Edited By Parminder Kaur,Updated: 13 Dec, 2024 12:09 PM
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 17 साल की एक दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात (अबॉर्शन) कराने की अनुमति दी है। पीड़िता का मेडिकल टेस्ट कराया गया, जिसमें डॉक्टरों ने पाया कि लड़की 21 सप्ताह की गर्भवती है और उसका अबॉर्शन कराया जा सकता है। कोर्ट ने इसे मानवीय आधार पर...
नेशनल डेस्क. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 17 साल की एक दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात (अबॉर्शन) कराने की अनुमति दी है। पीड़िता का मेडिकल टेस्ट कराया गया, जिसमें डॉक्टरों ने पाया कि लड़की 21 सप्ताह की गर्भवती है और उसका अबॉर्शन कराया जा सकता है। कोर्ट ने इसे मानवीय आधार पर स्वीकृति देते हुए रायपुर स्थित पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में विशेष डॉक्टरों की निगरानी में अबॉर्शन कराने के आदेश दिए हैं।
क्या था मामला
बालौदाबाजार जिले की इस नाबालिग लड़की को जान-पहचान का एक युवक शादी का वादा करके लगातार शारीरिक संबंध बनाता रहा। इसके परिणामस्वरूप वह गर्भवती हो गई, जब उसने युवक से शादी की बात की, तो उसने इनकार कर दिया। इस पर लड़की ने पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई और पुलिस ने आरोपी युवक के खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज कर उसे जेल भेज दिया। इसके बाद लड़की के परिवार ने स्थानीय प्रशासन से गर्भपात की अनुमति मांगी, लेकिन कानूनी प्रावधानों के कारण उन्हें यह अनुमति नहीं मिल पाई।
हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका
लड़की के परिवार ने फिर हाईकोर्ट का रुख किया और गर्भपात की अनुमति देने की मांग की। हाईकोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए पीड़िता की शारीरिक और मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए गर्भपात की अनुमति दी।
कोर्ट का आदेश और दिशा-निर्देश
हाईकोर्ट के जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने अपने आदेश में कहा कि गर्भपात से पीड़िता की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। गर्भपात के दौरान सिकलसेल और एनीमिया जैसी जटिलताओं के कारण जोखिम हो सकता है। लेकिन, कोर्ट ने पीड़िता और उसके अभिभावकों की सहमति से अबॉर्शन कराने की अनुमति दी। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि गर्भपात के बाद भ्रूण के ऊतक और रक्त के नमूने सुरक्षित रखे जाएं। ताकि भविष्य में यदि डीएनए परीक्षण की आवश्यकता पड़े, तो ये नमूने उपयोगी हो सकें।
भविष्य में जांच के लिए डीएनए टेस्ट के निर्देश
कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि भविष्य में यदि जरूरत पड़े, तो इन नमूनों का उपयोग डीएनए परीक्षण के लिए किया जा सके। इस आदेश से यह स्पष्ट हो गया कि अदालत ने पूरी संवेदनशीलता के साथ इस मामले पर विचार किया और पीड़िता के स्वास्थ्य व मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया।
न्यायिक प्रक्रिया की अहमियत
यह मामला इस बात को उजागर करता है कि दुष्कर्म की पीड़िताओं के मामलों में कानूनी प्रक्रिया और संवेदनशीलता का पालन बेहद महत्वपूर्ण है, जहां एक ओर पीड़िता को शारीरिक और मानसिक रूप से सुरक्षित रखने की आवश्यकता थी। वहीं दूसरी ओर कानूनी अधिकारों का भी सम्मान किया गया।