Shaheed Diwas: शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत को नमन, जानिए क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस?

Edited By Pardeep,Updated: 23 Mar, 2025 05:42 AM

tribute to the martyrdom of shaheed bhagat singh rajguru and sukhdev

23 मार्च 1931 को ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। इन तीनों वीर क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपनी जान की कुर्बानी दी थी, और उनकी शहादत ने...

नेशनल डेस्कः 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। इन तीनों वीर क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपनी जान की कुर्बानी दी थी, और उनकी शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया जोश और दिशा प्रदान की। यही कारण है कि आज 23 मार्च को 'शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है। 

23 मार्च 1931 की रात क्या हुआ था? 
23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई। फांसी से पहले, जब भगत सिंह से उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई, तो उन्होंने अपनी पंसदीदा किताब ‘लेनिन की जीवनी’ को पढ़ते हुए अपना जीवन समाप्त करने की इच्छा जताई। जेल अधिकारियों द्वारा फांसी के समय बताने पर भगत सिंह का जवाब उनकी अडिग क्रांतिकारी मानसिकता को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “ठहरिए! पहले एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल तो ले,” और फिर किताब को उछालते हुए बोले, “ठीक है, अब चलो।” 

भगत सिंह की लाश से भी खौफ में थे अंग्रेज 
भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी देने के बाद अंग्रेजों को डर था कि उनकी शहादत से भारत में विद्रोह फैल सकता है। इसलिए, उन्होंने इन तीनों के शवों के साथ घिनौनी साजिश की। यह दावा किया जाता है कि उनकी लाश के टुकड़े करके, बोरे में भरकर एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया। फिर, लाहौर के पास फिरोजपुर में, उनकी लाशों को घी के बजाय मिट्टी के तेल से जलाया गया। जब स्थानीय लोग इसकी सूचना पाकर वहां पहुंचे, तो अंग्रेज अफसर डर गए और अधजली लाशों को सतलुज नदी में फेंक दिया। वहां से, गांववासियों ने इन शहीदों के अवशेषों को एकत्रित किया और उनका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया।

भगत सिंह को फांसी क्यों दी गई?

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था। उनके खिलाफ आरोप थे:

  1. धारा 129: देशद्रोह और सरकारी अधिकारियों की हत्या की कोशिश।

  2. धारा 302: हत्या (अंग्रेजी पुलिस अधिकारी जॉन सॉयर की हत्या के आरोप में)।

  3. विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ: बम विस्फोट के लिए।

  4. आईपीसी की धारा 120: साजिश रचना।

इन क्रांतिकारियों पर यह आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति के जरिए बम विस्फोटों और हत्याओं को अंजाम दिया था। विशेष रूप से 1929 में दिल्ली विधानसभा में बम फेंकने के मामले में उनका नाम लिया गया था। इसके बाद, 7 अक्टूबर 1930 को अदालत ने इन्हें फांसी की सजा सुनाई। इसके बावजूद इस फैसले के खिलाफ कई अपीलें की गईं जिनमें महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय और अन्य नेताओं ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। 

फांसी की सजा और विरोध प्रदर्शन 
फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद लाहौर में धारा 144 लागू कर दी गई थी ताकि भगत सिंह और उनके साथियों के समर्थन में कोई विरोध प्रदर्शन न हो सके। इसके बावजूद, पूरे देश में इनकी शहादत को लेकर गहरा शोक था और शहीदों के समर्थन में कई आंदोलन शुरू हुए। 

क्यों मनाते हैं शहीद दिवस? 
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने अपने प्राणों की आहुति देकर यह सिद्ध कर दिया था कि वे स्वतंत्रता के लिए किसी भी कीमत पर संघर्ष करने को तैयार थे। इन तीनों के बलिदान के कारण 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन न केवल उनके अद्वितीय बलिदान की याद में है, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन वीर योद्धाओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी जान की बाजी लगाई।

शहीद दिवस के दिन, शैक्षिक संस्थानों, सरकारी कार्यालयों और सामाजिक संगठनों में इन वीरों की श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके योगदान को याद किया जाता है। यह दिन खास तौर पर युवा पीढ़ी को इन शहीदों के संघर्ष और आदर्शों से प्रेरित करने का भी अवसर है।

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