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बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त फैसला, सरकार पर लगा दिया इतने लाख का जुर्माना

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 01 Apr, 2025 09:44 PM

supreme court s strict decision on bulldozer action

सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बुलडोजर से की गई तोड़फोड़ पर सख्त टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने इस कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करार दिया और इसे सत्ता...

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बुलडोजर से की गई तोड़फोड़ पर सख्त टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने इस कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करार दिया और इसे सत्ता का अमानवीय एवं गैरकानूनी दुरुपयोग बताया। सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को आदेश दिया कि वह बिना उचित प्रक्रिया के छह घरों को गिराने के लिए प्रभावित लोगों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी नागरिक के आश्रय को इस तरह से नष्ट नहीं किया जा सकता और यह कार्रवाई कानून के शासन के खिलाफ है।

 


'हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया' - सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की घटनाएं न्याय व्यवस्था और संविधान के मूल सिद्धांतों पर गहरा आघात करती हैं। कोर्ट ने कहा, "हम इस देश में कानून के शासन में विश्वास रखते हैं और किसी भी प्राधिकरण को यह अधिकार नहीं है कि वह नागरिकों के घरों को अवैध रूप से ध्वस्त करे।"

नोटिस देने की प्रक्रिया पर उठाए सवाल

कोर्ट ने ध्वस्तीकरण से पहले दी गई नोटिस प्रक्रिया पर कड़ी आपत्ति जताई। न्यायालय ने कहा कि 18 दिसंबर 2020 को जारी किया गया कारण बताओ नोटिस उसी दिन घरों पर चिपका दिया गया था। इसके बाद, 8 जनवरी 2021 को विध्वंस आदेश जारी कर दिया गया, जिसे भी केवल चिपकाकर सूचना दी गई। 1 मार्च 2021 को पहली बार पंजीकृत डाक से नोटिस भेजा गया, जो 6 मार्च को प्राप्त हुआ और अगले ही दिन तोड़फोड़ कर दी गई।

प्रभावित लोगों को नहीं दिया गया अपील का अवसर

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रभावितों को कानूनी प्रक्रिया के तहत अपील करने का अवसर भी नहीं दिया गया। धारा 27(1) के अनुसार, कारण बताने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए, लेकिन यहाँ 24 घंटे में ही कार्रवाई कर दी गई। यह पूरी तरह असंवैधानिक और अनुचित है।

अटॉर्नी जनरल ने किया मुआवजे का विरोध, कोर्ट ने ठुकराया

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं के पास वैकल्पिक आवास है, इसलिए उन्हें मुआवजा नहीं मिलना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि किसी भी परिस्थिति में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।

 

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