मानवता की सफलता सामूहिक शक्ति में निहित है, युद्ध के मैदान में नहीं : प्रधानमंत्री मोदी

Edited By Parveen Kumar,Updated: 24 Sep, 2024 12:02 AM

the success of humanity lies in collective strength not in the battlefield

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में कहा कि मानवता की सफलता युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि सामूहिक शक्ति में निहित है।

नेशनल डेस्क : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में कहा कि मानवता की सफलता युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि सामूहिक शक्ति में निहित है। संयुक्त राष्ट्र महासभा हॉल के प्रतिष्ठित मंच से विश्व नेताओं को संबोधित करते हुए मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत नमस्कार से की और कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र में 1.4 अरब भारतीयों या मानवता के छठे हिस्से की आवाज लेकर आए हैं। ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन' को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय विश्व के भविष्य पर चर्चा कर रहा है, तो सर्वोच्च प्राथमिकता ‘‘मानव-केंद्रित दृष्टिकोण'' को दी जानी चाहिए। इससे पहले ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन' के पहले दिन विश्व नेताओं द्वारा सर्वसम्मति से ‘‘भविष्य का समझौता'' को मंजूरी दे दी थी। साथ ही ‘ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट' और ‘भविष्य की पीढ़ियों पर घोषणा पत्र' को भी स्वीकार कर लिया गया था। अपने पांच मिनट के संबोधन में मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि “मानवता की सफलता हमारी सामूहिक शक्ति में निहित है, युद्ध के मैदान में नहीं।”

‘भविष्य का शिखर सम्मेलन' और उसके बाद वार्षिक महासभा का उच्च स्तरीय सप्ताह इजराइल-हमास संघर्ष और यूक्रेन युद्ध के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, असमानता और गहरे भू-राजनीतिक विभाजन की चुनौतियों के बीच हो रहा है। समझौते के पांच व्यापक फोकस क्षेत्रों में सतत विकास, अंतरराष्ट्रयी शांति और सुरक्षा; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; युवा और भावी पीढ़ियां तथा वैश्विक शासन में परिवर्तन शामिल हैं। यह कल की पीढ़ियों के लिए अधिक सुरक्षित, अधिक शांतिपूर्ण, टिकाऊ और समावेशी दुनिया की दिशा में सदस्य देशों द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों और प्रतिबद्धता के लिए आधार तैयार करता है। अगले साल संयुक्त राष्ट्र के 80 साल पूरे होने के अवसर पर, यह समझौता वैश्विक संस्थाओं में सुधार, सतत विकास लक्ष्यों पर कार्रवाई के लिए आगे का रास्ता, जलवायु कार्रवाई और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग की आवश्यकता समेत अन्य क्षेत्रों को रेखांकित करता है।

हालांकि, इसमें इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समयसीमा नहीं बताई गई है। इस बात को रेखांकित करते हुए कि सुधार प्रासंगिकता की कुंजी है, मोदी ने कहा कि वैश्विक शांति और विकास के लिए वैश्विक संस्थाओं में सुधार आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में भारत की अध्यक्षता में अफ्रीकी संघ को जी-20 के स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किया जाना “इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।” भारत 15 देशों की सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए वर्षों से चल रहे प्रयासों में अग्रणी रहा है। भारत का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र की यह शक्तिशाली संस्था वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है, साथ ही इसने इस बात पर जोर दिया कि वह स्थायी सदस्यता का हकदार है।

भारत आखिरी बार 2021-22 में अस्थायी सदस्य के तौर पर सुरक्षा परिषद में बैठा था। मोदी ने वैश्विक महत्वाकांक्षा के अनुरूप वैश्विक कार्रवाई का भी आह्वान किया, क्योंकि विश्व आतंकवाद के खतरे के साथ-साथ नई चुनौतियों से भी जूझ रहा है। उन्होंने कहा, “जहां एक ओर आतंकवाद वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर साइबर, समुद्री और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्र संघर्ष के नए क्षेत्र के रूप में उभर रहे हैं।” प्रधानमंत्री ने कहा, “इन सभी मुद्दों पर मैं इस बात पर जोर दूंगा कि वैश्विक कार्रवाई वैश्विक महत्वाकांक्षा से मेल खानी चाहिए।” मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ने 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है और यह प्रदर्शित किया है कि सतत विकास सफल हो सकता है।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत अपनी सफलता के इस अनुभव को पूरे ‘ग्लोबल साउथ' के साथ साझा करने के लिए तैयार है। आमतौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों या विकासशील देशों को संदर्भित करने के लिए ‘ग्लोबल साउथ' शब्द का इस्तेमाल होता है। उन्होंने कहा, “जब हम वैश्विक भविष्य पर चर्चा कर रहे हैं, तो हमें मानव-केंद्रित दृष्टिकोण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।” मोदी ने कहा कि सतत विकास को प्राथमिकता देते हुए, “हमें मानव कल्याण, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी चाहिए।” प्रधानमंत्री ने प्रौद्योगिकी के सुरक्षित और जिम्मेदारी से उपयोग के लिए वैश्विक स्तर पर संतुलित विनियमन की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने कहा, “हमें वैश्विक डिजिटल शासन की आवश्यकता है, जो सुनिश्चित करे कि राष्ट्रीय संप्रभुता और अखंडता बरकरार रहे।” मोदी ने कहा, “डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना एक सेतु होनी चाहिए, न कि एक बाधा।” 

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