'जा दिए 500 करोड़', थिएटर में गूंज उठा हंगामा! लेकिन दूसरे पार्ट ने लोगों को किया निराश

Edited By Mahima,Updated: 05 Dec, 2024 03:36 PM

the second part disappointed people

पुष्पा 2: द रूल में पुष्पराज (अल्लू अर्जुन) का सामना नए दुश्मनों और पॉलिटिकल चुनौतियों से होता है। फिल्म में उसकी बढ़ती ताकत, परिवारिक संघर्ष, और बदला लेने की कहानी के बीच एक्शन और ड्रामा का जोरदार मिश्रण है। हालांकि, सेकंड हाफ में कुछ ढीलापन और...

नेशनल डेस्क: फिल्मों की दुनिया में कभी-कभी कुछ ऐसी फिल्में आती हैं, जो दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बना लेती हैं। 'पुष्पा: द राइज़' के बाद से ही दर्शकों के मन में 'पुष्पा 2: द रूल' को लेकर जबरदस्त उत्साह था। और जब यह फिल्म 2024 में रिलीज हुई, तो यह पूरी उम्मीदों पर खरा उतरी, लेकिन कुछ कमियां भी देखने को मिलीं। 'पुष्पा 2: द रूल' की कहानी की शुरुआत ठीक वहीं से होती है जहां 'पुष्पा 1: द राइज़' खत्म हुई थी। पहले फिल्म के अंत में, पुष्पराज (अल्लू अर्जुन) लाल चंदन की तस्करी करने वाले सिंडिकेट का सर्वेसर्वा बन चुका था।

इस फिल्म में अब पुष्पराज का अगला कदम और उसकी अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को दिखाया गया है, जो कि उसे और भी ताकतवर बनाती हैं। फिल्म की शुरुआत में ही, पुष्पराज की ताबड़तोड़ एक्शन एंट्री होती है, लेकिन कुछ ही मिनटों में उसकी कहानी घरेलू और पारिवारिक मोर्चे पर लौट आती है, जहां उसके सपने और उसकी पत्नी श्रीवल्ली (रश्मिका मंदाना) के साथ रिश्ते प्रमुख होते हैं। फिल्म में कई मोर्चों पर संघर्ष दिखाए जाते हैं – पहले तो पॉलिटिक्स में बढ़ते कदम, फिर अपने पुराने दुश्मन एसपी भैरों सिंह शेखावत (फहाद फासिल) से बदला लेने का मसला, और तीसरी तरफ, पुष्पराज के परिवार में एक अनसुलझा मुद्दा।

इसी के साथ, फिल्म की कहानी एक साथ तीन मोर्चों पर चलती है, जहां वह हीरो को इन तीनों में जीत दिलाने की कोशिश करती है। क्लाइमेक्स की ओर बढ़ते हुए, फिल्म इस मोर्चे पर जबरदस्त एक्शन और ड्रामा दिखाती है, और अंत में यही संदेश देती है कि अब 'सरकार' नहीं, बल्कि 'पुष्पराज' का राज चलेगा। फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण है अल्लू अर्जुन का दमदार अभिनय। उन्होंने पुष्पराज के किरदार को इतने बेहतरीन तरीके से निभाया है कि वह पूरी फिल्म में छाए रहते हैं। उनके डायलॉग, बॉडी लैंग्वेज, और वह ठसक जो वह हर सीन में दिखाते हैं, वह दर्शकों को बांधे रखती है।

फिल्म में एक दृश्य है जहां पुष्पराज एक पॉलिटिशियन से पूछते हैं कि सीएम बनने के लिए कितने पैसे चाहिए। जवाब में पॉलिटिशियन कहता है, '100 करोड़', और पुष्पराज चुप हो जाते हैं। इसी चुप्पी के बीच थिएटर में एक दर्शक शोर मचाता है – '200 करोड़', फिर दूसरा बोला, '1000 करोड़', और आखिरकार पुष्पराज का डायलॉग आता है – 'जा 500 करोड़ दिए।' थिएटर में तालियां और हंसी के ठहाके गूंजने लगते हैं। इस तरह के सीन दर्शकों को अपने हीरो के साथ जोड़ देते हैं और फिल्म का माहौल पूरी तरह से मसाला एंटरटेनमेंट से भर जाता है।

हालांकि फिल्म का पहला आधा हिस्सा काफी दिलचस्प और बंधे हुए ढंग से चलता है, सेकंड हाफ में कहानी में थोड़ी ढीलापन महसूस होती है। फिल्म की शुरुआत में जहां एक्शन, ड्रामा और भावनाओं के साथ तालमेल अच्छा था, वहीं बाद में कुछ सीन्स बिना किसी खास उद्देश्य के खींचे हुए लगते हैं। इसके साथ ही, फिल्म के विलेन शेखावत (फहाद फासिल) का किरदार पहले की तरह खतरनाक नजर नहीं आता। फिल्म में उन्हें हल्का और कभी-कभी कॉमिक नजरिया दे दिया गया है, जिससे फिल्म की टोन थोड़ी कमजोर हो जाती है। फिल्म में एक नया विलेन भी आता है, तारक पोनप्पा (जो कि एक प्रभावशाली अभिनेता हैं), लेकिन उनके किरदार को उतना अच्छा ढंग से लिखा नहीं गया, जितना अपेक्षित था। उनका मकसद पुष्पराज से सीधे तौर पर भिड़ना नहीं होता, जिससे वह कभी भी उसे खतरे में नहीं डाल पाते। हालांकि, तारक ने अपने अभिनय से किरदार में दम तो डाला, लेकिन राइटिंग में कमी के कारण उनका प्रभाव कुछ कम हो जाता है।

अल्लू अर्जुन के अभिनय की तारीफ करनी चाहिए। फिल्म के एक्शन सीन में उनका अभिनय शानदार था, लेकिन उन ठहरे हुए सीन्स में भी उन्होंने कमाल कर दिया, जहां उन्हें केवल अपनी आंखों और चेहरे के हाव-भाव से काम करना था। उनकी बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग डिलीवरी किसी भी दृश्यों में खुद को साबित करने के लिए पर्याप्त थी। वहीं, रश्मिका मंदाना ने भी अपने किरदार को अच्छे से निभाया, लेकिन उन्हें पहले हाफ में एक प्रॉप के तौर पर दिखाया गया, जो थोड़ा खटकता है। हालांकि, जब भी उन्हें अभिनय का मौका मिला, उन्होंने शानदार परफॉर्मेंस दी। फहाद फासिल का किरदार पहले जैसा प्रभावी नहीं था, और इसका कारण राइटिंग का सही से काम ना करना था। फिल्म के सपोर्टिंग एक्टर्स भी अच्छा काम करते हैं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण किरदारों का रोल फिल्म में सीमित कर दिया गया, जैसे सौरभ सचदेवा का किरदार, जिसे पूरी तरह से वेस्ट कर दिया गया।

फिल्म का हिंदी संस्करण कुछ समस्याओं से गुजरता है। लिप-सिंक का मसला कई जगह पर दिखाई देता है, जो कि एक बड़ी कमी बनकर उभरता है। इसके अलावा, फिल्म के गाने हिंदी में बहुत अच्छे नहीं लगे। तेलुगू में जो गाने जबरदस्त थे, हिंदी में उनकी ताजगी और ताकत गायब थी। इस कारण हिंदी दर्शकों का अनुभव थोड़ा कमजोर पड़ सकता है। साथ ही, फिल्म के सेकंड हाफ को थोड़ा खींचा गया है और उसमें 'पुष्पा 3' के लिए इशारे किए गए हैं, जो थोड़ा उबाऊ महसूस हो सकता है।

'पुष्पा 2: द रूल' को एक पूरे मास एंटरटेनर के रूप में देखा जा सकता है। फिल्म के डायरेक्टर सुकुमार ने इसे एक बेहतरीन एक्शन ड्रामा के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें अल्लू अर्जुन का स्टारडम पूरे फिल्म को अपनी पकड़ में बनाए रखता है। हालांकि, कुछ जगहों पर राइटिंग में ढीलापन, विलेन के कमजोर किरदार और हिंदी डबिंग की कमियां महसूस होती हैं, फिर भी यह फिल्म दर्शकों को एक पूरा मसाला एंटरटेनमेंट अनुभव देती है। 

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