Tirupati Laddu Case: भगवान को राजनीति से दूर रखें... लड्डू विवाद पर बोला सुप्रीम कोर्ट

Edited By Utsav Singh,Updated: 30 Sep, 2024 03:17 PM

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तिरुपति मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी मिलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वानथन की बेंच इस मामले से जुड़ी पांच याचिकाओं पर चर्चा कर रही है।

नई दिल्ली : तिरुपति बालाजी प्रसाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। इस बीच, शीर्ष अदालत ने सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि प्रसाद तब होता है जब भगवान को चढ़ाया जाता है, और उससे पहले जो मिठाई तैयार की जाती है, वह सिर्फ एक सामग्री होती है। ऐसे में भगवान और भक्त का हवाला न दिया जाए, और भगवान को इस विवाद से दूर रखा जाए।यह मामला न केवल धार्मिक विश्वासों से संबंधित है, बल्कि श्रद्धालुओं के बीच विश्वास को बनाए रखने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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जस्टिस गवई ने CM चंद्रबाबू नायडू पर सवाल उठाए
कोर्ट की टिप्पणियाँ इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत हैं कि किसी भी प्रकार की अनियमितता को सख्ती से निपटा जाएगा। इस मामले में जस्टिस गवई ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर सवाल उठाए। कोर्ट ने यह पूछा कि जब आरोपों की जांच के लिए SIT बनाई गई थी, तो बिना किसी नतीजे के प्रेस में बयान देने की क्या आवश्यकता थी। यह टिप्पणी इस बात की ओर इशारा करती है कि राजनीतिक हस्तक्षेप से मामले की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।

SC कुल पांच याचिकाओं की सुनवाई कर रहा
सुप्रीम कोर्ट इस मामले से संबंधित कुल पांच याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है। याचिकाकर्ताओं में वाई. वी सुब्बा रेड्डी, विक्रम संपत, दुष्यंत श्रीधर, डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी और सुरेश चव्हाणके शामिल हैं। मामले में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उपस्थित हैं, जबकि आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से सिद्धार्थ लूथरा और मुकुल रोहतगी कोर्ट में मौजूद हैं।

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बीजेपी नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के वकील ने कोर्ट में कहा कि वह श्रद्धालु के रूप में यहां आए हैं। उन्होंने कहा कि प्रसाद में मिलावट के आरोप पर जो बयान मीडिया में दिया गया, वह चिंता का विषय है। उनका मानना है कि अगर भगवान के प्रसाद पर कोई प्रश्न चिह्न है, तो इसकी जांच अवश्य होनी चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि जब मुख्यमंत्री ने एसआईटी जांच के आदेश दिए थे, तो जांच पूरी होने से पहले मीडिया में बयान देने की क्या आवश्यकता थी। यह सुनवाई न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ी है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है कि श्रद्धालुओं का विश्वास सुरक्षित रहे और किसी भी प्रकार की मिलावट को रोका जा सके। कोर्ट की टिप्पणियाँ और कार्रवाई इस मामले की गंभीरता को दर्शाती हैं। 

 

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