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आंख खुली तो देखा मरा पड़ा था साथी, बर्फीले तूफान में बचे मजदूरों ने सुनाईं रोंगटे खड़े करनी वाली दास्तां

Edited By Pardeep,Updated: 03 Mar, 2025 06:09 AM

the workers who survived the snowstorm told a hair raising story

सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के मजदूर जगबीर सिंह को जब होश आया, तो उसे अपने आसपास बर्फ की सफेद अंतहीन चादर दिखाई दी और बगल में एक मृत साथी का शव मिला। जगबीर के मुताबिक, हिमस्खलन के कारण उसका एक पैर टूट गया था और उसके सिर में गंभीर चोट आई थी।

नेशनल डेस्कः सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के मजदूर जगबीर सिंह को जब होश आया, तो उसे अपने आसपास बर्फ की सफेद अंतहीन चादर दिखाई दी और बगल में एक मृत साथी का शव मिला। जगबीर के मुताबिक, हिमस्खलन के कारण उसका एक पैर टूट गया था और उसके सिर में गंभीर चोट आई थी। जगबीर को कुछ दूरी पर एक होटल दिखाई दिया और उसने उसी में शरण लेकर करीब 25 घंटे का भयावह समय गुजारा। होटल में जगबीर ने प्यास बुझाने के लिए बर्फ खाई और वह अपने एक दर्जन से भी अधिक साथियों के साथ एक ही कंबल में हाड़ कंपा देने वाली ठंड से जूझता रहा। 

पंजाब के अमृतसर के रहने वाले जगबीर ने बताया कि जिस समय हिमस्खलन हुआ और बर्फ ने उसे उसके साथियों के साथ कई मीटर नीचे धकेल दिया, उस समय वह बीआरओ के शिविर में अपने कंटेनर में सो रहा था। जगबीर ने कहा, ''हम जिस कंटेनर में थे, वह नीचे लुढ़कने लगा। जब तक हम यह समझ पाते कि क्या हुआ है, मैंने देखा कि हमारे एक साथी की मौत हो गई है और मेरा एक पैर टूट गया है। मेरे सिर में भी चोट लगी थी। वहां हर तरफ बर्फ का ढेर था।'' 

जगबीर ने बताया कि वह और उसके कुछ साथी किसी तरह से भारी कदमों से धीरे-धीरे चलते हुए कुछ दूरी पर स्थित एक होटल में पहुंचे और वहां आश्रय लिया। उसने कहा, ''हमें 25 घंटे बाद बाहर निकाला गया और इस दौरान हम 14-15 लोगों के पास ओढ़ने के लिए केवल एक कंबल था। जब हमें प्यास लगी, तो हमने बर्फ खाई।'' रात में कंटेनर में रह रहे बीआरओ के 54 मजदूर 28 फरवरी को उत्तराखंड के पहाड़ी चमोली जिले के माणा गांव में हुए हिमस्खलन में फंस गए थे। इनमें से 46 मजदूरों को सेना समेत कई एजेंसियों द्वारा संचालित बचाव अभियान के दौरान सुरक्षित निकाल लिया गया, जबकि आठ अन्य की मौत हो गई। सभी मृतकों के शव बरामद हो गए हैं। हिमस्खलन के कारण घायल मजदूरों को ज्योतिर्मठ के सैन्य अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने अपनी भयावह आपबीती सुनाई। 

उत्तरकाकाशी के रहने वाले मनोज भंडारी ने बताया कि हिमस्खलन इतना भीषण था कि केवल 10 सेकेंड में ही उसने सभी कंटेनर को 300 मीटर नीचे फेंक दिया। भंडारी ने कहा, ''मैं थोड़ी देर के लिए अपने होश खो बैठा और फिर मुझे एहसास हुआ कि वहां से भागना असंभव था, क्योंकि चारों ओर तीन-चार फीट बर्फ थी। किसी तरह हम बर्फ के बीच नंगे पैर चलकर सेना के एक खाली गेस्ट हाउस में शरण लेने के लिए पहुंचे। बचाव दल दो-तीन घंटे के बाद हमारे पास पहुंचे।'' 

बिहार के वैशाली जिले के रहने वाले मुन्ना प्रसाद ने कहा कि सभी कंटेनर अलकनंदा नदी की तरफ बह गए। उसने कहा, ''हम करीब 12 घंटे तक बर्फ के नीचे ऐसे ही पड़े रहे। बर्फ से हमारी नाक बंद हो गई थी और सांस लेना मुश्किल था। हालांकि, शुक्र है कि बहुत देर होने से पहले सेना और आईटीबीपी की टीमें हमें बचाने आ गईं।'' कई मजदूरों ने सेना के शिविर, बैरक, खाली पड़े होटल जैसे किसी भी स्थान पर आश्रय लेकर किसी तरह अपनी जान बचाई। कुछ मजदूरों को तो हिमस्खलन के कुछ घंटों में ही बचा लिया गया, लेकिन अन्य को कड़ाके की ठंड में घंटों गुजारने पड़े। शुक्रवार को ही 33 मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया था, जबकि 17 अन्य को शनिवार को बचाया गया। 

बिहार के एक अन्य मजदूर अविनाश कुमार ने बताया कि सिर को छोड़कर उसका पूरा शरीर बर्फ के अंदर दबा हुआ था। उसने बताया कि हिमस्खलन के दौरान उसका सिर लोहे की किसी वस्तु से टकरा गया था और उससे खून निकल रहा था। हिमस्खलन के दो घंटे बाद सेना के जवानों ने कुमार को बाहर निकाल लिया और उसे इलाज के लिए अस्पताल भेजा, जहां उसके सिर में 29 टांके लगाए गए। उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी चंद्रभान ने बताया कि मुख्य हिमस्खलन के कुछ देर पहले करीब साढ़े पांच बजे एक हल्का हिमस्खलन भी हुआ था। चंद्रभान ने बताया, ''कंटेनर के शीर्ष पर एक खुले स्थान के जरिये मैं भाग निकला।'' 

हिमाचल प्रदेश के विपिन कुमार ने कहा, ''सब कुछ बहुत जल्दी हुआ।'' पिथौरागढ़ के बेरीनाग के रहने वाले गणेश कुमार ने बताया कि तड़के हुए हिमस्खलन से पहले रातभर बर्फबारी हुई थी। उसने कहा, ''सुबह के छह बज रहे थे। मैं अपने साथियों के साथ कंटेनर में सो रहा था। इस बीच, हमारे कंटेनर ने हिलना शुरू कर दिया और थोड़ी देर बाद हमने अपने आपको बर्फ के बीच में फंसा पाया। कुछ देर बाद बचाव टीम आई और हमें स्ट्रेचर पर सेना के अस्पताल ले गई।'' 

उत्तर प्रदेश के विजयपाल और उसके साथी 100 मीटर से भी अधिक गहरी खाई में गिर गए। उन्होंने करीब 200 मीटर दूर सेना का एक खाली पड़ा बैरक देखा और हिमस्खलन के मलबे में चलकर किसी तरह वहां पहुंचे। हिमस्खलन के प्रति क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए सेना सर्दियों में इस बैरक का इस्तेमाल नहीं करती है। यही बैरक मजदूरों के लिए जीवन रेखा साबित हुई, जहां से सुरक्षित निकाले जाने से पहले उन्होंने करीब 24 घंटे गुजारे। विजयपाल ने बताया कि कई दिनों से क्षेत्र में बर्फबारी हो रही थी और 28 फरवरी की सुबह भी शिविर के नजदीक दो हिमस्खलन हुए थे। 

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