न्याय की देवी का नया स्वरूप: SC ने आंखों से पट्टी हटाई, हाथ में तलवार की जगह अब संविधान की किताब

Edited By rajesh kumar,Updated: 16 Oct, 2024 07:40 PM

supreme court removes bandage puts constitution place sword hand

भारत की न्याय व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने ब्रिटिश काल के प्रतीक से आगे बढ़ते हुए न्याय की देवी की मूर्ति का नया रूप प्रस्तुत किया है। अब न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं होगी और उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान...

नेशनल डेस्क: भारत की न्याय व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने ब्रिटिश काल के प्रतीक से आगे बढ़ते हुए न्याय की देवी की मूर्ति का नया रूप प्रस्तुत किया है। अब न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं होगी और उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान दिखाई देगा। इस बदलाव की पहल देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने की है, जिनका मानना है कि कानून अंधा नहीं होता, बल्कि सभी को समान रूप से देखता है।

न्याय की देवी की नई मूर्ति
न्याय की देवी की यह नई मूर्ति सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट की जजों की लाइब्रेरी में स्थापित की गई है। पहले जहां उनकी आंखों पर पट्टी बंधी होती थी, अब उनकी आंखें खुली हैं। इसके साथ ही, उनके एक हाथ में जो पहले तलवार हुआ करती थी, उसकी जगह अब संविधान ने ले ली है। दाएं हाथ में तराजू पहले की तरह मौजूद है, जो समानता और निष्पक्षता का प्रतीक है।

CJI चंद्रचूड़ की सोच
CJI चंद्रचूड़ का मानना है कि अब वक्त आ गया है कि हम अंग्रेजी विरासत से आगे बढ़ें। उनके अनुसार, तलवार हिंसा का प्रतीक है, जबकि अदालतें हिंसा से नहीं, बल्कि संविधान के आधार पर न्याय करती हैं। इसलिए उन्होंने मूर्ति में तलवार की जगह संविधान रखने का निर्णय लिया। उन्होंने यह भी कहा कि कानून अंधा नहीं हो सकता। उसे सब कुछ देखना होता है, तभी निष्पक्ष न्याय हो सकता है।

क्यों किया गया बदलाव?
CJI दफ्तर के सूत्रों के मुताबिक, चंद्रचूड़ चाहते थे कि भारत की न्याय प्रणाली अब अंग्रेजों की बनाई परंपराओं से हटकर अपने संविधान और मूल्यों के अनुसार काम करे। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि लोगों को यह संदेश दिया जाए कि देश की न्याय व्यवस्था संविधान के अनुसार न्याय करती है, न कि हिंसा के प्रतीक के आधार पर।

न्याय की देवी की पुरानी मूर्ति का इतिहास
न्याय की देवी का इतिहास प्राचीन यूनान से जुड़ा है। यूनान में इन्हें जस्टिया कहा जाता था, और इन्हीं के नाम से 'जस्टिस' शब्द बना। ब्रिटिश काल में 17वीं शताब्दी के दौरान एक अंग्रेज अधिकारी भारत में यह मूर्ति लेकर आए। अंग्रेजों ने इसे अपने न्यायालयों में इस्तेमाल करना शुरू किया और यह मूर्ति भारत के न्यायालयों का भी हिस्सा बन गई। आजादी के बाद भी इस मूर्ति को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अब इसे बदलने का वक्त आ गया है।

नया संदेश
इस बदलाव के साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि भारत की न्यायपालिका अब "कानून अंधा है" जैसी पुरानी मान्यताओं से आगे बढ़ चुकी है। यह अब संविधान और कानून की स्पष्टता के आधार पर काम करेगी, ताकि सभी को निष्पक्ष और सटीक न्याय मिल सके।

 

 

 

 

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