Edited By rajesh kumar,Updated: 27 Dec, 2024 08:33 PM
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में 1950 के दशक के मध्य में छात्रवृत्ति पर पढ़ाई करते समय मनमोहन सिंह को भारी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था और कई बार ऐसा भी हुआ जब वह भोजन नहीं कर सके या कैडबरी की छह पेंस की चॉकलेट खाकर गुजारा करना पड़ा।
नेशनल डेस्क: कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में 1950 के दशक के मध्य में छात्रवृत्ति पर पढ़ाई करते समय मनमोहन सिंह को भारी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था और कई बार ऐसा भी हुआ जब वह भोजन नहीं कर सके या कैडबरी की छह पेंस की चॉकलेट खाकर गुजारा करना पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पुत्री दमन सिंह ने अपनी पुस्तक में यह जानकारी साझा की है। सिंह ने 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी की ऑनर्स डिग्री हासिल की थी।
किताब में किए कई खुलासे
दमन सिंह ने 2014 में हार्पर कॉलिन्स से प्रकाशित पुस्तक ‘‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरशरण'' में अपने माता-पिता की कहानी बताई है। दमन ने अपनी पुस्तक में यह भी बताया कि उनके पिता गांव में गुजारे गए अपने शुरुआती दिनों के कठिन जीवन के बारे में भी अक्सर बात करते थे। सिंह का जन्म पंजाब प्रांत के पश्चिमी क्षेत्र गाह में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। दमन ने याद किया कि जब एक बार उनकी बहन किकी ने पिता से पूछा कि क्या वह गाह वापस जाना चाहते हैं, तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, ‘‘नहीं, वास्तव में नहीं। वहीं पर मेरे दादा की हत्या हुई थी।''
पैसे की समस्या से जूझे मनमोहन सिंह
कैम्ब्रिज में अपने पिता के दिनों के बारे में लिखते हुए दमन ने कहा कि पैसा ही एकमात्र वास्तविक समस्या थी जो मनमोहन सिंह को परेशान करती थी क्योंकि उनके ट्यूशन और रहने का खर्च लगभग 600 पाउंड प्रति वर्ष था, जबकि पंजाब विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति से उन्हें लगभग 160 पाउंड मिलते थे। उन्होंने लिखा, ‘‘बाकी की राशि के लिए सिंह को अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता था। मनमोहन बहुत ही किफायत से जीवन व्यतीत करते थे। कैंटीन में सब्सिडी वाला भोजन दो शिलिंग छह पेंस में अपेक्षाकृत सस्ता था। वह कभी बाहर खाना नहीं खाते थे।'' इसके बावजूद अगर घर से पैसे कम पड़ जाते या समय पर नहीं आते तो वह संकट में पड़ जाते थे।
चॉकलेट खाकर गुजारा किया
किताब में कहा गया है, ‘‘जब ऐसा होता था, तो सिंह कई बार खाना नहीं खाते थे या कैडबरी की छह पेंस की चॉकलेट खाकर गुजारा करते थे। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में कभी पैसे उधार नहीं लिए थे।'' दमन ने यह भी जिक्र किया है कि कैसे उनके पिता पारिवारिक समारोहों और पिकनिक पर गीत गाते थे। उन्होंने लिखा, ‘‘जब भी हम पिकनिक पर जाते थे, लोग गाने गाते थे। सिंह को कुछ गाने आते थे। वह ‘लगता नहीं है जी मेरा' और अमृता प्रीतम की कविता ‘आंखां वारिस शाह नू, किते कब्रां विचों बोल' सुनाते थे।''