Tirupati Temple Prasad: 200 साल पुरानी परंपरा, कैसे बनाया जाता है तिरुपति मंदिर का प्रसाद, क्या-क्या होता है इस्तेमाल

Edited By Anu Malhotra,Updated: 20 Sep, 2024 07:43 AM

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दुनिया के मशहूर तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद को लेकर आंध्र प्रदेश की राजनीति में हंगामा मचा हुआ है। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। नायडू का दावा है कि पहले तिरुपति मंदिर के प्रसाद...

नेशनल डेस्क:  दुनिया के मशहूर तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद को लेकर आंध्र प्रदेश की राजनीति में हंगामा मचा हुआ है। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। नायडू का दावा है कि पहले तिरुपति मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आई, तो इस मामले की गहन जांच कराई जाएगी। इस मामले को लेकर श्रद्धालुओं के बीच तनाव और आशंका बढ़ गई जब तिरुपति मंदिर के लड्डुओं के नमूने जांच के लिए नेशनल डेयरी डेवलपमेंट ब्यूरो की लैब में भेजे गए। रिपोर्ट के अनुसार, नमूनों में मिलावट पाई गई और विशेष रूप से मछली के तेल के इस्तेमाल का खुलासा हुआ।

तिरुपति बालाजी मंदिर का लड्डू प्रसाद पूरे देश में मशहूर है और इसकी परंपरा 200 साल पुरानी है। आइए जानते हैं कि इस खास प्रसाद को कैसे बनाया जाता है।

मंदिर का खास प्रसाद

तिरुपति बालाजी मंदिर में लड्डू का प्रसाद बेहद प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि इस लड्डू के बिना मंदिर के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। यह प्रसाद पूरी शुद्धता के साथ तैयार किया जाता है। इसे तैयार करने के लिए एक खास रसोईघर, जिसे "लड्डू पोटू" कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है। पहले प्रसाद बनाने के लिए लकड़ी का उपयोग होता था, लेकिन 1984 के बाद से एलपीजी गैस का इस्तेमाल शुरू किया गया। लड्डू पोटू में हर दिन करीब 8 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं।

कैसे बनता है तिरुपति मंदिर का प्रसाद?

तिरुपति मंदिर का प्रसाद "दित्तम" नामक विशेष तरीके से बनाया जाता है। दित्तम वह सूची है जिसमें प्रसाद बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री और उसका अनुपात तय किया जाता है। अब तक दित्तम में केवल छह बार बदलाव किया गया है। मौजूदा समय में लड्डू बनाने के लिए बेसन, काजू, इलायची, घी, चीनी, मिश्री और किशमिश का उपयोग किया जाता है। हर दिन 10 टन बेसन, 10 टन चीनी, 700 किलोग्राम काजू, 150 किलोग्राम इलायची, 300-400 लीटर घी, 500 किलोग्राम मिश्री और 540 किलोग्राम किशमिश का इस्तेमाल होता है।

लड्डू पोटू में काम करने वाले लोग

लड्डू पोटू में 620 रसोइये, जिन्हें "पोटू कर्मीकुलु" कहा जाता है, काम करते हैं। इनमें से 150 स्थायी कर्मचारी हैं और 350 ठेका आधार पर काम करते हैं। इनमें से 247 लोग शेफ हैं। इन कर्मचारियों की मेहनत से रोजाना लाखों लड्डू तैयार होते हैं।

लड्डू के प्रकार

तिरुपति मंदिर में कई प्रकार के लड्डू बनाए जाते हैं:

  • प्रोक्तम लड्डू: यह 60-70 ग्राम का होता है और इसे नियमित रूप से मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को दिया जाता है।
  • अस्थानम लड्डू: विशेष त्योहारों पर बनाया जाता है और इसका वजन 750 ग्राम होता है। इसमें अधिक मात्रा में काजू, बादाम और केसर मिलाया जाता है।
  • कल्याणोत्सवम लड्डू: यह विशेष भक्तों को दिया जाता है और इसकी भी काफी मांग रहती है।

200 साल पुरानी प्रसाद की परंपरा

तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने 1803 में बूंदी को प्रसाद के रूप में बांटना शुरू किया था। लेकिन 1940 में यह परंपरा बदलकर लड्डू की शुरुआत हुई। 1950 में TTD ने प्रसाद बनाने के लिए सामग्री की मात्रा तय की और 2001 में आखिरी बार "दित्तम" में बदलाव किया गया।

तिरुपति मंदिर के रहस्य

भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं और यह हमेशा मुलायम रहते हैं।

भगवान की मूर्ति पर पसीने की बूंदें देखी जा सकती हैं।

गर्भगृह में मूर्ति बीच में दिखाई देती है, लेकिन बाहर निकलने पर दाहिनी ओर दिखती है।

भगवान का श्रृंगार हटाने के बाद उनके हृदय पर मां लक्ष्मी की आकृति दिखाई देती है।

मंदिर में हमेशा एक दीपक जलता रहता है, जिसमें कभी तेल या घी नहीं डाला जाता।

मूर्ति के कान के पास सुनने पर समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देती है।

इन रहस्यों और विशेष प्रसाद के साथ तिरुपति बालाजी मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बरकरार है, जिससे हर साल लाखों भक्त यहां खिंचे चले आते हैं।

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