किया लेकिन हर बार असफलता मिली। लेकिन उनके भीतर अपने लक्ष्य को पाने का दृढ़ संकल्प था इसलिए उन्होंने कभी हार नहीं मानी और आज भारतीय सेना का हिस्सा बन गए।
नौकरी के साथ पढ़ाई
कबीलन ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ परिवार की जिम्मेदारी भी उठाई। अपनी मां की मौत के बाद उन्होंने अपने छोटे भाई की पढ़ाई के लिए और पिता की देखभाल के लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने एनडीआरएफ में वाटरबोट सुपरवाइजर के रूप में नौकरी की ताकि परिवार का भरण-पोषण कर सकें। इस दौरान उन्होंने चेन्नई और कन्याकुमारी में बाढ़ के दौरान बचाव कार्यों में भाग लिया और लगभग 200 लोगों की जान बचाई।
कबीलन की मेहनत और संघर्ष
कबीलन के गुरु रिटायर्ड सब लेफ्टिनेंट सुगल एसन कहते हैं, "कबीलन ने अपने सपने को पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार का पालन-पोषण भी किया। उसने कई बार कठिनाइयों का सामना किया लेकिन कभी हार नहीं मानी। वह सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक काम पर जाते थे और फिर शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक पढ़ाई करते थे।"
आखिरकार कबीलन ने अपनी मेहनत और बलिदान से भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में अपनी जगह बनाई। उनका यह संघर्ष और सफलता दूसरों के लिए प्रेरणा है कि कोई भी सपना देखना और उसे पूरा करना संभव है चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।