Sexual harassment in office: सुप्रीम कोर्ट ने POSH कानून के तहत महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए

Edited By Mahima,Updated: 04 Dec, 2024 11:00 AM

supreme court issued strict guidelines to ensure safety of women under posh act

सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पोश कानून के प्रभावी पालन के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से 25 मार्च, 2024 तक रिपोर्ट मांगी और निजी क्षेत्रों में अनुपालन बढ़ाने को कहा। निर्देशों में...

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वे सभी सरकारी और निजी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य संस्थाओं में यौन उत्पीड़न से संबंधित कानून "प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट (पोश)" के प्रभावी अनुपालन को सुनिश्चित करें। सर्वोच्च अदालत ने इस कानून के तहत आवश्यक कार्रवाई करने के लिए एक समयबद्ध योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं। 

कोर्ट ने सभी संबंधित अधिकारियों को 25 मार्च, 2024 तक इस कानून के पालन पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस आदेश में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक जिला में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंतरिक शिकायत समितियां (ICC) और जिला स्तर पर स्थानीय परामर्श समितियां (LCC) गठित की जाएं। इसके अलावा, महिलाओं को शिकायत दर्ज करने के लिए एक शीबॉक्स पोर्टल भी बनाने का निर्देश दिया गया है, जिससे वे आसानी से अपनी शिकायतें दर्ज कर सकें।

पोश कानून की अहमियत और अनुपालन की स्थिति
पोश कानून, जिसे 2013 में लागू किया गया था, का उद्देश्य कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाना और उनका सुरक्षा सुनिश्चित करना है। हालांकि, पिछले कई वर्षों में इस कानून के अनुपालन में कई खामियां रही हैं। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाया है और अधिकारियों से इस कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कदम उठाने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह शामिल थे। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर इस कानून के पालन में ढिलाई बरती जाती है, तो यह महिलाओं के लिए एक बेमानी कानून बनकर रह जाएगा और कार्यस्थल पर महिलाओं को वह सम्मान और सुरक्षा नहीं मिल पाएगी जिसके वे हकदार हैं। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे प्रत्येक जिले में एक जिला अधिकारी नियुक्त करें, जो 31 दिसंबर, 2024 तक कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ उचित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने दिए ये महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश

1. जिला अधिकारी की नियुक्ति: 31 दिसंबर, 2024 तक प्रत्येक जिले में एक जिला अधिकारी नियुक्त किया जाएगा जो पोश कानून के अनुपालन की निगरानी करेगा।  
2. स्थानीय शिकायत समिति का गठन: जिला अधिकारी 31 जनवरी, 2025 तक स्थानीय शिकायत समिति (LCC) का गठन करेंगे।  
3. नोडल अधिकारी की नियुक्ति: तालुका स्तर पर नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे।  
4. शीबॉक्स पोर्टल: सभी कार्यालयों में शीबॉक्स पोर्टल बनाने का निर्देश दिया गया, जहां महिलाएं अपनी शिकायतें दर्ज कर सकें।  
5. अधिकारियों की निगरानी: जिला मजिस्ट्रेट शिकायत समितियों का सर्वेक्षण करेंगे और रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।  
6. निजी क्षेत्र में अनुपालन: निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं से कहा गया है कि वे पोश कानून का पालन सुनिश्चित करें और इसके लिए आवश्यक कदम उठाएं।  
7. प्रवर्तन में निगरानी: मुख्य सचिवों से कोर्ट के निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए नियमित रिपोर्टिंग की जाएगी।  
8. 31 मार्च 2025 तक पालन सुनिश्चित करें: सभी सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में आंतरिक शिकायत समितियां (ICC) का गठन सुनिश्चित किया जाएगा और मार्च 2025 तक उनके कार्य को प्रभावी रूप से लागू किया जाएगा।

पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2023 में पोश कानून के अनुपालन में ढिलाई को लेकर कड़ी आपत्ति जताई थी। उस समय भी अदालत ने इस कानून के उद्देश्य को सही तरीके से लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। अदालत ने यह भी कहा था कि यदि अधिकारी कानून के पालन में ढिलाई बरतते हैं, तो यह कानून कभी सफल नहीं हो पाएगा और महिलाओं को कार्यस्थल पर वह सुरक्षा और सम्मान नहीं मिल पाएगा जो उनका अधिकार है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी और सरकारी अधिकारियों को कानून के पालन में सख्त रवैया अपनाने के निर्देश दिए थे। 

निजी क्षेत्र का अनुपालन कमजोर
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता पद्म प्रिया ने अदालत को बताया कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (DLSA) से जुड़े हेल्पलाइन नंबर (15100) के माध्यम से पीड़ित महिलाओं को सहायता दी जा रही है, साथ ही ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की भी सुविधा प्रदान की गई है। हालांकि, अदालत ने यह भी पाया कि निजी क्षेत्र के नियोक्ता पोश कानून के अनुपालन में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, और इस क्षेत्र में अभी भी बड़ी संख्या में कंपनियां इस कानून को लागू करने में विफल हैं। इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने जानकारी दी कि शीबॉक्स पोर्टल पर महिलाओं को अपनी शिकायतें दर्ज करने की सुविधा दी जा रही है, लेकिन निजी क्षेत्र के नियोक्ता इस पहल को पूरी तरह से अपनाने में संकोच कर रहे हैं।  

महिलाओं की सुरक्षा के लिए गंभीर कदम जरूरी
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अब कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर किसी भी तरह की कोताही नहीं बर्दाश्त की जाएगी। इस दिशा में सरकारों और निजी क्षेत्रों को सख्त कदम उठाने होंगे, ताकि महिलाएं कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षित रह सकें और उन्हें सम्मान और सुरक्षा मिल सके। इस निर्णय के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि पोश कानून का प्रभावी तरीके से पालन किया जाएगा, जिससे महिलाओं के लिए कार्यस्थल एक सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान बनेगा।

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