Edited By Parminder Kaur,Updated: 31 Dec, 2024 12:27 PM
नए साल के शुरुआत में आसमान में टूटते तारों की बारिश का नजारा देखने को मिलेगा। यह खगोलीय घटना 27 दिसंबर से शुरू हो चुकी है, लेकिन 3-4 जनवरी को यह पूरी तरह से चरम पर होगी। भारत में भी लोग इसका आनंद ले सकेंगे। लखनऊ के इंदिरा गांधी तारामंडल में इस दृश्य...
नेशनल डेस्क. नए साल के शुरुआत में आसमान में टूटते तारों की बारिश का नजारा देखने को मिलेगा। यह खगोलीय घटना 27 दिसंबर से शुरू हो चुकी है, लेकिन 3-4 जनवरी को यह पूरी तरह से चरम पर होगी। भारत में भी लोग इसका आनंद ले सकेंगे। लखनऊ के इंदिरा गांधी तारामंडल में इस दृश्य को देखने के लिए विशेष टेलीस्कोप लगाए जाएंगे।
क्या होता है उल्कापात?
तारामंडल के वैज्ञानिक सुमित श्रीवास्तव ने बताया कि उल्कापात तब होता है, जब किसी धूमकेतु या क्षुद्रग्रह द्वारा छोड़े गए कण पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं। इसके कारण आसमान में रंग-बिरंगी रोशनी की धारियां दिखाई देती हैं। हर साल चार प्रमुख उल्कापात क्वाड्रंटिड्स, लिरिड्स, लियोनिड्स और उर्सिड्स होते हैं। इस साल जनवरी में क्वाड्रंटिड्स उल्कापात देखा जाएगा।
क्वाड्रंटिड्स उल्कापात
नासा के मुताबिक, क्वाड्रंटिड्स उल्कापात अपने चरम पर प्रति घंटे 120 उल्काएं उत्पन्न कर सकता है। यह साल की सबसे प्रभावशाली खगोलीय घटना हो सकती है। रात और सुबह के शुरुआती घंटों में यदि आप रोशनी से दूर किसी खुले स्थान पर जाएंगे, तो यह घटना आपको ज्यादा साफ और बेहतर नजर आएगी।
धूमकेतु का सफर
हेली धूमकेतु के सौरमंडल से गुजरने के दौरान भी आसमान में आतिशबाजी जैसा नजारा देखने को मिलता है। यह धूमकेतु 3,000 साल पुराना है। नासा के अनुसार, इसे आखिरी बार 1986 में पृथ्वी से देखा गया था। अब यह 2061 में फिर से हमारे सौरमंडल से गुजरेगा और हम फिर से इसका नजारा देख सकेंगे।