पृथ्वी पर पर ताजे पानी की मात्रा में गिरावट, महाद्वीप कर चुके हैं सूखे के चरण में प्रवेश

Edited By Mahima,Updated: 20 Nov, 2024 02:51 PM

the amount of fresh water on earth is declining

नासा और जर्मनी उपग्रहों से प्राप्त अवलोकनों के आधार पर किए एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि मई 2014 से धरती पर मीठे या ताजे पानी की कुल मात्रा में अचानक गिरावट आई है। शोधकर्ताओं ने शोध में कहा है कि यह बदलाव इस बात का संकेत दे रहा है कि पृथ्वी...

नेशनल डेस्क: नासा और जर्मनी उपग्रहों से प्राप्त अवलोकनों के आधार पर किए एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि मई 2014 से धरती पर मीठे या ताजे पानी की कुल मात्रा में अचानक गिरावट आई है। शोधकर्ताओं ने शोध में कहा है कि यह बदलाव इस बात का संकेत दे रहा है कि पृथ्वी के महाद्वीप सूखे के चरण में प्रवेश कर चुके हैं। मीठे या ताजे पानी के स्रोतों में झीलें, नदियां व भूमिगत जलभृतों का पानी शामिल है। शोध के मुताबिक साल 2015 से 2023 तक के उपग्रह मापों से पता चला है कि धरती में जमा मीठे या ताजे पानी की मात्रा साल 2002 से 2014 तक के औसत स्तरों से 1,200 क्यूबिक किमी से कम थी।

उत्तरी और मध्य ब्राजील से हुई पानी घटने की शुरुआत
शोधकर्ताओं की टीम ने जर्मन एयरोस्पेस सेंटर, जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियो साइंसेज और नासा द्वारा संचालित ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (जी.आर.ए.सी.ई.) उपग्रहों के अवलोकनों का उपयोग करके दुनिया भर में मीठे पानी में अचानक आई कमी का पता लगाया है। जी.आर.ए.सी.ई. उपग्रह मासिक पैमाने पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में उतार-चढ़ाव को मापते हैं जो जमीन पर और उसके नीचे पानी के द्रव्यमान में बदलावों को सामने लाते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया भर में मीठे पानी में गिरावट उत्तरी और मध्य ब्राजील में बड़े पैमाने पर सूखे के साथ शुरू हुई और इसके तुरंत बाद ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमरीका, उत्तरी अमरीका, यूरोप और अफ्रीका में बड़े पैमाने पर पड़े सूखे ने इसे आगे बढ़ाया। 2014 के अंत से 2016 तक उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र का बढ़ता तापमान 1950 के बाद से सबसे बड़ी एल नीनो घटनाओं में से एक सामने आई, जिससे वायुमंडलीय धाराओं में बदलाव आया जिसने दुनिया भर में मौसम और बारिश का पैटर्न को बदल दिया।

ताजा पानी के घटने के क्या हैं कारण
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सूखे के समय सिंचाई की जानी वाली खेती में बढ़ोतरी के साथ-साथ, खेतों और शहरों को भूजल पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रक्रिया में भूमिगत जल आपूर्ति में गिरावट का चक्र शुरू हो जाता है और मीठे पानी की आपूर्ति ठप हो जाती है, बारिश और बर्फबारी उन्हें फिर से भरने में कामयाब नहीं होती हैं, जबकि पानी के लिए जरुरत से ज्यादा अधिक भूजल पंप किया जाता है। साल 2024 में प्रकाशित पानी की कमी को लेकर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार उपलब्ध पानी में कमी से किसानों और समुदायों पर दबाव पड़ता है, जिससे अकाल, संघर्ष, गरीबी और बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में लोगों को दूषित जल स्रोतों का उपयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

ग्लोबल वार्मिंग भी हो सकती है बड़ी वजह
हालांकि अल नीनो के कम होने के बाद भी दुनिया भर में मीठे पानी में उछाल नहीं आया। जी.आर.ए.सी.ई. द्वारा देखे गए दुनिया के 30 सबसे तीव्र सूखे में से 13 जनवरी 2015 से हुए हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग भी मीठे पानी की लगातार कमी के लिए जिम्मेवार हो सकती है। नासा के एक मौसम विज्ञानी का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडल में अधिक जल वाष्प जमा हो जाती है, जिसके कारण ज्यादा बारिश होती है। जबकि साल में होने वाली कुल बारिश और बर्फबारी के स्तर में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता है, तीव्र बारिश की घटनाओं के बीच लंबी अवधि मिट्टी को सूखने और अधिक सघन होने देती है। इससे बारिश होने पर जमीन द्वारा अवशोषित किए जाने वाले पानी की मात्रा कम हो जाती है।

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