Edited By Rahul Rana,Updated: 01 Dec, 2024 04:03 PM
भारत में अब मेट्रो शहरों तक सीमित करियर के अवसर जल्द ही अतीत की बात हो सकते हैं। एक नई आर्थिक लहर के तहत जयपुर और कोयंबटूर जैसे टियर-2 शहर अब संपन्न व्यापारिक केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं। जैसा कि टीमलीज़ रिपोर्ट से पता चलता है, कोयंबटूर और...
नेशनल डेस्क। भारत में अब मेट्रो शहरों तक सीमित करियर के अवसर जल्द ही अतीत की बात हो सकते हैं। एक नई आर्थिक लहर के तहत जयपुर और कोयंबटूर जैसे टियर-2 शहर अब संपन्न व्यापारिक केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं। जैसा कि टीमलीज़ रिपोर्ट से पता चलता है, कोयंबटूर और गुड़गांव भारत के उभरते नौकरी बाज़ार की “वादा की गई भूमि” के रूप में उभर रहे हैं।
टीमलीज़ एक प्रमुख भारतीय भर्ती और मानव संसाधन कंपनी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार ये शहर अपनी प्रचुर क्षमता, कम परिचालन लागत और ताज़ी प्रतिभा पूल की वजह से कंपनियों को आकर्षित कर रहे हैं। इन शहरों में बेहतर बुनियादी ढांचा और विस्तारित कार्यबल के कारण, लॉजिस्टिक्स, इलेक्ट्रिक वाहन, और कृषि जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।
क्यों बढ़ रहे हैं टियर-2 शहर?
जयपुर, कोयंबटूर और गुड़गांव जैसे शहर अब रोजगार सृजन के नए केंद्र बनते जा रहे हैं जो छात्रों और पेशेवरों के लिए मेट्रो शहरों की भीड़-भाड़ और समस्याओं का एक अच्छा विकल्प बन रहे हैं।
टीमलीज़ की रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरु, मुंबई और हैदराबाद जैसे पारंपरिक मेट्रो शहरों ने आज भी अपनी प्रमुखता नहीं खोई है। बेंगलुरु 53.1% के साथ सबसे आगे है इसके बाद मुंबई (50.2%) और हैदराबाद (48.2%) हैं। हालांकि छोटे शहरों में भी तेजी से रोजगार की संभावना बढ़ रही है। कोयंबटूर में 24.6%, गुड़गांव में 22.6% और जयपुर में 20.3% नौकरी वृद्धि देखी जा रही है। लखनऊ और नागपुर जैसे शहरों में भी रोजगार वृद्धि 18.5% और 16.7% है।
कोयंबटूर और गुड़गांव: क्यों बन रहे हैं रोजगार केंद्र?
कोयंबटूर और गुड़गांव जैसे शहर अब नए रोजगार केंद्र के रूप में उभर रहे हैं। ये शहर अपनी कम परिचालन लागत, कुशल श्रमिकों और सहायक बुनियादी ढांचे के कारण कंपनियों को आकर्षित कर रहे हैं। मेट्रो शहरों में बढ़ती लागत और संतृप्तता के कारण अब व्यवसाय इन शहरों में निवेश करना पसंद कर रहे हैं।
इन शहरों में कई शैक्षणिक संस्थान और प्रशिक्षण केंद्र हैं जो कंपनियों को एक तैयार और योग्य कार्यबल प्रदान कर रहे हैं। इसके कारण कोयंबटूर और गुड़गांव में खासतौर पर आईटी, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार का विस्तार हो रहा है।
कम लागत पर बढ़ते अवसर
कोयंबटूर और गुड़गांव में कम रियल एस्टेट लागत, सस्ती उपयोगिताएँ और कम श्रम खर्च की वजह से कंपनियों का ध्यान इन शहरों की ओर बढ़ा है। इससे उन व्यवसायों को भी फायदा हो रहा है जो ओवरहेड खर्चों को कम करने के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश में थे।
आईटी और गैर-आईटी उद्योगों के लिए आदर्श
इन टियर-2 शहरों की अपील केवल आईटी क्षेत्र तक सीमित नहीं है। कोयंबटूर और गुड़गांव जैसे शहरों में आईटी के साथ-साथ विनिर्माण, वित्त, और अन्य उद्योगों के लिए भी आदर्श अवसर हैं। कम लागत और कुशल श्रम की उपलब्धता इन शहरों को विविध उद्योगों के लिए आकर्षक बना रही है।
मेट्रो शहरों की चुनौतियां
हालांकि बेंगलुरु, मुंबई और हैदराबाद जैसे मेट्रो शहरों की प्रमुखता कायम है लेकिन इन्हें भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन शहरों में बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण की वजह से बुनियादी ढांचे पर दबाव बढ़ रहा है। इसके अलावा इन शहरों में कुछ विशेष क्षेत्रों में कौशल अंतराल भी देखने को मिल रहा है जो कंपनियों के लिए चुनौती बन रही है।
भारत में रोजगार केंद्र अब केवल मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं हैं। छोटे और उभरते शहर जैसे कोयंबटूर, गुड़गांव, जयपुर, लखनऊ और नागपुर तेजी से रोजगार सृजन के नए केंद्र बन रहे हैं। ये शहर कंपनियों के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा, कम लागत और कुशल श्रमिकों के साथ आदर्श विकल्प बन रहे हैं। यही कारण है कि इन शहरों में रोजगार की वृद्धि हो रही है जो भविष्य में देश के समग्र आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देगा।