Hyundai employee: बिना नोटिस के एंप्लॉय को निकाला...अब कंपनी को देने होंगे इतने लाख रुपये, SC का एक्शन

Edited By Anu Malhotra,Updated: 16 Dec, 2024 04:34 PM

supreme court decision on hyundai

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हुंडई ऑटोएवर प्राइवेट लिमिटेड के एक कर्मचारी के मामले में अहम फैसला सुनाया है। यह मामला 2021 का है, जब कंपनी ने एक कर्मचारी को बिना किसी नोटिस के नौकरी से निकाल दिया था। कर्मचारी की बर्खास्तगी का यह मामला जिला न्यायालय से...

नेशनल डेस्क:  सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हुंडई ऑटोएवर प्राइवेट लिमिटेड के एक कर्मचारी के मामले में अहम फैसला सुनाया है। यह मामला 2021 का है, जब कंपनी ने एक कर्मचारी को बिना किसी नोटिस के नौकरी से निकाल दिया था। कर्मचारी की बर्खास्तगी का यह मामला जिला न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कर्मचारी के पक्ष में निर्णय दिया और कंपनी को पांच लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया।

क्या है मामला?
हुंडई मोटर की सहायक कंपनी हुंडई ऑटोएवर प्राइवेट लिमिटेड ने 21 जनवरी 2021 को अपने एक कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया था। कंपनी ने इसके पीछे कर्मचारी की अनुपस्थिति और असहयोग का कारण बताया। हालांकि, कंपनी और कर्मचारी के बीच हुए समझौते में यह स्पष्ट था कि गोपनीयता से संबंधित शर्तों का उल्लंघन नहीं हुआ था, जिससे बर्खास्तगी का कोई ठोस आधार नहीं बनता था।

कानूनी लड़ाई की पूरी कहानी
कर्मचारी ने बर्खास्तगी के खिलाफ औद्योगिक विवाद अधिनियम (ID अधिनियम) के तहत शिकायत दर्ज की। इस दौरान कंपनी ने विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का सहारा लिया, लेकिन प्रक्रिया में अधिकार क्षेत्र की कमी के चलते कार्यवाही रोक दी गई। इसके बाद, हुंडई ऑटोएवर ने मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया, जहां हाई कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मध्यस्थता को अस्वीकार करते हुए कहा कि कंपनी का क्लॉज 19 लागू करना तर्कसंगत नहीं है। कोर्ट ने कंपनी के फैसले को बाद में सोच-समझकर उठाया गया कदम करार दिया और इसे गलत ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए हुंडई ऑटोएवर को आदेश दिया कि वह तीन महीने के भीतर कर्मचारी को पांच लाख रुपये मुआवजा दे।

इस निर्णय को कर्मचारी अधिकारों की जीत के तौर पर देखा जा रहा है और यह कार्यस्थल पर अनुचित व्यवहार के खिलाफ एक मिसाल कायम करता है।


 

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