सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के मरीजों के इलाज का लिया संज्ञान, कल होगी सुनवाई

Edited By Yaspal,Updated: 11 Jun, 2020 10:53 PM

supreme court takes cognizance of treatment of corona patients

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी से संक्रमित मरीजों के उचित इलाज और मृत व्यक्तियों के शवों के साथ बेतरतीब प्रबंधन के आरोपों का स्वत: संज्ञान लेते हुए शुक्रवार को सुनवाई करने का निर्णय लिया है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और...

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी से संक्रमित मरीजों के उचित इलाज और मृत व्यक्तियों के शवों के साथ बेतरतीब प्रबंधन के आरोपों का स्वत: संज्ञान लेते हुए शुक्रवार को सुनवाई करने का निर्णय लिया है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ इस मामले में कल सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट वेबसाइट पर इस बाबत देर शाम पूरक कॉज लिस्ट जारी की गई। न्यायालय ने अस्पतालों में कोरोना संक्रमित मरीजों के उचित इलाज न किए जाने और मृत शवों के अनुचित प्रबंधन की मीडिया रिपोर्ट तथा पूर्व कानून मंत्री एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार के पत्र में वर्णित तथ्यों का स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई करने का निर्णय लिया।
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कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर अस्पतालों में कोरोना संक्रमित मरीजों के साथ ही नहीं बल्कि उनके शव के साथ भी बेतरतीब प्रबंधन की खबरों का हवाला देकर मामले का स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया था। उन्होंने अपने दावे के समर्थन मध्य प्रदेश में कोरोना के शिकार एक व्यक्ति के शव को जंजीरों में बांधकर रखने की खबरों का हवाला दिया था। उन्होंने अस्पतालों में कोरोना के कारण मृत व्यक्तियों के शव एक दूसरे पर रखे जाने का हवाला दिया था। उन्होंने सम्मान पूर्वक मरने के नागरिकों के अधिकार का भी पत्र में उल्लेख किया था। 
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बता दें कि देश में इस समय कोरोना के सक्रिय मरीजों की संख्या 137448 है और कोरोना के अब तक 141028 मरीज ठीक हो चुके हैं और मरीजों के ठीक होने की दर में समय के साथ लगातार इजाफा हो रहा है जो इस समय 49.21 प्रतिशत हो गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता लव अग्रवाल ने गुरूवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि इन दिनों भारत के कोरोना मरीजों की तुलना विश्व के अन्य देशों से की जा रही है लेकिन इस तरह की तुलना करना बेमानी है क्योंकि उन देशों की आबादी तथा भारत की आबादी में काफी अंतर हैं। कईं बार इस तरह की तुलना भ्रम पैदा करती है और मुख्य ध्यान इस तरह की संक्रामक बीमारी से निपटने पर हैं ना कि यह देखना कि विश्व के देशों की तुलना में हमारे यहां कितने केस हैं। अगर तुलना ही करनी है तो उसी देश से की जानी चाहिए जिसकी आबादी बराबर है क्योंकि तुलना हमेशा बराबर के आधार पर की जाती है।
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अग्रवाल ने देश में सामुदायिक संक्रमण के स्तर पर एक सवाल के जवाब में कहा कि यह शब्द संशय पैदा करने वाला है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है और भारत में भी इस समय सामुदायिक संक्रमण का स्तर नहीं देखा जा रहा है। कोरोना के कुछ मामले कुछ राज्यों के खास क्षेत्रों में अधिक देखे जा रहे हैं और उनके लिए कंटेनमेंट योजना बनाई जा रही है तथा इस योजना के पहले भी बेहतर परिणाम मिल चुके हैं। महाराष्ट्र के धारावी में कुछ दिनों पहले तक काफी मामले देखे जा रहे थे लेकिन वहां सघन कंटेनमेंट रणनीति अपनाई गई है और पिछले पांच दिनों से कोरोना का एक भी मामला सामने नहीं आया है। इस समय देश में आंकड़ों में उलझने के बजाय मरीजों के बेहतर इलाज को प्राथमिकता दी जानी जरूरी है और यही केन्द्र सरकार का भी लक्ष्य हैं। 

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