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विवादित वक्फ अधिनियम पर केंद्र को सुप्रीम कोर्ट से फटकार, नियुक्तियों और अधिसूचना पर अंतरिम राहत

Edited By Rahul Rana,Updated: 17 Apr, 2025 08:52 PM

supreme court reprimands centre over controversial

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार के इस आश्वासन को दर्ज कर लिया कि पांच मई तक “वक्फ बाय यूजर” समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद तथा वक्फ बोर्डों में नियुक्तियां की जाएंगी। “वक्फ बाय यूजर”...

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार के इस आश्वासन को दर्ज कर लिया कि पांच मई तक “वक्फ बाय यूजर” समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद तथा वक्फ बोर्डों में नियुक्तियां की जाएंगी। “वक्फ बाय यूजर” संपत्ति लंबे समय से धार्मिक या परोपकारी उद्देश्य से इस्तेमाल की जा रही संपत्ति होती है, जिसके लिए लिखित दस्तावेज या रजिस्ट्री की जरूरत नहीं होती। केंद्र ने “वक्फ बाय यूजर” समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित करने और केंद्रीय वक्फ परिषदों व बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को नियुक्त करने की अनुमति देने वाले प्रावधान पर रोक लगाने के उच्चतम न्यायालय के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। पीठ ने कहा, "सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि प्रतिवादी सात दिन में संक्षिप्त जवाब देना चाहता है। उन्होंने कहा है और आश्वासन दिया है कि सुनवाई की अगली तारीख तक धारा 9 और 14 के तहत परिषद व बोर्डों में कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी।" अदालत ने कहा कि मेहता ने यह भी कहा है कि सुनवाई की अगली तारीख तक, अधिसूचना के माध्यम से पहले से पंजीकृत या घोषित 'वक्फ बाय यूजर' समेत वक्फ संपत्तियों की स्थिति से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और उन्हें गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा। 

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों की पीठ से आग्रह किया कि संसद द्वारा "उचित विचार-विमर्श के साथ" पारित कानून पर सरकार का पक्ष सुने बिना रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। इसके बाद पीठ ने विवादास्पद वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर प्रारंभिक जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार को एक सप्ताह का समय दिया और मामले की अगली सुनवाई के लिए पांच मई की तारीख तय की। मेहता ने कहा, "यदि माननीय न्यायाधीश 'वक्फ बाय यूजर' के बारे में कुछ कहेंगे, तो इसका क्या परिणाम होगा?" उन्होंने कहा, "हम सरकार और संसद के रूप में जनता के प्रति जवाबदेह हैं।" प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यदि किसी वक्फ संपत्ति का पंजीकरण 1995 के अधिनियम के तहत हुआ है, तो उन संपत्तियों को अगली सुनवाई तक गैर-अधिसूचित नहीं किया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा था। इनमें अदालतों द्वारा वक्फ घोषित की गईं संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने और केंद्रीय वक्फ परिषद व बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का प्रावधान शामिल है।

मेहता ने बृहस्पतिवार को पूछा कि क्या न्यायालय अधिनियम की कुछ धाराओं के प्रारंभिक अध्ययन के आधार पर अधिनियम पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक लगाने पर विचार कर सकता है। मेहता ने कहा, "यदि माननीय न्यायाधीश किसी वैधानिक प्रावधान पर रोक लगाने पर विचार कर रहे हैं, तो यह अपने आप में दुर्लभ होगा। हमें माननीय न्यायाधीशों को कानून के इतिहास और उसके बाद संशोधन के बारे में बताना होगा।" उन्होंने कहा कि सरकार को कई ज्ञापन प्राप्त हुए, जिसके परिणामस्वरूप अंततः संशोधित अधिनियम तैयार हुआ। उन्होंने कुछ उदाहरणों का हवाला दिया और कहा कि कई स्थानों पर निजी संपत्तियां वक्फ बताकर हड़प ली गईं। मेहता ने इसे "विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया विधेयक" बताते हुए कहा कि ये याचिकाएं राष्ट्रपति की ओर से अधिनियम को मंजूरी देने से पहले दायर की गई थीं और पीठ ने तुरंत इनपर विचार कर लिया। पीठ ने कहा, "हम इस मामले पर अंतिम निर्णय नहीं ले रहे हैं।" मेहता ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों पर रोक लगाना एक "कठोर कदम" हो सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार को अपना प्रारंभिक जवाब देने की अनुमति दी जानी चाहिए। 

मेहता ने कहा, "मुझे एक सप्ताह के अंदर प्रारंभिक जवाब दाखिल करने की अनुमति दीजिए, और एक सप्ताह में कुछ भी नहीं बदलेगा।" एक राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि "यदि एक या दो सप्ताह तक अंतरिम आदेश पारित नहीं किया गया तो आसमान नहीं गिर पड़ेगा।" मेहता ने कहा कि यदि कुछ राज्य न्यायालय के समक्ष नहीं भी पेश हुए तो भी उन राज्यों के वक्फ बोर्डों में नियुक्तियां नहीं की जाएंगी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "हम नहीं चाहते कि स्थिति बदले। कानून संसद बनाती है, कार्यपालिका निर्णय लेती है और न्यायपालिका व्याख्या करती है।" पीठ ने अपने समक्ष प्रस्तुत कुल याचिकाओं में से केवल पांच पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है। न्यायालय ने तीन वकीलों को नोडल वकील नियुक्त करते हुए उनसे कहा कि वे आपस में तय करें कि कौन दलीलें पेश करेगा। याचिकाकर्ताओं को सरकार का जवाब मिलने के पांच दिन के अंदर केंद्र के जवाब पर अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई है। पीठ ने कहा, "हम स्पष्ट करते हैं कि अगली सुनवाई (पांच मई) प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम आदेश के लिए होगी।" 

पीठ ने कहा कि 1995 के वक्फ अधिनियम और 2013 में किए गए संशोधन को चुनौती देने वाली रिट याचिका को अलग से वाद सूची में दर्शाया जाना चाहिए। बुधवार को पीठ केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को नियुक्त करने पर नाराजगी जताई थी और केंद्र से पूछा था कि क्या वह हिंदू धार्मिक न्यासों में मुसलमानों को शामिल करने को तैयार है। प्रधान न्यायाधीश ने नोटिस जारी करने तथा अंतरिम आदेश पारित करने का प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि इससे "समानताएं संतुलित होंगी।” प्रधान न्यायाधीश ने आदेश का प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि अधिनियम के कुछ प्रावधानों, विशेष रूप से न्यायिक रूप से मान्यता प्राप्त वक्फ संपत्तियों को कमजोर करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। पीठ ने कहा था, ‘‘अदालतों द्वारा वक्फ के रूप में घोषित संपत्तियों को वक्फ के रूप में गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वे उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ हों या विलेख द्वारा वक्फ हों, यद्यपि अदालत वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है।'' पांच अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद केंद्र सरकार ने अधिनियम को अधिसूचित किया था। 

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