Edited By Mahima,Updated: 17 Dec, 2024 04:09 PM
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडरों की सुरक्षा पर केंद्र को नोटिस भेजा है। याचिका में ऑनलाइन पोर्नोग्राफी पर बैन, सार्वजनिक परिवहन में उचित व्यवहार और बलात्कारियों को नपुंसक बनाने की सजा की मांग की गई थी। कोर्ट ने इस सजा को बर्बर...
नेशनल डेस्क: भारत में महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडरों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (16 दिसंबर 2024) को एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया। इस याचिका में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए कुछ कड़े कदम उठाने का प्रस्ताव किया गया था। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने बलात्कारियों को नपुंसक बनाने जैसी सजा की मांग की थी, साथ ही सार्वजनिक परिवहन में उचित सामाजिक व्यवहार बनाए रखने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की भी बात कही थी। अदालत ने इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया, लेकिन बलात्कारियों को नपुंसक बनाने की सजा को 'अमानवीय' और 'बर्बर' बताते हुए उसे खारिज कर दिया।
याचिका में उठाए गए प्रमुख बिंदु
याचिकाकर्ताओं ने महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडरों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए विभिन्न सुझाव दिए थे। इनमें से कुछ मुख्य बिंदु थे:
1. ऑनलाइन पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध: याचिका में ऑनलाइन पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने की मांग की गई थी, ताकि इसका दुरुपयोग कर अपराधियों द्वारा महिलाओं का शोषण किया जा सके।
2. बलात्कारियों को नपुंसक बनाने की सजा: याचिकाकर्ताओं ने स्कैंडिनेवियाई देशों की तरह बलात्कारियों को नपुंसक बनाने की सजा देने की बात की थी, ताकि यौन हिंसा के अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा सकें।
3. सार्वजनिक परिवहन में उचित सामाजिक व्यवहार: याचिका में यह भी कहा गया था कि सार्वजनिक परिवहन जैसे बसों, मेट्रो और ट्रेनों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए नियम और दिशानिर्देश तैयार किए जाएं। साथ ही, इन स्थानों पर उचित सामाजिक व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानून लागू किए जाएं।
4. महिलाओं और बच्चों के लिए एक सुरक्षित माहौल: याचिकाकर्ता ने समाज में महिलाओं और बच्चों के लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट का रुख और प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस याचिका पर विचार करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। बेंच के सदस्य जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों पर अपनी टिप्पणी दी। अदालत ने बलात्कारियों को नपुंसक करने जैसी सजा को 'अमानवीय' और 'बर्बर' करार दिया। कोर्ट ने कहा, "यद्यपि हम इस बात से सहमत हैं कि महिलाओं के लिए सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह सजा सख्त और नकारात्मक असर डाल सकती है।" हालांकि, अदालत ने कुछ मुद्दों पर विचार करने की आवश्यकता जताई, जैसे कि सार्वजनिक परिवहन में उचित सामाजिक व्यवहार और महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी करने के बारे में। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मुद्दे समाज में जागरूकता पैदा करने के लिए जरूरी हैं और इन पर कदम उठाने की जरूरत है।
निर्भया कांड और मीडिया पर टिप्पणी
याचिकाकर्ता महालक्ष्मी पावनी ने अदालत में तर्क दिया कि भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, और इन घटनाओं के लिए मीडिया भी जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि कई घटनाओं को दबा दिया जाता है, खासकर छोटे शहरों और कस्बों में, जहां महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा की घटनाएं रिपोर्ट नहीं की जातीं। महालक्ष्मी पावनी ने निर्भया कांड का उदाहरण देते हुए कहा, "निर्भया कांड के बाद सरकार ने कई कड़े कानून बनाए थे, लेकिन क्या इन कानूनों का सही पालन हो रहा है?" उन्होंने मीडिया पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह इन घटनाओं को बढ़ावा देती है, और छोटी जगहों पर ये घटनाएं दबा दी जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में कहा कि वह महिलाओं की सुरक्षा के मामले में उठाए गए हर कदम का स्वागत करते हैं, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाए कि सभी कड़े कानूनों का सही तरीके से पालन हो।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सुरक्षा पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से सार्वजनिक परिवहन के मुद्दे पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, उन्हें सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "सार्वजनिक परिवहन में क्या करें और क्या नहीं करें, इसके बारे में व्यापक जागरूकता पैदा की जानी चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है।" कोर्ट ने यह भी कहा कि एयरलाइनों में भी कभी-कभी अनुचित घटनाएं होती हैं, जिनसे यह स्पष्ट है कि यह समस्या केवल सड़क और रेल परिवहन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे समग्र रूप से देखा जाना चाहिए।
अगली सुनवाई और आगे की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए जनवरी 2025 का समय निर्धारित किया है। अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया है कि संबंधित मंत्रालयों और विभागों से नोटिस जारी किया जाए और मामले में जल्द से जल्द उचित कार्रवाई की जाए।
सुप्रीम कोर्ट का संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला सुरक्षा के मामले में कोई भी सख्त कदम उठाना जरूरी है, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह कदम किसी भी व्यक्ति के अधिकारों के खिलाफ न जाए। अदालत ने कहा कि समाज में महिलाओं के लिए सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा, जागरूकता और कड़े कानूनों का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही, महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडरों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम के लिए सभी स्तरों पर और भी ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई ने महिला सुरक्षा के मामले में कई अहम सवालों को उठाया है। यद्यपि बलात्कारियों को नपुंसक बनाने की सजा को खारिज कर दिया गया, लेकिन अदालत ने सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया। इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होगी, जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में केंद्र सरकार और संबंधित विभागों से और अधिक जानकारी प्राप्त करेगा। यह प्रक्रिया महिला सुरक्षा को लेकर बड़े बदलावों की ओर एक कदम है।