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Supreme Court ने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए दिया तलाक, कहा- 'शादी टूटने का मतलब जीवन का अंत नहीं'

Edited By Mahima,Updated: 21 Feb, 2025 11:08 AM

supreme court granted divorce using its special privilege

सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच चल रहे विवाद को निपटारा करते हुए तलाक की मंजूरी दी और 17 मुकदमे समाप्त कर दिए। अदालत ने कहा कि शादी टूटने का मतलब जीवन का अंत नहीं है, और दोनों को अपने भविष्य की ओर देखना चाहिए। कोर्ट ने इस फैसले में अनुच्छेद 142 के...

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच चल रहे विवाद को सुलझाते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि शादी का टूटना यह नहीं दर्शाता कि जीवन खत्म हो गया है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, लेकिन इसे दोनों पक्षों के लिए एक नई शुरुआत के रूप में देखना चाहिए। इस फैसले के तहत अदालत ने तलाक की अनुमति दी और इस मामले से जुड़ी 17 अन्य कानूनी कार्यवाहियों को खत्म कर दिया।

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अभय ओका की अगुवाई वाली पीठ द्वारा की गई। कोर्ट ने मई 2020 में हुई शादी को खत्म कर दिया, जिसमें पति और पत्नी के बीच लगातार विवाद चल रहा था। दोनों के खिलाफ एक-दूसरे ने अलग-अलग मामलों में आरोप लगाए थे, जिनमें घरेलू हिंसा और उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप शामिल थे। पति-पत्नी के बीच 17 मुकदमे चल रहे थे, जिनमें उत्पीड़न और अन्य आरोपों के कारण रिश्ते में तनाव था। इन मुकदमों में से कई केसों में कोर्ट ने पति और पत्नी दोनों को अपनी परेशानियों को सुलझाने की सलाह दी, साथ ही यह भी कहा कि कानूनी लड़ाई को बढ़ाना कोई हल नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि शादी का टूटना जीवन का अंत नहीं होता और दोनों पक्षों को अपने भविष्य की ओर देखना चाहिए। कोर्ट ने यह विचार भी व्यक्त किया कि अगर शादी में कोई सफलता नहीं है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि दोनों की पूरी जिंदगी समाप्त हो गई है। अदालत ने दोनों पक्षों से कहा कि उन्हें अब शांतिपूर्वक अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए और एक नई दिशा में सोचना चाहिए।अदालत ने इस स्थिति को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया, क्योंकि शादी के एक साल के भीतर ही पत्नी ने अपने पति और ससुरालवालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया और ससुराल छोड़ने के लिए मजबूर हो गई। यह मामला यह दर्शाता है कि कभी-कभी रिश्तों में इतनी असहमति हो जाती है कि वे एक दूसरे से अलग होने के अलावा कोई रास्ता नहीं देखते।

आमतौर पर, तलाक के मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट में होती है, जहां पति-पत्नी को आपसी सहमति से तलाक लेना होता है या एक-दूसरे पर आरोप साबित करने पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में कम से कम छह महीने का समय लगता है। हालांकि, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए तलाक की मंजूरी दी। अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में निर्णय लेने का विशेष अधिकार है, जो न्याय सुनिश्चित करने के लिए जरूरी हो।

इस मामले में दोनों पक्षों के वकीलों ने अदालत से अपील की थी कि वे तलाक के मामले को जल्दी निपटाएं और विवादों को लंबा खींचने से बचें। इसके बाद, अदालत ने अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए तलाक को मंजूरी दी और संबंधित 17 मुकदमों को समाप्त कर दिया। महिला, जो 2020 से अपने माता-पिता के घर पर रह रही थी, अब अपने जीवन को एक नए मोड़ पर देख सकती है। कोर्ट ने इस फैसले के बाद दोनों पक्षों से कहा कि वे शांतिपूर्वक अपने जीवन में आगे बढ़ें और भविष्य के बारे में सोचें। इस फैसले को एक संदेश के रूप में देखा जा सकता है कि यदि शादी में विवाद और असहमति हो तो उसे समाप्त करने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि दोनों पक्ष अपने रिश्ते को समाप्त करने का निर्णय लें, लेकिन इससे जीवन समाप्त नहीं होता। एक नई शुरुआत हमेशा संभव है।

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