Edited By Parveen Kumar,Updated: 26 Sep, 2024 07:33 PM
मैरिटल रेप, यानी पत्नी की इच्छा के बिना उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाने का मामला, देश में कानूनी बहस का विषय बना हुआ है। इसी संदर्भ में रांची की सिविल कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला आया है। रांची के अपर न्यायायुक्त की कोर्ट ने एक मामले में पति रणधीर...
नेशनल डेस्क : मैरिटल रेप, यानी पत्नी की इच्छा के बिना उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाने का मामला, देश में कानूनी बहस का विषय बना हुआ है। इसी संदर्भ में रांची की सिविल कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला आया है। रांची के अपर न्यायायुक्त की कोर्ट ने एक मामले में पति रणधीर वर्मा को दोषी करार दिया है, जिसमें उसने अपनी पत्नी के विरोध के बावजूद बार-बार उसके साथ यौन संबंध बनाए।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह स्थिति स्पष्ट रूप से महिला की सहमति के खिलाफ है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। यह निर्णय उन कानूनी बिंदुओं पर भी प्रकाश डालता है, जो मैरिटल रेप के मामलों में मौजूद हैं। इस फैसले ने न केवल पीड़ित महिला को न्याय दिलाने का कार्य किया है, बल्कि यह समाज में इस मुद्दे के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी मदद करेगा।
अभियुक्त रणधीर वर्मा पर यह आरोप था कि उसने अपनी पत्नी के विरोध के बावजूद लगातार यौन संबंध बनाने की कोशिश की, जिससे उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए, मौजूदा कानूनों के तहत उचित कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित किया है। यह निर्णय उन महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकता है, जो इस तरह के मामलों में न्याय की तलाश कर रही हैं।
पति को भेज दिया जेल
अदालत के इस फैसले के बाद अभियुक्त को जेल भेज दिया गया है। कोर्ट ने उसकी सजा पर सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख तय की है। रणधीर वर्मा के खिलाफ उसकी पत्नी ने 2015 में रांची के कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। मामले की सुनवाई के दौरान गवाहों के बयान और अन्य तथ्यों के आधार पर अदालत ने उसे दोषी ठहराया। महिला ने साल 2016 में पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का एक अलग केस सुखदेव नगर थाने में भी दर्ज कराया था। इस मामले की सुनवाई भी पूरी हो चुकी है, लेकिन उस पर अभी फैसला आना बाकी है।
SC में भी चल रहा मामला
मैरिटल रेप के मामलों में कर्नाटक और दिल्ली हाईकोर्ट के दो फैसलों पर कानूनी बहस चल रही है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है, जहां कई जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़कर सुनवाई करने का फैसला किया है। 24 सितंबर को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच में इसकी सुनवाई होनी थी, लेकिन केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा।