ईंधन की 20 प्रतिशत मांग को बायोफयूलज के माध्यम से पूरा करने का लक्ष्य

Edited By Archna Sethi,Updated: 17 Oct, 2024 03:05 PM

target to meet 20 percent of fuel demand through biofuels

ईंधन की 20 प्रतिशत मांग को बायोफयूलज के माध्यम से पूरा करने का लक्ष्य


चंडीगढ़,17 अक्टूबर (अर्चना सेठी) पंजाब को बायोफयूलज उत्पादन में देश का प्रमुख प्रदेश बनाने के लिए पंजाब सरकार ने बायोफयूलज नीति तैयार की है, जिसका उद्देश्य साल 2035 तक सूबे की संपूर्ण ईंधन मांग का 20 प्रतिशत बायोफयूलज के माध्यम से पूरा करना है। यह जानकारी आज यहाँ पंजाब के नई और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत मंत्री अमन अरोड़ा ने "बायोफयूलज: री-इमेजिनिंग इंडिया ज के एनर्जी सेक्टर और सस्टेनबिलिटी इन एग्रीकल्चर" विषय पर करवाई गई राउंड टेबल चर्चा दौरान दी।


उन्होंने बताया कि इस नीति का उद्देश्य पंजाब में फसली अवशेषों से बायोफयूलज, जिनमें कम्प्रेस्ड बायोगैस (सी.बी.जी.), 2जी बायो-ईथेनॉल और बायोमास पैलेट्स शामिल हैं, के उत्पादन को प्रोत्साहित करना है। इस नीति के तहत कम से कम 50 प्रतिशत खेती और अन्य अवशेषों का उपयोग किया जाएगा, जिससे मिट्टी में जैविक सामग्री 5 प्रतिशत तक बढऩे की उम्मीद है। इससे प्रदेश के किसानों को बायोफयूलज फसलों की खेती और बायोमास की बिक्री से आय का अतिरिक्त स्रोत पैदा करने का मौका मिलेगा।

उन्होंने कहा कि पंजाब एक कृषि प्रधान प्रदेश है, इसलिए यहाँ बायोफयूलज के उत्पादन की अथाह संभावनाएँ हैं। सूबे में सालाना लगभग 20 मिलियन टन धान की पराली पैदा होती है, जिसमें से वर्तमान समय लगभग 12 मिलियन टन पराली की विभिन्न तरीकों से उपयोग की जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कम्प्रेस्ड बायोगैस (सी.बी.जी.) प्रोजेक्ट पराली जलाने की समस्या का सबसे प्रभावशाली हल है। धान की पराली और अन्य कृषि अवशेषों के आधार पर पंजाब ने प्रति दिन लगभग 720 टन सी.बी.जी. की कुल उत्पादन क्षमता वाले 58 सी.बी.जी. प्रोजेक्ट अलॉट किए हैं। इनके क्रियाशील होने पर हर साल लगभग 24-25 लाख टन पराली की खपत होगी, जबकि लगभग 5,000 व्यक्तियों के लिए प्रत्यक्ष और 7,500 अन्य व्यक्तियों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के मौके भी पैदा होंगे।

प्रदेश के किसानों, उद्योगों और अन्य भाईचारे को सरकार का साथ देने और सुनहरे भविष्य के लिए जैविक ईंधन पहलकदमियों को अपनाने की अपील करते हुए श्री अमन अरोड़ा ने पंजाब में नई हरित क्रांति लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि गेहूँ-धान के पारंपरिक फसली चक्र के कारण धरती के नीचे पानी का स्तर और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घटते जा रहे हैं। पारंपरिक ईंधन के मुकाबले बायोफयूलज कम ग्रीनहाउस गैसें पैदा करते हैं। इस प्रकार यह कृषि अवशेषों को ऊर्जा में बदलकर पर्यावरण पर पडऩे वाले हानिकारक प्रभाव को घटाकर और टिकाऊ कृषि अभ्यासों को प्रोत्साहित करके अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं।

 

उन्होंने मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बरकरार रखने और पारंपरिक फसली चक्र के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए प्रभावशाली रणनीतियों के माध्यम से अन्य बदली हुई फसलों की खेती करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि फसलों के उत्पादन में विविधता लाकर, किसान मिट्टी की उपजाऊ शक्ति और उपज में वृद्धि करने के साथ-साथ टिकाऊ कृषि विधियों को प्रोत्साहित कर सकते हैं जो पर्यावरण और कृषि उत्पाद दोनों के लिए लाभदायक होंगी।

 

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