दशहरे के रंग में रंगी दिल्ली, रावण के पुतलों से पटी राजधानी की सड़कें

Edited By Yaspal,Updated: 11 Oct, 2024 05:22 PM

streets of the capital covered with effigies of ravana

पश्चिमी दिल्ली के ततारपुर की सड़कें इन दिनों दशहरे के रंग में रंगी नजर आ रही हैं। बाजार में काफी हलचल है और कहीं राक्षसों के सिर तो कहीं धड़ व अन्य अंग कतारों में लगे हुए दिख रहे हैं।

नई दिल्लीः पश्चिमी दिल्ली के ततारपुर की सड़कें इन दिनों दशहरे के रंग में रंगी नजर आ रही हैं। बाजार में काफी हलचल है और कहीं राक्षसों के सिर तो कहीं धड़ व अन्य अंग कतारों में लगे हुए दिख रहे हैं। लोग पुतले खरीदने में जुटे हैं जबकि इन्हें बनाने वाले जल्दी-जल्दी अपने काम को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। शनिवार को जब रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों को फूंका जाएगा तो हर कहीं आग और धुआं दिखाई देने के साथ-साथ पटाखों की गूंज सुनाई देगी। यह बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाने वाला सदियों पुराना उत्सव है।

टैगोर गार्डन और सुभाष नगर के बीच का प्रसिद्ध इलाका 10 सिर वाले रावण और उसके भाइयों के पुतलों का एशिया का सबसे बड़ा बाजार है। ये पुतले एक फुट से लेकर 50 फुट तक के आकार में उपलब्ध हैं और इनकी कीमत लगभग 400 से 700 रुपये प्रति फुट है। पहली बार पुतले बनाने का काम कर रहे रमेश राठौड़ के अनुसार पैसा बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन काफी है। उन्होंने यूट्यूब से पुतले बनाने सीखे हैं और वह बेंगलुरु से यहां आए हैं।

रमेश ने कहा, "मैं बेंगलुरू में चीनी मिट्टी के बर्तन बनाता हूं। मैं यहां दिल्ली में अपने परिवार से मिलने आया था और चूंकि यहां ज्यादा काम नहीं थे, इसलिए मैंने सोचा कि मुझे भी कुछ पुतले बनाकर पैसे कमाने चाहिए।” रमेश (34) ने कहा, "मैंने यूट्यूब से यह कला सीखी और 150 पुतले बनाए। प्रतिक्रिया बहुत अच्छी रही है।" वह पिछले ढाई महीने से अपनी पत्नी और बहन के साथ मिलकर पुतले बना रहे हैं।

अधिकांश कारीगरों और विक्रेताओं ने कहा कि, इस त्योहारी सीजन में कारोबार में वास्तव में तेजी आई है जबकि पिछले कुछ साल महामारी के कारण स्थिति काफी खराब रही थी, तथा प्रदूषण के बढ़ते स्तर और पटाखों पर प्रतिबंध के कारण कई खरीदार इससे दूर रहे थे। रावण के मुंह पर चमकीले दांत चिपकाने में व्यस्त मोनू ने कहा, "पुतलों के कारोबार को बहुत नुकसान हुआ है। लेकिन इस बार मामला अलग है। दशहरे को लेकर लोगों में काफी उत्साह है। और हम चित्रकारों को भी अच्छा काम मिल रहा है। मैंने 60 से ज्यादा चेहरे बनाए हैं और यह सिलसिला जारी है।" वह प्रति सिर 200 से 500 रुपये तक कमा लेते हैं। अधिकांश कारीगर राजस्थान, हरियाणा और बिहार से आये दिहाड़ी मजदूर हैं, जिन्होंने अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए दिल्ली का रुख किया है। इन पुतलों में राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों की झलक भी दिखाई दे रही है।

महेंद्र पाल (74) ने कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक चिकित्सक से बलात्कार और हत्या के मामले का जिक्र करते हुए कहा, “रावण के एक पुतले पर ‘कोलकाता की बेटी को इंसाफ दो' लिखना चाहता था क्योंकि क्रूर हमलों और बलात्कार के पीछे जो लोग हैं, वे भी रावण ही हैं। वास्तव में, वे इससे भी बदतर हैं।"

लगभग 50 वर्षों से इस व्यापार से जुड़े पाल ने कहा कि महामारी के बाद से चीजें निश्चित रूप से बेहतर हुई हैं, लेकिन वह उन दिनों को भी याद करत हैं जब उनके पुतले अमेरिका, कनाडा, जापान और दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया भर में पहुंचाए जाते थे। उन्होंने कहा कि कई पुराने लोगों की तरह वह कभी 60-100 पुतले बनाते थे, लेकिन अब केवल 20-30 ही बना पाते हैं। उन्होंने कहा, "मजदूरी से लेकर सामग्री तक, अब सब कुछ महंगा हो गया है। हमारे पास घर ले जाने के लिए बमुश्किल ही कोई मुनाफा होता है। उदाहरण के लिए, पहले हमें हर पुतले पर लगभग 800 रुपये मुनाफा होता था, लेकिन अब एक पुतले पर 500 रुपये की बचत भी बहुत बड़ी बात है।''

वहीं पहली बार पुतले बनाने वाले रमेश की नजर में 15 हजार रुपये का कुल मुनाफा भी उनके लिए काफी है और वह इतना मुनाफा कमा लेंगे। ग्राहकों से बस एक विनती करते हुए वह कहते हैं, "कृपया मोल-भाव न करें, इसमें बहुत मेहनत लगती है। 100-200 रुपये से आपकी जिंदगी में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन इससे मैं अपने बच्चों के लिए त्योहार के लिए कोई नया खिलौना, मिठाई का डिब्बा या कपड़े खरीद सकता हूं।”

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