Edited By Anu Malhotra,Updated: 06 Nov, 2024 08:31 AM
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मोटर दुर्घटना मुआवजा मामले में आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि को अंतिम मानने से इनकार कर दिया। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि मृतक की आयु का निर्धारण स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र (टीसी)...
नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मोटर दुर्घटना मुआवजा मामले में आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि को अंतिम मानने से इनकार कर दिया। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि मृतक की आयु का निर्धारण स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र (टीसी) में दर्ज जन्म तिथि के आधार पर किया जा सकता है, न कि आधार कार्ड पर।
बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि किशोर न्याय कानून की धारा 94 के तहत टीसी में अंकित जन्म तिथि को वैधानिक मान्यता प्राप्त है। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने 2023 में एक परिपत्र जारी कर बताया था कि आधार पहचान के प्रमाण के रूप में उपयोग किया जा सकता है, पर इसे जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
इस आदेश के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें आधार कार्ड की जन्म तिथि को मुआवजे की गणना में निर्णायक माना गया था।
सभी हाईकोर्ट जजों को समान सेवा लाभ
एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट जजों को समान पेंशन और सेवा लाभ देने का निर्देश जारी किया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह निर्णय पटना हाईकोर्ट के एक जज और अन्य जजों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिकाओं में मांग की गई थी कि सेवा और बार कोटा से नियुक्त जजों के पेंशन और अन्य सेवा लाभों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 216 जजों की नियुक्ति के तरीके में कोई भेदभाव नहीं करता है। एक बार हाईकोर्ट जज बनने के बाद, सभी जज समान रैंक में आ जाते हैं और उनकी नियुक्ति के आधार पर वेतन, पेंशन या अन्य लाभों में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता और वित्तीय स्वतंत्रता का गहरा संबंध है, और जजों के सेवा लाभों में अंतर करना असंवैधानिक होगा।