Edited By Tanuja,Updated: 21 Jan, 2025 11:21 AM
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स (BRICS) देशों को सख्त संदेश देते हुए कहा है कि यदि वे डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के डी-डॉलरीकरण प्रयासों को जारी रखते हैं, तो उन्हें ...
Washington: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स (BRICS) देशों को सख्त संदेश देते हुए कहा है कि यदि वे डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के डी-डॉलरीकरण प्रयासों को जारी रखते हैं, तो उन्हें अमेरिका के साथ व्यापार पर 100 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। ओवल ऑफिस में एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर समारोह के दौरान ट्रंप ने यह बयान दिया और वैश्विक व्यापार में डॉलर के घटते उपयोग पर चिंता व्यक्त की। राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कहा, "अगर कोई भी ब्रिक्स देश डी-डॉलरीकरण की राह पर आगे बढ़ने के बारे में सोचता भी है, तो अमेरिका उनके आयातों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा।" उनका मानना है कि यह कदम अमेरिकी अर्थव्यवस्था और डॉलर की वैश्विक प्रभुत्व की रक्षा के लिए आवश्यक है। राष्ट्रपति ट्रंप के इस बयान से स्पष्ट है कि उनका प्रशासन ब्रिक्स देशों के डी-डॉलरीकरण प्रयासों को कड़ी चुनौती देगा। इस कड़े रुख से वैश्विक व्यापार में तनाव बढ़ने की संभावना है।
अपने बयान को धमकी के रूप में खारिज करते हुए ट्रंप ने इसे अमेरिका के मजबूत रुख के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, "यह बयान ब्रिक्स देशों को चेतावनी देने के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक प्रयास है।" राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने पूर्ववर्ती जो बाइडेन पर भी निशाना साधा और कहा कि बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका की स्थिति कमजोर हो गई थी। ट्रंप ने जोर देकर कहा कि अब उनका प्रशासन ब्रिक्स देशों के दबाव के आगे झुकेगा नहीं। ट्रंप ने यह भी कहा कि यदि ब्रिक्स देश अपनी साझा मुद्रा लॉन्च करने का प्रयास करते हैं, तो अमेरिका उनके सभी आयातों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा। ब्रिक्स देश, जिनमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं, पहले से ही डॉलर के विकल्प के रूप में एक नई वैश्विक मुद्रा पर काम कर रहे हैं।
क्या है डी-डॉलरीकरण मुद्दा और जरूरत क्यों ?
2023 के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने डी-डॉलरीकरण का आह्वान किया था। उन्होंने ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार को राष्ट्रीय मुद्राओं में बढ़ावा देने और बैंकों के बीच सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। डी-डॉलरीकरण का अर्थ है वैश्विक वित्तीय और व्यापारिक लेनदेन में अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करना और अन्य मुद्राओं का उपयोग बढ़ाना। यह प्रक्रिया विशेष रूप से उन देशों में चर्चा का विषय है जो अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहते हैं। अमेरिका की आर्थिक शक्ति पर निर्भरता कम करना । कई देश अमेरिकी डॉलर पर अत्यधिक निर्भर हैं, जिससे उन्हें अमेरिका के नीतिगत फैसलों का प्रभाव सहना पड़ता है। डॉलर-आधारित वैश्विक वित्तीय प्रणाली के कारण कई देशों की नीतियां अमेरिकी प्रतिबंधों और दबावों से प्रभावित होती हैं। इसलिए ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे ब्रिक्स देश डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए एक नई वैश्विक मुद्रा लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं।