Edited By ,Updated: 24 Dec, 2024 06:50 PM
आर्थिक वृद्धि की रफ्तार, अनुकूल बाजार परिस्थतियों और नियामकीय ढांचे में सुधार की वजह से इस साल यानी 2024 में आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के बाजार में काफी तेजी देखने को मिली है।
जेपी नड्डा ने राज्यसभा में ये क्या कह दिया! बीजेपी के लिए ये बयान गले की हड्डी बनने वाला है। न खाते बनेगा न उगलते बनेगा, पचने की बात तो बहुत दूर की है। जेपी नड्डा को सुनकर संजय सिंह आग बबूला हो गए। संजय सिंह का ये रौद्र रूप पूर्वांचलियों के लिए दिखा जिन्हें रोहिंग्या और घुसपैठियों के साथ जोड़कर बताया गया कि बीजेपी के कार्यकर्ता वोटर लिस्ट से उन्हें समझ-बूझकर हटाने के काम में लगे हैं।
दो बातें साफ तौर पर स्पष्ट हुईं। एक ये कि पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जिस बात को बहुत गंभीरता के साथ प्रेस कॉन्फ्रेन्स में रखा था और चुनाव आयोग को मिलकर बताया था, उसकी पुष्टि हो गयी है। बीजेपी के कार्यकर्ता नामों की सूची दे रहे हैं और बिना नियमों का पालन किए हुए यानी वेबसाइट पर वोटर लिस्ट से नाम हटने वालों का नाम बताए बगैर अंदरखाने नाम हटाए जा रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने विश्वास दिलाया था कि ऐसा नहीं होगा। मगर, ऐसा हुआ है तो क्यों?- इस पर चुनाव आयोग भी चुप रहा था।
दूसरी बात यह स्पष्ट हुई कि पूर्वांचलियों को भी घुसपैठिया समझते हुए रोहिंग्या की तरह अलग चश्मे से देख रही है बीजेपी। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राज्यसभा में जो बताया उसके मुताबिक दिल्ली के वोटर लिस्ट में सबकुछ वैसा ही हुआ है जैसा कि अरविन्द केजरीवाल ने तथ्यों के साथ बताया था। जिन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाने के लिए चुनाव आयोग तक बीजेपी कार्यकर्ताओं ने आगे बढ़ाए हैं उनमें रोहिंग्या, घुसपैठिया तो हैं ही, पूर्वांचली भी हैं। राज्यसभा में जेपी नड्डा के कहे गये शब्दों पर गौर करें-
“जिन लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के तरफ से ऑब्जेक्शन दिया है तो साथ में रीज़न भी दिया है। और वो चाहे पूर्वांचल हो, चाहे रोहिंग्या हो, चाहे बांग्लादेशी हो, चाहे घुसपैठिया हो...वो सब उसमें आते हैं।”
भला संजय सिंह इस मुद्दे को छोड़ कैसे दे सकते थे? अगर छोड़ देते तो वो संजय सिंह नहीं होते। आम आदमी पार्टी के टाइगर कहे जाते हैं। मुद्दा तुरंत लपक लिया। पूर्वांचलियों की भावनाएं उनकी जुबां पर और आंखों में उबाल लेने लगीं। ऐसा लगा मानो वे जेपी नड्डा को लील जाएंगे। राज्यसभा के सभापति हरिवंश ने उन्हें शांत करने की कोशिश की, मगर संजय सिंह का पारा सातवें आसमान पर था। आप उनके शब्दों पर गौर करें,
“इन्होंने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिनके नाम काटे जा रहे हैं वो रोहिंग्या हैं? हमारे उत्तर प्रदेश के भाई, हमारे पूर्वांचल के भाई, हमारे यूपी-बिहार के भाई जो चालीस-चालीस साल से दिल्ली में रह रहे हैं, अपने श्रम, अपने खून-पसीने से दिल्ली को बना रहे हैं, आप उनको रोहिंग्या कह रहे हैं? हिम्मत कैसे हुई आपकी?”
रोहिंग्या और घुसपैठिया बीजेपी नेताओं के प्रिय विषय रहे हैं। भले ही उसके चुनावी नतीजे मिले हों या नहीं। मगर, धार्मिक ध्रुवीकरण में इस मुद्दे का खूब इस्तेमाल होता रहा है। झारखण्ड में भी रोहिंग्या और घुसपैठ को लेकर खूब बातें हुईं। झारखण्ड की बेटी ले जाने तक का आरोप रोहिंग्या पर लगाते हुए जेएमएम सरकार को उसे संरक्षण देने वाली सरकार तक कहा गया था। आदिवासी जनता में तीखी प्रतिक्रिया हुई और बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
बीजेपी को पहले भी भारी पड़े हैं नड्डा के बयान
जेपी नड्डा पहले भी असंयमित बयान देते रहे हैं। बिहार में क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व ख़तरे में बताकर नड्डा ने तब नीतीश कुमार को नाराज कर दिया था और उन्होंने महागठबंधन की राह पकड़ ली थी। इतना ही नहीं आम चुनाव में जेपी नड्डा ने आरएसएस के बारे में ऐसी टिप्पणी कर दी थी कि बीजेपी और आरएसएस के बीच संबंध में खटास आ गयी थी। नड्डा ने कहा था कि बीजेपी अब हाथ पकड़कर चलने से ऊपर उठ गयी है। अपने पैरों पर खड़ी हो गयी है। आरएसएस से संबंध को लेकर कही गयी इस बात पर खूब सियासत हुई थी। अब पूर्वांचलियों को लेकर जो बातें जेपी नड्डा ने कह दी है, वह भी बीजेपी को भारी पड़ सकती है।
दिल्ली में भी रोहिंग्या और घुसपैठ का मुद्दा बीजेपी को उल्टा पड़ सकता है। अब तक आम आदमी पार्टी को जवाब में साबित करना पड़ता था कि रोहिंग्या के साथ कौन खड़ा है यह बताने के लिए। वे हरदीप पुरी के ट्वीट का सहारा ले रहे थे जिसमें उन्होंने अंतरराष्ट्रीय नियमों से बंधे होने की बात कहते हुए रोहिंग्याओं को दिल्ली में बसाने का जिक्र किया था। आम आदमी पार्टी गृहमंत्री पर हमलावर थी कि घुसपैठ और रोहिंग्या समस्या के लिए अमित शाह जिम्मेवार हैं। वे इस्तीफा तक मांग रहे थे। मगर, अब राजनीति में नया ट्विस्ट आ गया है।
जेपी नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष हैं। उनकी बात आधिकारिक ही मानी जाएगी। कोई व्यक्तिगत नहीं कह सकता। जाहिर है कि जेपी नड्डा के बयान से ट्विस्ट ये आ गया है कि पूर्वांचलियों का बीजेपी ने अपमान किया है। पूर्वांचलियों को रोहिंग्या और घुसपैठियों के बराबर खड़ा करते हुए उनके नाम वोटर लिस्ट से हटाने की कोशिश की है। दिल्ली में बड़ी आबादी है पूर्वांचलियों की। मनोज तिवारी जैसे बीजेपी के नेता पूर्वांचलियों के दम पर ही राजनीति करते रहे हैं। अगर पूर्वांचलियों के आत्मसम्मान को ठेस लगी या आम आदमी पार्टी ने उनके आहत भाव को जगा दिया तो दिल्ली का चुनाव बदल चुका है ऐसा जान भी लीजिए, मान भी लीजिए।
भावुक होते हैं पूर्वांचली
पूर्वांचलियों के वोट बीते विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिले थे। मगर, लोकसभा चुनाव में बीजेपी कामयाब रही थी पूर्वांचलियों को अपने साथ जोड़े रखने में। आसन्न विधानसभा चुनाव में पूर्वांचलियों को जोड़े रखना बीजेपी की बड़ी रणनीति रही है। ऐसे में जेपी नड्डा का बयान उनकी रणनीति पर पानी फेर सकता है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर 40-45 लाख पूर्वांचली वोटरों का अच्छा खासा प्रभाव है। कम से कम 17 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो पूर्वांचली बहुल हैं। इन विधानसभा सीटों में सीमापुरी, बादली, नागलोई, उत्तम नगर, किराड़ी, पटपड़गंज, लक्ष्मीनगर, विकासपुरी, मटियाला, द्वारका, करावल नगर, मॉडल टाउन, बुरारी, बदरपुर, पालम, संगम विहार, राजेंद्र नगर, देवली शामिल हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखण्ड के लोगों को पूर्वांचली समूह के तौर पर पहचाना जाता है।
पूर्वांचली वोटर भावुक होते हैं। वे ध्रुवीकरण का शिकार अक्सर होते आए हैं। बीजेपी का साथ भी देते आए हैं। मगर, इस बार पूर्वांचलियों के सम्मान का सवाल पैदा हुआ है। बीजेपी के कोई और नेता होते तो बात अलग थी। नेता बीजेपी अध्यक्ष और बयान राज्यसभा में। यह बयान संसद की कार्यवाही में भी हमेशा दर्ज रहने वाला है। ऐसे में बीजेपी पूर्वांचलियों को साधने के लिए आगे क्या करेगी, इस पर सबकी नज़र रहेगी। मगर, आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में रोहिंग्या-घुसपैठ के मुद्दे पर जबरदस्त मुद्दा मिल चुका है।
प्रेम कुमार, वरिष्ठ पत्रकार व टीवी पैनलिस्ट
Disclaimer - यह लेखक के अपने निजी विचार हैं