Edited By Utsav Singh,Updated: 22 Oct, 2024 08:58 PM
पाकिस्तान में राजनीति, विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा के सभी प्रमुख क्षेत्रों में पाकिस्तानी सेना की दखलंदाजी किसी से छिपी नहीं है। लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि पाकिस्तान की सेना वहाँ के दूसरे सबसे बड़े व्यवसायिक समूह का संचालन भी करती...
नेशनल डेसक : पाकिस्तान में राजनीति, विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा के सभी प्रमुख क्षेत्रों में पाकिस्तानी सेना की दखलंदाजी किसी से छिपी नहीं है। लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि पाकिस्तान की सेना वहाँ के दूसरे सबसे बड़े व्यवसायिक समूह का संचालन भी करती है। इस समूह का नाम है 'फौजी फाउंडेशन'।
फौजी फाउंडेशन का व्यापार विभिन्न क्षेत्रों में फैला है
एक रिपोर्ट के अनुसार, फौजी फाउंडेशन का व्यापार विभिन्न क्षेत्रों में फैला हुआ है, जिसमें खाद्य पदार्थों से लेकर बिजली तक शामिल हैं। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान के नागरिकों के जीवन के लगभग हर पहलू में सेना की उपस्थिति है। फौजी फाउंडेशन के तहत कई प्रकार की कंपनियाँ और संस्थान कार्यरत हैं, जो विभिन्न उद्योगों में सेवाएँ प्रदान करती हैं। इस प्रकार, पाकिस्तान की सेना की आर्थिक गतिविधियाँ भी वहां की सामान्य जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं।
देश में 32 वर्षों तक मार्शल लॉ लागू रहा
आपको बता दें कि पाकिस्तान और भारत दोनों ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की थी। हालांकि, पाकिस्तान में 32 वर्षों तक सैन्य हुकूमत यानी मार्शल लॉ लागू रहा, जिसके दौरान सेना की ताकत लगातार बढ़ती गई। इस अवधि के दौरान, सैन्य अधिकारियों के पास बड़े पैमाने पर जमीन और धन एकत्रित हो गया। पाकिस्तान में पैसे कमाने और संपत्ति प्राप्त करने के लिए सेना को सबसे प्रभावशाली और विश्वसनीय माना जाता है।
देश में लगभग 50 कंपनियों का संचालन करती है
पाकिस्तान की सरकार ने संसद में खुद स्वीकार किया है कि सेना देश में लगभग 50 कंपनियों का संचालन कर रही है। वास्तव में, पाकिस्तान की सेना दुनिया की एकमात्र सेना है, जिसका व्यापार न केवल देश के भीतर, बल्कि विदेशी बाजारों में भी फैला हुआ है। इसके लिए पाकिस्तानी सेना ने पाँच प्रमुख ट्रस्ट स्थापित किए हैं, जो इस व्यापारिक साम्राज्य को संचालित करते हैं। इनमें शामिल हैं: आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, फौजी फाउंडेशन, शाहीन फाउंडेशन, बहरिया फाउंडेशन, और डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटीज। ये ट्रस्ट सेना की व्यावसायिक गतिविधियों को व्यवस्थित करने और बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं।
सेना ने व्यवसायिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी प्राप्त कर ली
‘एशिया टाइम्स’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में पाकिस्तान की सीनेट को बताया गया था कि फौजी फाउंडेशन के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना के विभिन्न व्यावसायिक विंग्स, जैसे कि शाहीन फाउंडेशन, बहरिया फाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट और डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटीज के पास 20 अरब डॉलर से अधिक की आवासीय परिसंपत्तियाँ हैं। हालांकि, हाल के आंकड़ों के अनुसार, सेना के स्वामित्व वाले वेंचर्स की संख्या सैकड़ों में है। खबरों के मुताबिक, इन कंपनियों में सेना का कुल निवेश 100 अरब डॉलर से भी अधिक हो चुका है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तानी सेना ने व्यवसायिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी प्राप्त कर ली है, और उसकी व्यावसायिक गतिविधियाँ देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
सेना ने विभिन्न उद्योगों में महत्वपूर्ण निवेश किया है
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी सेना ने हाल ही में ईंधन क्षेत्र में भी कदम रखा है। पाकिस्तान में सेना पहले से ही कई महत्वपूर्ण व्यावसायिक क्षेत्रों में सक्रिय है, जैसे कि बैंकिंग, खाद्य सेवाएँ, रिटेल, सुपरस्टोर, सीमेंट, रीयल एस्टेट, हाउसिंग, निर्माण, निजी सुरक्षा सेवाएँ और बीमा कंपनियाँ। इस रिपोर्ट में 'मिलिट्री इंक' की लेखिका डॉक्टर आयशा सिद्दीका के हवाले से कहा गया है कि पाकिस्तान के निजी व्यवसायिक क्षेत्र में सेना की 100 अरब डॉलर से अधिक की हिस्सेदारी है। इसका मतलब यह है कि सेना ने विभिन्न उद्योगों में महत्वपूर्ण निवेश किया है और उसका व्यावसायिक प्रभाव व्यापक रूप से फैला हुआ है।
2005 में रक्षा मंत्रालय और संसद के बीच गतिरोध उत्पन्न...
डॉक्टर आयशा सिद्दीका ने यह भी खुलासा किया है कि 2005 में एक विवादित कारोबारी लेनदेन को लेकर पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय और वहां की चुनी हुई संसद के बीच गंभीर गतिरोध उत्पन्न हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार, फ्रंटियर ऑयल कंपनी, जो कि पाकिस्तान सेना के प्रबंधन वाले फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन की एक सब्सिडरी है, को 37 करोड़ डॉलर की लागत वाली 470 किलोमीटर लंबी तेल पाइपलाइन परियोजना का ठेका दिया गया था। इस परियोजना की लागत और ठेका मिलने की प्रक्रिया पर उठे सवालों ने रक्षा मंत्रालय और संसद के बीच संघर्ष को जन्म दिया। इस विवाद ने पाकिस्तान में सेना की व्यावसायिक गतिविधियों और उनके प्रबंधन के तरीकों पर सवाल उठाए हैं।