Edited By Mahima,Updated: 16 Jan, 2025 04:31 PM
प्रयागराज महाकुंभ मेला 2025 में किन्नर अखाड़ा ने अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी से समाज में सम्मान और समानता का संदेश दिया है। किन्नर समुदाय की स्वीकृति और सामाजिक मान्यता में बदलाव की यह दिशा सनातन धर्म के सकारात्मक दृष्टिकोण से संभव हुई है। किन्नर...
नेशनल डेस्क: प्रयागराज का महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू हो चुका है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु संगम पर आकर स्नान कर रहे हैं और धार्मिक क्रियाएं संपन्न कर रहे हैं। इस मेले में एक विशेष और महत्वपूर्ण हिस्सेदारी किन्नर अखाड़े की है। किन्नर अखाड़ा तेरह प्रमुख अखाड़ों में से एक है और इसका स्थान इस बार विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गया है। किन्नर समुदाय ने महाकुंभ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए समाज में अपने अधिकारों और सम्मान की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ाया है।
महामंडलेश्वर पवित्रा नंद गिरी, जो किन्नर अखाड़े की प्रमुख संत हैं, ने बताया कि किन्नर समुदाय को पहले समाज में तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था, लेकिन सनातन धर्म ने उन्हें एक सम्मानित स्थान दिया है। किन्नर अखाड़ा 2013 में स्थापित हुआ था और तब से लगातार महाकुंभ जैसे आयोजनों में भाग ले रहा है। अब लोग किन्नर अखाड़े में आकर आशीर्वाद लेने में गर्व महसूस करते हैं। महामंडलेश्वर पवित्रा नंद गिरी ने बताया कि अब यह बदलाव आ चुका है कि श्रद्धालु किन्नरों को सम्मान और आशीर्वाद देने के लिए आते हैं, जबकि पहले यह समाज का एक हाशिये पर स्थित वर्ग हुआ करता था।
महामंडलेश्वर पवित्रा नंद ने श्रृंगार के महत्व को भी समझाया। उन्होंने कहा कि श्रृंगार सिर्फ बाहरी सुंदरता का प्रतीक नहीं होता, बल्कि यह आंतरिक शक्ति, आत्मविश्वास और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है। किन्नर समुदाय के लिए श्रृंगार एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उन्हें अपनी आंतरिक ऊर्जा और शक्ति का अहसास कराता है। उनका कहना था कि जैसे शिव और पार्वती का मिलन श्रृंगार के बिना अधूरा होता है, वैसे ही किन्नरों का अस्तित्व भी श्रृंगार के बिना अधूरा माना जाता है। किन्नर अखाड़े के सदस्य अपनी सुंदरता और श्रृंगार के लिए जाने जाते हैं, और यह उनकी आध्यात्मिकता का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
महाकुंभ में इस बार किन्नर अखाड़े द्वारा एक विशेष पूजा आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें अघोरी काली हवन जैसी शक्तिशाली पूजा शामिल है। यह पूजा एक रहस्यमय और ऊर्जा से भरपूर क्रिया मानी जाती है, जिसका उद्देश्य शांति, समृद्धि और शक्ति की प्राप्ति होता है। इसके साथ ही किन्नर अखाड़े की ओर से मां वैष्णो और मां कामाख्या की पूजा भी की जाएगी। इन पूजा विधियों के माध्यम से किन्नर अखाड़ा लोगों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना करता है।
किन्नर अखाड़े में श्रद्धालु दक्षिणा के रूप में एक रुपये का सिक्का देते हैं, जो न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि जीवन में समृद्धि और खुशहाली लाने का आशीर्वाद भी माना जाता है। इस सिक्के को श्रद्धालु अपने साथ लेकर जाते हैं और इसे अपने घर में रखते हैं, जिससे उनके जीवन में समृद्धि का आशीर्वाद बने रहता है। किन्नर अखाड़े की महाकुंभ में भागीदारी केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह किन्नर समुदाय के अधिकारों और सामाजिक स्वीकृति का प्रतीक भी है। यह बदलाव सनातन धर्म के सकारात्मक दृष्टिकोण का परिणाम है, जिसने किन्नर समुदाय को समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाया है। किन्नर अखाड़े की महाकुंभ में उपस्थिति से यह संदेश जाता है कि समाज में समानता, सम्मान और अधिकार सभी को मिलना चाहिए, चाहे वह किसी भी वर्ग, जाति या समुदाय से संबंधित हों।
महाकुंभ मेला एक विशाल और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन है, जो न केवल धार्मिक आस्थाओं को मजबूत करता है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समानता, सम्मान और समर्पण की भावना को भी फैलाता है। किन्नर अखाड़े का महाकुंभ में भाग लेना यह दर्शाता है कि समय के साथ समाज में बदलाव आ रहा है और किन्नर समुदाय अब समाज के मुख्यधारा का हिस्सा बन चुका है। यह उनके अधिकारों की एक महत्वपूर्ण मान्यता है और साथ ही यह समाज के एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में बड़ा कदम है।