Edited By Mahima,Updated: 10 Oct, 2024 11:55 AM
बिहार के बेगूसराय में शिक्षक जियाउद्दीन ने कक्षा सात के छात्रों को भगवान हनुमान को मुसलमान बताते हुए विवादित बयान दिया, जिससे अभिभावकों में आक्रोश फैल गया। हंगामे के बाद शिक्षक ने माफी मांगी। सांसद गिरिराज सिंह ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई, और जिला...
नेशनल डेस्क: बेगूसराय जिले के कद्राबाद हरिपुर में एक शिक्षक द्वारा भगवान हनुमान को लेकर दिए गए विवादित बयान ने धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाई है। शिक्षक जियाउद्दीन ने कक्षा सात के छात्रों को पढ़ाते समय यह दावा किया कि भगवान हनुमान मुसलमान थे और वह नमाज पढ़ते थे। इस बयान के बाद स्कूल में हंगामा मच गया, जिसके चलते स्थानीय समुदाय में गहरी नाराजगी फैली। यह मामला तब उजागर हुआ जब छात्रों ने अपने अभिभावकों को इस विवादित शिक्षा के बारे में बताया। जब अभिभावकों ने इस बात को सुना, तो उनमें आक्रोश फैल गया और उन्होंने स्कूल पहुंचकर शिक्षक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का निर्णय लिया। अभिभावकों का कहना था कि इस प्रकार की शिक्षाएं न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत करती हैं, बल्कि बच्चों के मन में भ्रम भी पैदा कर सकती हैं।
Parents' anger
अभिभावकों का मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में सही ज्ञान और सामाजिक समरसता का विकास करना है। उन्होंने बताया कि इस तरह की बयानबाजी से बच्चों में आपसी नफरत और गलतफहमियां बढ़ सकती हैं। अभिभावकों ने स्कूल के प्रबंधन से भी इसकी शिकायत की, और उन्होंने शिक्षक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
Teacher's reaction
विवाद बढ़ता देख शिक्षक जियाउद्दीन ने अपने बयान पर खेद जताया और लोगों से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि उनकी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नहीं थी। लेकिन उनकी माफी के बावजूद, अभिभावक और स्थानीय लोग संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने इस मुद्दे पर ठोस कार्रवाई की मांग की।
MP Giriraj Singh's objection
इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए बेगूसराय के सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के बयानों से समाज में तनाव बढ़ सकता है और इससे सामाजिक सौहार्द को खतरा होता है। सांसद ने जिला प्रशासन और बिहार सरकार से अनुरोध किया कि ऐसे शिक्षकों पर तुरंत कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों।
Social and political context
इस घटना ने समाज में एक बार फिर धार्मिक मुद्दों पर बहस छेड़ दी है। कई लोग यह मानते हैं कि शिक्षा संस्थानों में धार्मिक आस्था और संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता होना जरूरी है। यह मामला न केवल एक शिक्षक की बयानबाजी का है, बल्कि यह समाज में धार्मिक सहिष्णुता और आपसी सम्मान की आवश्यकता को भी उजागर करता है। इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि शिक्षा केवल ज्ञान का प्रसार नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक मूल्यों का निर्माण भी करती है। सभी समुदायों के बीच सौहार्द बनाए रखने के लिए जरूरी है कि शिक्षा में जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को प्राथमिकता दी जाए। अब देखने वाली बात यह होगी कि स्थानीय प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और क्या भविष्य में इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए ठोस नीतियां बनाई जाती हैं।