Edited By Mahima,Updated: 24 Dec, 2024 11:13 AM
स्वामी रामभद्राचार्य ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर आलोचना करते हुए कहा कि वह संघ के संचालक हैं, हिंदू धर्म के नहीं। उन्होंने धार्मिक अनुशासन और सत्य के आधार पर हिंदू संस्कृति की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही बांगलादेश में हिंदू...
नेशनल डेस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। मोहन भागवत ने कहा था कि कुछ लोग मंदिर-मस्जिद जैसे धार्मिक मुद्दों को इसलिए उठाते हैं ताकि वे खुद को हिंदुओं का बड़ा नेता स्थापित कर सकें, खासकर राम मंदिर के संदर्भ में। उनके इस बयान पर देशभर में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इन प्रतिक्रियाओं में सबसे तीखी प्रतिक्रिया स्वामी रामभद्राचार्य ने दी है, जिन्होंने कहा कि मोहन भागवत का बयान उनका व्यक्तिगत विचार हो सकता है, लेकिन वह संघ के संचालक हो सकते हैं, हिंदू धर्म के नहीं।
मोहन भागवत के बयान पर स्वामी रामभद्राचार्य की कड़ी प्रतिक्रिया
स्वामी रामभद्राचार्य ने मोहन भागवत के बयान पर मीडिया से बात करते हुए कहा, "यह उनका व्यक्तिगत बयान हो सकता है, हम इससे सहमत नहीं हैं। मोहन भागवत संघ के संचालक हो सकते हैं, लेकिन वह हिंदू धर्म के संचालक नहीं हैं।" स्वामी रामभद्राचार्य का स्पष्ट कहना था कि उनका और मोहन भागवत का दृष्टिकोण धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर भिन्न है। स्वामी रामभद्राचार्य ने यह भी कहा कि उनका ध्यान हमेशा धर्म के अनुशासन और सत्य पर रहता है, और वह अपनी धर्मिक जिम्मेदारियों को किसी भी राजनीतिक एजेंडे से परे रखते हैं। स्वामी रामभद्राचार्य ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य केवल मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों पर बयानबाजी करना नहीं है। उनका मानना है कि हिंदू धर्म की रक्षा करना और उसके प्रमाणित धार्मिक स्थलों की पुनर्स्थापना करना ही उनका मुख्य उद्देश्य है। "हम जहां भी प्राचीन मंदिरों के प्रमाण पाएंगे, उन्हें पुनः स्थापित करने का प्रयास करेंगे। यह कोई नई कल्पना नहीं है, बल्कि यह हमारे धर्म और संस्कृति का संरक्षण है," स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा।
हिंदू समाज में एकता की जरूरत
स्वामी रामभद्राचार्य ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा की घटना को लेकर भी अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे एक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताया। साथ ही उन्होंने हिंदू समाज में एकता की जरूरत को लेकर अपनी बात रखी। उनका कहना था, “हिंदू समाज को किसी भी प्रकार के ध्रुवीकरण से बचना चाहिए। हमें एकजुट होकर अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए। यदि हम आपस में ही बंट जाएंगे, तो इसका फायदा हमारे विरोधी उठा सकते हैं।” स्वामी रामभद्राचार्य ने हिंदू समाज से आग्रह किया कि वह अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धारा को बनाए रखते हुए समाज के लिए सकारात्मक काम करें।
बांगलादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार पर सरकार से कठोर कदम
स्वामी रामभद्राचार्य ने बांगलादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की भी कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि यह अत्याचार न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह हिंदू समाज के अस्तित्व के लिए भी खतरा है। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा, "हमारी सरकार इस मामले में पहले से कुछ कदम उठा रही है, लेकिन अब समय आ गया है कि सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर और भी कठोर रुख अपनाएं। हमें बांगलादेश में हिंदू समुदाय के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को पूरी दुनिया के सामने लाना होगा और इस पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी।" उन्होंने बांगलादेश सरकार से भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने की अपील की।
प्रयागराज में कुंभ मेला और उसके धार्मिक महत्व पर विचार
स्वामी रामभद्राचार्य ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होने वाले आगामी कुंभ मेले को लेकर भी अपनी खुशी जताई। उन्होंने कहा कि यह आयोजन हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक ऐतिहासिक और धार्मिक अवसर है। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि कुंभ मेला न केवल हिंदू धर्म का एक विशाल आयोजन है, बल्कि यह समाज में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता की भावना को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा, "कुंभ मेला हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित होता है और यह हमारे धर्म और संस्कृति के संरक्षण का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं और यह एक दूसरे के साथ मिलकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जो हमारे समाज की एकता का प्रतीक है।" स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि कुंभ मेला न केवल धार्मिक आयोजनों का स्थल है, बल्कि यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। उन्होंने आयोजकों से आग्रह किया कि वे इस अवसर का सही उपयोग करके और भी अधिक श्रद्धालुओं को इस मेले का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करें।
कांदिवली में भव्य राम कथा का आयोजन
स्वामी रामभद्राचार्य इन दिनों मुंबई के कांदिवली में आयोजित हो रही एक भव्य राम कथा में भाग ले रहे हैं, जहां वह सात दिनों तक राम कथा सुनाएंगे। इस आयोजन का उद्देश्य केवल धर्म का प्रचार-प्रसार करना नहीं है, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना है। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा, "राम कथा सिर्फ एक धार्मिक उपदेश नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में भक्ति, सत्य और धर्म के मूल्यों को समाहित करने का अवसर है। हमें इसे अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हम समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें।" राम कथा का आयोजन कांदिवली के ठाकुर विलेज में किया जा रहा है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है। स्वामी रामभद्राचार्य ने इसे धर्म का प्रसार और समाज में अच्छे कार्यों को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर बताया। उन्होंने कहा, "धर्म का प्रचार करना और लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना हमारा मुख्य उद्देश्य है।"
स्वामी रामभद्राचार्य का यह बयान मोहन भागवत के बयान पर तीव्र प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, और उन्होंने इस पर साफ तौर पर कहा कि वह मोहन भागवत के विचारों से सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार, उनका दृष्टिकोण हमेशा धर्म के अनुशासन और सत्य पर केंद्रित रहेगा, और वह अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। साथ ही, उन्होंने बांगलादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर सरकार से कठोर कदम उठाने की मांग की और हिंदू समाज को एकजुट होने का संदेश दिया। स्वामी रामभद्राचार्य के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि उनका ध्यान केवल धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर है, और वे किसी भी प्रकार के राजनीतिक विवादों से ऊपर रहकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।