Edited By Anu Malhotra,Updated: 29 Oct, 2024 02:11 PM
दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त विशेष रूप से प्रदोष काल और स्थिर लग्न में होता है। इस वर्ष, 1 अक्टूबर 2024 को दीपावली मनाई जाएगी, और लक्ष्मी पूजन का प्रमुख समय निम्नलिखित है:
नेशनल डेस्क: दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त विशेष रूप से प्रदोष काल और स्थिर लग्न में होता है। इस वर्ष, 1 अक्टूबर 2024 को दीपावली मनाई जाएगी, और लक्ष्मी पूजन का प्रमुख समय निम्नलिखित है:
दीपावली पूजा का शुभ मुहूर्त - 1 नवंबर, 2024 को दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी पूजन का शुभ समय और चौघड़िया मुहूर्त दिए गए हैं।
शुभ चौघड़िया - सुबह से लेकर रात तक के अलग-अलग चौघड़िया मुहूर्त दिए गए हैं, जिसमें विभिन्न चौघड़िया जैसे रोग, लाभ, उदय, शुभ आदि का समय उल्लेखित है।
प्रदोष काल - इस दिन का प्रदोष काल 1 नवंबर, 2024 को 17:35 बजे से 19:14 बजे तक रहेगा, जो विशेष पूजा के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है।
पूजन सामग्री और अनुष्ठान - पूजन में श्रीमहालक्ष्मी पूजा, कुबेर पूजा, दीप-दान, लक्ष्मी का आह्वान आदि का वर्णन है। साथ ही विशेष मंत्र और आह्वान मंत्र का भी उल्लेख किया गया है, जिन्हें पूजा के समय उपयोग में लाना शुभ माना गया है।
अन्य पूजा विधि - चित्र में पूजा विधि से संबंधित नियम, जैसे कि दीपों की संख्या, पूजा के लिए दिशा, दीपावली पर प्रयोग में आने वाले विशेष मंत्र आदि भी दिए गए हैं।
दिनभर के कृत्य - दीपावली के दिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं की पूजा करनी चाहिए। यदि संभव हो, तो दूध, दही और घी से पितरों का पार्वण श्राद्ध करना उत्तम माना गया है। इस दिन एक समय भोजन (एकभुक्त उपवास) कर सकते हैं और गोधूलि वेला (सूर्यास्त के समय) में या स्थिर लग्न जैसे कुम्भ, वृष, सिंह आदि में श्रीगणेश, कलश, षोडशमातृका और ग्रहों की पूजा करके भगवती लक्ष्मी का षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए।
इसके बाद, महाकाली का दावात (स्याहीदानी) के रूप में, महासरस्वती का कलम और बही के रूप में, तथा कुबेर का तुला के रूप में विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। दीपावली पूजन के बाद घर में चौमुखा दीपक रात्रिभर जलाना सौभाग्य और लक्ष्मी वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। दीपावली पर्व पर भगवती लक्ष्मी का विधिवत आवाहन और षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है। शुभ मुहूर्त में स्वच्छ और पवित्र स्थान पर अष्टदल कमल बनाकर, उस पर हल्दी, अक्षत, आय और पुष्प आदि से श्रीलक्ष्मी का आवाहन और स्थापना करके विधिपूर्वक देवताओं की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।