Edited By Pardeep,Updated: 07 Jul, 2023 10:27 PM
करीब 52 साल पहले त्रिपुरा सीमा के पास बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना द्वारा आतंक मचाए जाने के बाद मुक्ति वाहिनी या बांग्लादेश मुक्ति बल के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मेजर पीके घोष का निधन हो गया है। वह 84 वर्ष के थे।
अगरतलाः करीब 52 साल पहले त्रिपुरा सीमा के पास बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना द्वारा आतंक मचाए जाने के बाद मुक्ति वाहिनी या बांग्लादेश मुक्ति बल के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मेजर पीके घोष का निधन हो गया है। वह 84 वर्ष के थे। उनकी बेटी अगोमोनी घोष ने कहा कि वह कैंसर से पीड़ित थे और बृहस्पतिवार को दिल्ली में उन्होंने अंतिम सांस ली।
उन्होंने मीडिया से कहा, “कुछ पीड़ा के बाद उनका निधन हो गया, जिससे उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ा, लेकिन उनकी आत्मा पर नहीं, क्योंकि उन्होंने जिस तरह राष्ट्र के शत्रुओं से लड़ाई लड़ी उसी तरह कैंसर से भी लड़ाई लड़ी। मेरे पिता एक गुमनाम नायक हैं। सेना, बीएसएफ और रॉ में उनका कॅरियर बेहद पेशेवर प्रतिभा वाला रहा, लेकिन उनके काम की संवेदनशील प्रकृति के कारण यह सामने नहीं आया। उनके मन में बांग्लादेश के प्रति लगाव था क्योंकि वह 1971 के मुक्ति संग्राम में लड़ने वाले पहले भारतीय थे।”
मुक्ति संग्राम के समय, मेजर घोष त्रिपुरा के दक्षिणी हिस्से में श्रीनगर, अमलीघाट, समरेंद्रगंज और नलुआ में चटगांव मंडल की सीमा पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की चार सीमा चौकियों (बीओपी) की कमान संभाल रहे थे। मेजर घोष ने पूर्व में ‘पीटीआई-भाषा' को 26 मार्च, 1971 को पहले मुक्ति वाहिनी समूह के गठन के बारे में बताया था। रॉ में उनके सहयोगी रहे राणा बनर्जी ने कहा, "वह सहकर्मियों और दोस्तों के बीच पीके नाम से लोकप्रिय थे और अत्यधिक पेशेवर होने के साथ निर्भीक थे।"
'इनसर्जेंट क्रॉसफायर: नॉर्थईस्ट इंडिया' के लेखक सुबीर भौमिक ने कहा कि मेजर घोष अपने साहसिक अभियानों और अद्भुत पेशेवर प्रवृत्ति के कारण भारतीय सुरक्षा हलकों में एक किंवदंती हैं। भौमिक ने कहा, ‘‘दुख की बात है कि बांग्लादेश ने 1971 के युद्ध में उनकी भूमिका को मान्यता नहीं दी और उन्हें मुक्ति संग्राम पदक नहीं मिल पाया।''