Edited By Parminder Kaur,Updated: 11 Oct, 2024 01:23 PM
अमृतसर के 35 वर्षीय सुधीर शर्मा उन लोगों में से हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए समर्पित हैं। वे 67 असहाय बेटियों के 'बाबुल' बनकर उनकी परवरिश कर रहे हैं। उनके पास खून का रिश्ता नहीं है, लेकिन उनका उद्देश्य इन बेटियों का भविष्य...
नेशनल डेस्क. अमृतसर के 35 वर्षीय सुधीर शर्मा उन लोगों में से हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए समर्पित हैं। वे 67 असहाय बेटियों के 'बाबुल' बनकर उनकी परवरिश कर रहे हैं। उनके पास खून का रिश्ता नहीं है, लेकिन उनका उद्देश्य इन बेटियों का भविष्य उज्ज्वल बनाना है और उन्हें समाज में सशक्त बनाना है।
सुधीर का प्रेरणादायक सफर
सुधीर शर्मा पिछले आठ वर्षों से इन बेटियों के अभिभावक की भूमिका निभा रहे हैं। उनका जीवन एक घटना से बदल गया, जब वे रेलवे स्टेशन जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक छोटी बच्ची को कूड़े में खाना तलाशते देखा। वह बच्ची कूड़े में फेंका हुआ खाना खा रही थी। यह दृश्य देखकर सुधीर का दिल दुख से भर गया। उन्होंने बच्ची को गोद में उठाया और उससे बातें की। बच्ची ने बताया कि उसके पिता नहीं हैं और उसकी मां भीख मांगकर गुजारा करती हैं।
सुधीर ने उस बच्ची की मां से कहा कि वे उसकी देखभाल करेंगे। इसके बाद उन्होंने बच्ची के घर में राशन की कोई कमी नहीं होने दी और उसे स्कूल में दाखिल भी करवाया। इस घटना के बाद उनकी निष्काम सेवा की यात्रा शुरू हुई। अब जब भी उन्हें असहाय बच्चियां नजर आती हैं, वे उनकी शिक्षा का जिम्मा उठाने का बीड़ा लेते हैं। उन्होंने ऐसे परिवारों से भी मिलना शुरू किया, जो अपनी बेटियों को पढ़ाने और उन्हें खाना देने में असमर्थ थे।
सुधीर शर्मा का यह निस्वार्थ कार्य समाज के लिए एक प्रेरणा है और वे बेटियों के हक में आवाज उठाते हैं, ताकि बाल विवाह, अशिक्षा, भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई जारी रख सकें। उनका हृदय अब इन बेटियों का एक अहम हिस्सा बन चुका है।